Sec 437 of Crpc : Simplified The Concept of Bail under Crpc

Sec 437 of Crpc जो की अजामनतीय अपराध की दशा में कब जमानत ली जा सकेगी इस बात का उपबंध करती है | इस धारा में यह बताया गया है की अगर अभियुक्त द्वारा अजमानतीय अपराध किया गया है तो न्यायालय उसे कब जमानत पर छोड़ने से इंकार कर सकता है और कब न्यायालय उसे जमानत पर छोड़ सकता है |

Sec 437 of Crpc में सशर्त जमानत का प्रावधान भी किया गया है जिसके अनुसार न्यायालय शर्तों के अधीन किसी अजमानतीय अपराध के अभियुक्त व्यक्ति को जमानत पर छोड़ सकता है | Sec 437 of Crpc का प्रावधान कुछ इस प्रकार है :-

Sec 437 of Crpc/अजामनतीय अपराध की दशा में कब जमानत ली जा सकेगी :- {Sec 437 of Crpc}


(1) section 437(1) of crpc के अंतर्गत अजमानतीय अपराध के अभियोग का आशंकित व्यक्ति जमानत की याचना कर सकता है। जब कभी ऐसा व्यक्ति पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा बिना वारण्ट गिरफ्तार या निरूद्ध किया जाता है या न्यायालय {सत्र न्यायालय या उच्च न्यायालय से भिन्न न्यायालय} के समक्ष उपसंजात होता है या लाया जाता है तो उसे जमानत पर रिहा किया जा सकता है।

किंतु निम्न मामलों में जमानत नहीं दी जाएगी-


a) जबकि यह विश्वास करने का युक्तियुक्त कारण हो कि आवेदक मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास से दण्डनीय अपराध का दोषी है;

b) जबकि आवेदक संज्ञेय अपराध का अभियुक्त है तथा वह पूर्व दोषसिद्ध रह चुका हो अर्थात आवेदक को-

i) मृत्युदण्ड, आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे अधिक के कारावास से दण्डनीय किसी अपराध के लिए पहले दोषसिद्ध किया गया है; या

ii) तीन वर्ष या उससे अधिक के किंतु सात वर्ष से अनधिक अवधि की अवधि के कारावास से दंडनीय किसी संज्ञेय अपराध के लिए दो या अधिक अवसरों पर पहले दोषसिद्ध किया गया है।

उपरोक्त मामलों में न्यायालय अभियुक्त को निम्न आधारों पर जमानत पर छोड़ने का निर्देश दे सकता है-


a) यदि वह स्त्री है; या
b) यदि वह 16 वर्ष से कम आयु का है; या
c) यदि वह रोगी है; या
d) यदि वह शिथिलांग है । {Sec 437(1) का प्रथम परंतुक Crpc}

परंतु यह और कि यदि आवेदक संज्ञेय अपराध का दोषी है और पूर्व दोषसिद्ध रह चुका है तो न्यायालय आवेदक को किसी अन्य विशेष कारण पर जमानत पर छोड़ने का निदेश दे सकता है। {यदि वह ऐसा करना न्यायोचित तथा उचित समझता है} {Sec 437(1) का द्वितीय परंतुक Crpc}


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उपरोक्त मामलों में अभियुक्त को केवल इस आधार पर जमानत से वंचित नहीं किया जाएगा कि अन्वेषण के दौरान साक्षियों द्वारा पहचाने जाने के लिए उसकी आवश्यकता है {यदि अभियुक्त अन्यथा जमानत पर छोड़े जाने का हकदार है तथा न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करने का वचन देता है} {Sec 437(1) का तृतीय परंतुक Crpc}

इसके अतिरिक्त यदि अभियुक्त द्वारा किया गया अभिकथित अपराध मृत्यु, आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे अधिक अवधि के कारावास से दण्डनीय है तो लोक अभियोजक को सुनवाई का अवसर दिए बिना उसे जमानत पर नहीं छोड़ा जाएगा |{Sec 437(1) का चतुर्थ परंतुक Crpc}

(2) Sec 437(2) crpc


यदि न्यायालय को अन्वेषण, जाॅच या विचारण के किसी प्रक्रम पर यह प्रतीत होता है कि अभियुक्त ने कोई भी अजमानतीय अपराध नहीं किया है परंतु उसके दोषी होने के बारे में और जाॅच करने के पर्याप्त आधार है तो अभियुक्त ऐसी जाॅच लम्बित रहने तक जमानत पर या न्यायालय के समक्ष हाजिर होने के लिए प्रतिभूओं रहित या बंधपत्र निष्पादित करने पर छोड़ दिया जाएगा। {Sec 437(2) crpc}


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(3) सशर्त जमानत :- {Sec 437(3) crpc}


a) न्यायालय निम्न मामलों में अभियुक्त को जमानत पर रिहा करते समय शर्ते अधिरोपित कर सकता है-

i) यदि कोई व्यक्ति 7 वर्ष या उससे अधिक अवधि के कारावास से दण्डनीय अपराध का अभियुक्त है; या

ii) यदि कोई व्यक्ति अध्याय-6, अध्याय-16 या अध्याय-17 भा0द0सं0 के अधीन किसी अपराध को कारित करने या उसका दुष्प्रेरण करने, षडयंत्र काने या प्रयत्न करने का अभियुक्त है।

b) निम्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए शर्तें लगायी जाती हैं-

i) बंधपत्र की शर्तों के अनुसार उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए;
ii) समान प्रकृति के अपराधों की पुनरावृत्ति का निवारण करने के लिए।
iii) मामलें के तथ्यों से परिचित किसी व्यक्ति को कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष उत्प्रेरणा, धमकी या वचन दिए जाने का विचारण करने के लिए या साक्ष्य से छेड़छाड़ को निवारित करने के लिए;
iv) यदि ऐसा किया जाना न्यायहित में अन्यथा आवश्यक हो।

c) संहिता इस सम्बन्ध में मौन है कि न्यायालय द्वारा क्या शर्तें अधिरोपित की जा सकती है। इसे न्यायालय के विवेक पर छोड़ दिया गया है।

(4) Sec 437(4) Crpc :-


यदि न्यायालय किसी व्यक्ति को धारा 437(1) या धारा 437(2) के अधीन जमानत पर रिहा करता है तो न्यायालय द्वारा ऐसा करने के अपने विशेष कारणों को लेखबद्ध करना होगा। {Sec 437(4) Crpc}

(5) Sec 437(5) Crpc :-


धारा 437(1) या धारा 437(2) के अधीन जमानत पर रिहा किए गए अभियुक्त को न्यायालय पुनः अभिरक्षा में लिए जाने का निर्देश दे सकता है, यदि न्यायालय ऐसा करना आवश्यक समझता है। {Sec 437(5) Crpc}

(6) Sec 437(6) Crpc :-


यदि साक्ष्य दिए जाने हेतु नियत प्रथम तिथि से 60 दिनों के भीतर मजिस्टेªट द्वारा विचारणीय किसी मामले का विचारण पूरा नहीं होता है और यदि अभियुक्त व्यक्ति उक्त सम्पूर्ण अविध के दौरान अभिरक्षा में रहा है तो मजिस्टेªट द्वारा अभियुक्त को जमानत पर छोड़ दिया जाएगा। {Sec 437(6) Crpc}

(7) Sec 437(7) Crpc :-


यदि अजमानतीय अपराध के अभियुक्त व्यक्ति के विचारण समाप्त हो जाने के पश्चात् और निर्णय दिए जाने के पूर्व किसी समय न्यायालय की यह राय है कि अभियुक्त द्वारा आरोपित अजमानतीय अपराध नहीं किया गया है और अभियुक्त अभिरक्षा मेें है तो न्यायालय अभियुक्त को निर्णय सुनने के लिए अपने समक्ष हाजिर होने के लिए प्रतिभूओं रहित बंधपत्र अभियुक्त द्वारा निष्पादित किए जाने पर छोड़ देगा। {Sec 437(7) Crpc}

Criminal Procedure Code/Crpc Bare Act in Hindi Download – Link


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