Chapter 19 of Crpc

Chapter 19 of Crpc : Simplified the Concept of Trial {Sec 238 to Sec 250}

मजिस्ट्रेट वारंट मामलो के विचारण हेतु दो प्रक्रियों का पालन करता है जिनका उल्लेख Chapter 19 of Crpc में किया गया है और जो की निम्नवत है :-

Table of Contents

Chapter 19 of Crpc/अध्याय- 19 मजिस्ट्रेट द्वारा वारण्ट मामलों का विचारण (Sec 238 to Sec 250)

A) पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित वारण्ट मामले {धारा 238 से धारा 243 तक सपठित धारा 248 और 250}

B) पुलिस रिपोर्ट से भिन्न आधार पर संस्थित वारण्ट मामले (धारा 244 से धारा 250 तक}

महत्वपूर्ण तथ्यः-


(1) Chapter 19 of Crpc {Sec 238 to Sec 250} वारण्ट मामलों के विचारण में मजिस्ट्रेट द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया प्रावधानित है। यह वे वारण्ट मामलें है जो अनन्यतः सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय नही है।


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(2) इस अध्याय में विचारण की निम्न दो प्रक्रियाएं प्रावधानित हैः-

  • पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित वारण्ट मामलें {धारा 238 से धारा 243 तक सपठित धारा 248 और 250}
  • पुलिस रिपोर्ट से भिन्न आधार पर संस्थित वारण्ट मामले {धारा 244 से धारा 250 तक}

Question :- मजिस्ट्रेट द्वारा पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित वारण्ट मामलों एवं पुलिस रिपोर्ट से अन्यथा संस्थित वारण्ट मामलों के विचारण हेतु भिन्न प्रक्रियाएं प्रावधानित किए जाने का क्या कारण है? समझाइए?

Answer :- पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित वारण्ट मामलों तथा पुलिस रिपोर्ट से अन्यथा संस्थित वारण्ट मामलों के लिए भिन्न-भिन्न प्रक्रियाएं प्रावधानित करने का मुख्य कारण यह है कि पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित वारण्ट मामलों में पुलिस द्वारा अन्वेषण किए जाने के दौरान तैयार किए गए अभिलेख जैसे कि- प्राथमिकी, धारा 161 के अधीन अभिलिखित कथन, धारा 164 के अधीन अभिलिखित संस्वीकृति या कथन, धारा 173 के अधीन पुलिस अधिकारी द्वारा प्रस्तुत की गई रिपोर्ट आदि की प्रति न्यायालय तथा अभियुक्त को उपलब्ध कर दी जाती है।

परंतु पुलिस रिपोर्ट से अन्यथा संस्थित वारण्ट मामलों मे न्यायालय तथा अभियुक्त को ये सभी अभिलेख उपलब्ध नहीं कराए जा सकते हैं क्यांेकि ऐसे मामलों में यह अभिलेख अस्तित्व में ही नहीं होते है।

अतः पुलिस रिपोर्ट से अन्यथा संस्थित वारण्ट मामलों में विचारण की विशेष प्रक्रिया आवश्यक हो जाती है। जिससे अभियुक्त को उसके विरूद्ध मामले के उन तथ्यों से अवगत कराया जा सके जिन पर अभियोजन का निर्भर रहने का विचार है।
अभियुक्त के स्वच्छ विचारण के लिए इस भिन्न प्रक्रिया का पालन किया जाना आवश्यक है, क्यांेकि अभियुक्त अपनी प्रभावी प्रतिरक्षा तथी कर सकेगा जब उसे अपने विरूद्ध मामले का पूर्ण ज्ञान होगा।

A) पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित वारण्ट मामलों में विचारण की प्रक्रिया :- {धारा 238 से धारा 243 तक सपठित धारा 248 एवं 250 Crpc}


पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित वारण्ट मामलों में विचारण की प्रक्रिया से सम्बंधित नियम निम्नवत हैं :-

(1) धारा 207 का अनुपालन :- {धारा 238 Crpc}


विचारण के प्रारम्भ में जब अभियुक्त मजिस्ट्रेट के समक्ष लाया जाता है या हाजिर होता है तब मजिस्ट्रेट अपना यह समाधान करेगा कि उसने धारा 207 के उपबंधों का अनुपालन कर लिया है।

अभियुक्त को पुलिस रिपोर्ट या अन्य दस्तावेजों की प्रतिलिपियां देना :- {धारा 207 Crpc}


धारा 207 के अंतर्गत अभियुक्त को निम्न दस्तावेजों की प्रतियां निःशुल्क प्राप्त करने का अधिकार हैः-

  • धारा 154 के अंतर्गत दर्ज प्राथमिकी;
  • धारा 161 के अंतर्गत पुलिस अधिकारी द्वारा अभिलिखित कथन;
  • धारा 164 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट के द्वारा अभिलिखित संस्वीकृति या कथन;
  • धारा 173 के अधीन मजिस्ट्रेट को प्रेषित पुलिस रिपोर्ट;
  • पुलिस रिपोर्ट के साथ प्रेषित कोई अन्य दस्तावेज।

(2) अभियुक्त को कब उन्मोचित किया जाएगा :- {धारा 239 Crpc}


यदि मजिस्ट्रेट-

  • पुलिस रिपोर्ट तथा उसके साथ प्रेषित अन्य दस्तावेजों पर विचार करके; तथा
  • अभियुक्त की परीक्षा और अभियोजन तथा अभियुक्त को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात्;

इस निष्कर्ष पर पहुॅचता है कि अभियुक्त के विरूद्ध लगाए गए आरोप निराधार हैं तो वह अभियुक्त को उन्मोचित कर देगा तथा ऐसा करने के अपने कारणों को अभिलिखित करेगा।

(3) आरोप विरचित करना :- {धारा 240 Crpc}


  • यदि ऐसा विचार, परीक्षा और सुनवाई कर लेने पर मजिस्ट्रेट की यह राय है कि यह उपधारणा करने का आधार है कि अभियुक्त के द्वारा ऐसा अपराध किया गया है जिसका विचारण करने के लिए मजिस्ट्रेट अध्याय-19 के अंतर्गत सशक्त / सक्षम है और मजिस्ट्रेट द्वारा अभियुक्त को पर्याप्त रूप से दण्डित भी किया जा सकता है तो मजिस्ट्रेट अभियुक्त के विरूद्ध आरोप लिखित रूप में विरचित करेगा। {धारा 240(1)}
  • ऐसा विरचित आरोप मजिस्ट्रेट द्वारा अभियुक्त को पढ़कर सुनाया जाएगा और समझाया जाएगा और अभियुक्त से यह पूछा जाएगा कि क्या वह दोषी होने का अभिवाक् करता है या विचारण का दावा करता है। {धारा 240(1)}

(4) दोषी होने के अभिवाक् पर दोषसिद्धि :- {धारा 241 सपठित धारा 375 Crpc}


यदि अभियुक्त दोषी होने का अभिवाक् करता है तो मजिस्ट्रेट उस अभिवाक् को लेखबद्ध करेगा और अभियुक्त को ऐसे अभिवाक् के आधार पर दोषसिद्ध कर सकेगा।


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नोट :- कुछ मामलों में जब अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन करें, अपील न होना। {धारा 375}

(5) अभियोजन के लिए साक्ष्य {धारा 242 Crpc}


a) यदि अभियुक्त-

i) अभिवचन करने से इंकार करता है; या
ii) अभिवचन नहीं करता है; या
iii) विचारण किए जाने का दावा करता है; या
iv) मजिस्ट्रेट अभियुक्त को धारा 241 के अधीन दोषसिद्ध नहीं करता है;

तो मजिस्ट्रेट साक्षियों की परीक्षा के लिए तारीख नियत करेगा। {धारा 242(1)}

परंतु यह कि पुलिस द्वारा अन्वेषण के दौरान अभिलिखित किए गए कथनों को मजिस्ट्रेट अग्रिम रूप से अभियुक्त के प्रदान करेगा।
b) मजिस्ट्रेट अभियोजन के आवेदन पर किसी साक्षी को हाजिर होने या कोई दस्तावेज या कोई अन्य वस्तु पेश करने को विवश करने हेतु समन जारी कर सकेगा। {धारा 242(2)}


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c) ऐसी नियत तारीख पर मजिस्ट्रेट ऐसा सब साक्ष्य लेने के लिए अग्रसर होगा जो अभियोजन के समर्थन में पेश किया जाता है। {धारा 242(3)}

परंतु मजिस्ट्रेट स्वविवेक से किसी साक्षी की प्रति परीक्षा को तब तक के लिए स्थगित करने की अनुमति दे सकेगा जब तक कि अन्य साक्षी या साक्षियों का परीक्षण न कर लिया जाए। वह किसी साक्षी को अतिरिक्त प्रतिपरीक्षा के लिए पुनः बुला सकेगा।

(6) प्रतिरक्षा का साक्ष्य:- {धारा 243 Crpc}


a) इसके पश्चात् मजिस्ट्रेट अभियुक्त से यह अपेक्षा करेगा कि वह अपनी प्रतिरक्षा प्रारम्भ करे तथा साक्ष्य पेश करे। यदि अभियुक्त कोई लिखित कथन देता है तो मजिस्ट्रेट उसे अभिलेख में फाइल करेगा। {धारा 243(1)}

b) मजिस्ट्रेट अभियुक्त के सद्भावपूर्ण आवेदन पर किसी साक्षी को हाजिर होने या कोई दस्तावेज या कोई अन्य वस्तु पेश करने को विवश करने हेतु आदेशिका जारी कर सकेगा। परंतु यदि अभियुक्त का आवेदन तंग करने वाला, विलम्ब करने वाला या न्याय के उद्देश्यों को विफल करने वाला है तो मजिस्ट्रेट ऐसे आवेदन को नामंजूर करते हुए अपने कारण अभिलिखित करेगा। {धारा 243(2)}

परंतु यदि अभियुक्त द्वारा प्रतिपरीक्षा आरम्भ होने से पूर्व किसी साक्षी की प्रतिपरीक्षा कर ली है या उसे किसी साक्षी की प्रतिपरीक्षा करने का अवसर मिल चुका है तब ऐसे साक्षी को हाजिर होने के लिए तब तक विवश नहीं किया जाएगा जब तक मजिस्ट्रेट का यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसा करना न्याय के उद्देश्यों के लिए आवश्यक है।

c) मजिस्ट्रेट अभियुक्त से यह अपेक्षा कर सकता है कि मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 243(2) के आवेदन पर किसी साक्षी को समन करने से पूर्व विचारण के प्रयोजन के लिए हाजिर होने में उस साक्षी द्वारा किए जाने वाले व्यय अभियुक्त द्वारा न्यायालय में जमा कर दिए जाएं। {धारा 243(2)}

(7) दोषमुक्ति या दोषसिद्धि :- {धारा 248 Crpc}


न्यायालय निम्न दशाओं में दोषमुक्ति या दोषसिद्धि दे सकता है :-

a) अभियुक्त को दोषमुक्ति का आदेश देना :- {धारा 248(1) Crpc}


इस अध्याय के अधीन आरोप विरचित करने के पश्चात मजिस्ट्रेट इस निष्कर्ष पर पहुॅचता है कि अभियुक्त दोषी नहीं है तो मजिस्ट्रेट ऐसे अभियुक्त को दोषमुक्त कर देगा।

b) अभियुक्त को दण्डादेश का आदेश देना :- {धारा 248(2) Crpc}


मजिस्ट्रेट यदि इस निष्कर्ष पर पहुॅचता है कि अभियुक्त दोषी है किन्तु मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 325 या धारा 360 के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही नहीं की गई है तो मजिस्ट्रेट दण्ड के प्रश्न पर अभियुक्त को सुनेगा और उसके पश्चात् विधि के अनुसार दण्डादेश देगा।

c) आरोप में विरचित पूर्व दोषसिद्धि के बारे में मजिस्ट्रेट द्वारा साक्ष्य का लिया जाना :- {धारा 248(3) Crpc}


यदि अभियुक्त पर धारा 211(7) के अधीन पूर्व दोषसिद्धि का आरोप लगाया गया है और अभियुक्त द्वारा यह स्वीकार नहीं किया जाता है कि उसे पूर्व में दोषसिद्ध किया गया था तो ऐसी स्थिति में मजिस्ट्रेट वर्तमान में किए गए अपराध के लिए अभियुक्त को दोषसिद्ध करेगा और उसके पश्चात् पूर्व दोषसिद्धि के बारे में साक्ष्य लेगा और निष्कर्ष अभिलिखित करेगा।


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परंतु जब तक अभियुक्त धारा 248(2) के अधीन दोषसिद्ध नहीं किया जाता है तब तक मजिस्ट्रेट न तो अभियुक्त को आरोप पढ़कर सुनाएगा, न ही अभियुक्त को उस पर अभिवचन करने को कहेगा और न ही अभियोजन द्वारा पूर्व दोषसिद्धि के निर्देश को सुनेगा।

8) उचित कारण के बिना अभियोग के लिए प्रतिकर :- {धारा 250 Crpc}

i) परिवाद पर या पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को दी गई सूचना पर संस्थित किसी मामले में अभियुक्त को उन्मोचित या दोषमुक्त करते समय मजिस्ट्रेट परिवादी या सूचनादाता को इस बात का कारण दर्शित करने के लिए आहूत कर सकता है कि क्यों न उसके विरूद्ध प्रतिकर का आदेश पारित कर दिया जाए।

परंतु कारण दर्शाओ नोटिस तभी जारी किया जाएगा, जबकि मजिस्ट्रेट की यह राय हो कि परिवाद या सूचना बिना किसी युक्तियुक्त कारण के दी गई थी। {धारा 250(1)}

ii) परिवादी या सूचनादाता द्वारा दर्शित कारण को मजिस्ट्रेट अभिलिखित करेगा और यदि उसका समाधान हो जाता है कि अभियोग लगाने का कोई उचित कारण नहीं था तो मजिस्ट्रेट परिवादी या सूचनादाता को यह आदेश देगा कि वह अभियुक्त को प्रतिकर दे।

यह धारा प्रतिकर की कोई राशि नियत नहीं करती है। प्रतिकर की अधिकतम राशि मजिस्ट्रेट द्वारा दिए जाने योग्य अर्थदण्ड से अधिक नहीं होगी। {धारा 250(2)}


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iii) प्रतिकर देने हेतु आदेशित व्यक्ति द्वारा प्रतिकर के संदाय में व्यतिक्रम करने पर 30 दिन से अनधिक अवधि के सादा कारावास से दण्डित किया जाएगा। {धारा 250(3)}

iv) जब किसी व्यक्ति को धारा 250(3) के अधीन कारावास दिया जाता है तब भा0द0सं0 की धारा 68 और 69 के उपबंध लागू होंगे। {धारा 250(4)}

नोट :- a) जुर्माना देने पर कारावास को पर्यवसान हो जाना {धारा 68 भा0द0सं0}
b) जुर्माने के आनुपातिक भाग के दे दिए जाने की दशा में कारावास का पर्यवसान {धारा 69 भा0द0सं0}

v) धारा 250(3) के अधीन प्रतिकर दिए जाने के आदेश के कारण अन्य सिविल या दाण्डिक कार्यवाहियॉ बाधित नहीं होगी।
किंतु अभियुक्त व्यक्ति को इस धारा के अधीन दी गई रकम का हिसाब, किसी पश्चात्वर्ती सिविल वाद में पीड़ित व्यक्ति के पक्ष में दिए गए, प्रतिकर के निर्णय में लिया जाएगा। {धारा 250(5)}

vi) अगर परिवादी या सूचनादाता को 100 रूपये से अधिक प्रतिकर देने का आदेश द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दिया गया है तो ऐसा परिवादी या सूचनादाता ऐसे आदेश के विरूद्ध अपील ऐसे कर सकेगा कि मानों द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा उसे किसी विचारण में दोषसिद्ध किया गया है। {धारा 250(6)}

vii) यदि प्रतिकर देने का आदेश द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दिया गया तो ऐसे आदेशित व्यक्ति द्वारा अभियुक्त व्यक्ति को प्रतिकर देने का आदेश तब तक नहीं दिया जाएगा, जब तक-

a) अपील पेश करने की अनुज्ञात अवधि बीत न जाए; या
b) अपील पेश कर दी गई है तो जब तक अपील का विनिश्चय न आ जाए।

परंतु यदि प्रतिकर का आदेश अपील योग्य नहीं है तो अभियुक्त को ऐसा प्रतिकर, आदेश की तारीख से एक मास की समाप्ति के पश्चात् दिलवाया जाएगा। {धारा250(7)}

viii) इस धारा के उपबंध समन और वारण्ट दोनों मामलों मंे लागू होते है। {धारा 250(8)}

B) पुलिस रिपोर्ट से अन्यथा संस्थित वारण्ट मामलों में विचारण की प्रक्रिया :- {Sec 244 to Sec 250 Crpc}

पुलिस रिपोर्ट से अन्यथा संस्थित वारण्ट मामलों में विचारण की प्रक्रिया से सम्बंधित नियम निम्नवत है :-

(1) अभियोजन का साक्ष्य :- {धारा 244 Crpc}


a) जब अभियुक्त मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होता है या लाया जाता है तब मजिस्ट्रेट अभियुक्त को सुनेगा तथा उसके समर्थन में पेश किए साक्ष्यों को लेने के लिए अग्रसर होगा। {धारा 244(1)}

b) मजिस्ट्रेट अभियोजन के आवेदन पर किसी साक्षी को हाजिर होने या कोई दस्तावेज या कोई अन्य वस्तु पेश करने को विवश करने हेतु समन जारी कर सकेगा। {धारा 244(2)}

(2) अभियुक्त को कब उन्मोचित किया जाएगा :- {धारा 245 Crpc}


a) यदि अभियोजन साक्ष्य लेने के पश्चात् मजिस्ट्रेट का लेखबद्ध कारणों से यह विचार है कि अभियुक्त के विरूद्ध ऐसा कोइ मामला सिद्ध नहीं हुआ है जो अखण्डित रहने पर उसकी दोषसिद्धि के लिए समुचित आधार हो, तो वह अभियुक्त को उन्मोचित कर देगा। {धारा 245(1)}

b) धारा 245 मजिस्ट्रेट की उन शक्तियों को निर्बंधित नहीं करती है जिनके अधीन रहते हुए मजिस्ट्रेट अभियुक्त को किन्हीं पूर्ववर्ती प्रक्रम पर भी उन्मोचित कर सकता है। अर्थात मजिस्ट्रेट अभियोजन साक्ष्य लेने से पूर्व भी अभियुक्त को उन्मोचित कर सकता है, यदि आरोप निराधार है। {धारा 245(2)}

(3) प्रक्रिया, जहॉ अभियुक्त उन्मोचित नहीं किया जाता :- {धारा 246 Crpc}


a) यदि अभियोजन का साक्ष्य लेने के पश्चात् या मामले के किसी पूर्वतन प्रक्रम में मजिस्ट्रेट की यह राय है कि यह उपधारणा करने का आधार है कि अभियुक्त ने ऐसा अपराध किया है जिसका विचारण करने के लिए मजिस्ट्रेट अध्याय-19 के अंतर्गत एवं पर्याप्त दण्ड देने के लिए सक्षम है तो मजिस्ट्रेट लिखित रूप में आरोप विरचित करेगा। {धारा 246(1)}

b) आरोप विरचित करने के पश्चात् मजिस्ट्रेट अभियुक्त को आरोप पढ़कर सुनाएगा तथा समझाएगा और अभियुक्त से यह पूछेगा कि क्या वह दोषी होने का अभिवचन करता है या प्रतिरक्षा करना चाहता है। {धारा 246(2)}

c) यदि अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन करता है तो मजिस्ट्रेट ऐसे अभिवचन को अभिलिखित करेगा व अभियुक्त को दोषसिद्ध करेगा। {धारा 246(3)}

d) यदि अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन नहीं करता है या अभिवचन करने से इंकार करता है या विचारण किए जाने का दावा करता है या धारा 246(3) के अधीन दोषसिद्ध नहीं किया जाता है तो मजिस्ट्रेट अभियुक्त से यह अपेक्षा करेगा कि वह मामले की अगली सुनवाई के प्रारम्भ में या तत्काल उसी समय यह बताए कि वह किन-किन अभियोजन साक्षियों की प्रतिपरीक्षा करना चाहता है। {धारा 246(4)}

e) अभियुक्त द्वारा नामित सभी साक्षियों को मजिस्ट्रेट पुनः बुलाएगा और प्रतिपरीक्षा एवं पुनः परीक्षा के पश्चात् ऐसे साक्षियों को उन्मोचित कर देगा। {धारा 246(5)}

f) इसके पश्चात् अभियोजन के शेष साक्षियों का साक्ष्य लिया जाएगा और प्रतिपरीक्षा और पुनः परीक्षा के पश्चात् वे भी उन्मोचित कर दिए जाएगें | {धारा246(6)}

(4) प्रतिरक्षा का साक्ष्य :- {धारा 247 Crpc}


इसके पश्चात् न्यायालय अभियुक्त से यह अपेक्षा करेगा कि वह अपनी प्रतिरक्षा आरम्भ करे और अपना साक्ष्य पेश करे और मामले को धारा 243 के उपबंध लागू होगें |

प्रतिरक्षा का साक्ष्य:- {धारा 243 Crpc}


a) इसके पश्चात् मजिस्ट्रेट अभियुक्त से यह अपेक्षा करेगा कि वह अपनी प्रतिरक्षा प्रारम्भ करे तथा साक्ष्य पेश करे। यदि अभियुक्त कोई लिखित कथन देता है तो मजिस्ट्रेट उसे अभिलेख में फाइल करेगा। {धारा 243(1)}

b) मजिस्ट्रेट अभियुक्त के सद्भावपूर्ण आवेदन पर किसी साक्षी को हाजिर होने या कोई दस्तावेज या कोई अन्य वस्तु पेश करने को विवश करने हेतु आदेशिका जारी कर सकेगा। परंतु यदि अभियुक्त का आवेदन तंग करने वाला, विलम्ब करने वाला या न्याय के उद्देश्यों को विफल करने वाला है तो मजिस्ट्रेट ऐसे आवेदन को नामंजूर करते हुए अपने कारण अभिलिखित करेगा। {धारा 243(2)}

परंतु यदि अभियुक्त द्वारा प्रतिपरीक्षा आरम्भ होने से पूर्व किसी साक्षी की प्रतिपरीक्षा कर ली है या उसे किसी साक्षी की प्रतिपरीक्षा करने का अवसर मिल चुका है तब ऐसे साक्षी को हाजिर होने के लिए तब तक विवश नहीं किया जाएगा जब तक मजिस्ट्रेट का यह समाधान नहीं हो जाता है कि ऐसा करना न्याय के उद्देश्यों के लिए आवश्यक है।

c) मजिस्ट्रेट अभियुक्त से यह अपेक्षा कर सकता है कि मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 243(2) के आवेदन पर किसी साक्षी को समन करने से पूर्व विचारण के प्रयोजन के लिए हाजिर होने में उस साक्षी द्वारा किए जाने वाले व्यय अभियुक्त द्वारा न्यायालय में जमा कर दिए जाएं। {धारा 243(2)}

(5) दोषमुक्ति या दोषसिद्धि :- {धारा 248 Crpc}


न्यायालय निम्न दशाओं में दोषमुक्ति या दोषसिद्धि दे सकता है :-

a) अभियुक्त को दोषमुक्ति का आदेश देना :- {धारा 248(1) Crpc}


इस अध्याय के अधीन आरोप विरचित करने के पश्चात मजिस्ट्रेट इस निष्कर्ष पर पहुॅचता है कि अभियुक्त दोषी नहीं है तो मजिस्ट्रेट ऐसे अभियुक्त को दोषमुक्त कर देगा।

b) अभियुक्त को दण्डादेश का आदेश देना :- {धारा 248(2) Crpc}


मजिस्ट्रेट यदि इस निष्कर्ष पर पहुॅचता है कि अभियुक्त दोषी है किन्तु मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 325 या धारा 360 के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही नहीं की गई है तो मजिस्ट्रेट दण्ड के प्रश्न पर अभियुक्त को सुनेगा और उसके पश्चात् विधि के अनुसार दण्डादेश देगा।

c) आरोप में विरचित पूर्व दोषसिद्धि के बारे में मजिस्ट्रेट द्वारा साक्ष्य का लिया जाना :- {धारा 248(3) Crpc}


यदि अभियुक्त पर धारा 211(7) के अधीन पूर्व दोषसिद्धि का आरोप लगाया गया है और अभियुक्त द्वारा यह स्वीकार नहीं किया जाता है कि उसे पूर्व में दोषसिद्ध किया गया था तो ऐसी स्थिति में मजिस्ट्रेट वर्तमान में किए गए अपराध के लिए अभियुक्त को दोषसिद्ध करेगा और उसके पश्चात् पूर्व दोषसिद्धि के बारे में साक्ष्य लेगा और निष्कर्ष अभिलिखित करेगा।

परंतु जब तक अभियुक्त धारा 248(2) के अधीन दोषसिद्ध नहीं किया जाता है तब तक मजिस्ट्रेट न तो अभियुक्त को आरोप पढ़कर सुनाएगा, न ही अभियुक्त को उस पर अभिवचन करने को कहेगा और न ही अभियोजन द्वारा पूर्व दोषसिद्धि के निर्देश को सुनेगा।

6) परिवादी की अनुपस्थिति :- {धारा249 Crpc}


यदि कार्यवाही परिवाद पर संस्थित की गई है और मामले की सुनवाई के लिए नियत तिथि पर परिवादी अनुपस्थित रहता है और अपराध का विधिपूर्वक शमन किया जा सकता है या वह संज्ञेय अपराध नहीं है तो मजिस्ट्रेट आरोप विरचित किए जाने से पूर्व किसी भी समय अभियुक्त को उन्मोचित कर सकेगा।

7) उचित कारण के बिना अभियोग के लिए प्रतिकर :- {धारा 250 Crpc}


i) परिवाद पर या पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को दी गई सूचना पर संस्थित किसी मामले में अभियुक्त को उन्मोचित या दोषमुक्त करते समय मजिस्ट्रेट परिवादी या सूचनादाता को इस बात का कारण दर्शित करने के लिए आहूत कर सकता है कि क्यों न उसके विरूद्ध प्रतिकर का आदेश पारित कर दिया जाए।

परंतु कारण दर्शाओ नोटिस तभी जारी किया जाएगा, जबकि मजिस्ट्रेट की यह राय हो कि परिवाद या सूचना बिना किसी युक्तियुक्त कारण के दी गई थी। {धारा 250(1)}

ii) परिवादी या सूचनादाता द्वारा दर्शित कारण को मजिस्ट्रेट अभिलिखित करेगा और यदि उसका समाधान हो जाता है कि अभियोग लगाने का कोई उचित कारण नहीं था तो मजिस्ट्रेट परिवादी या सूचनादाता को यह आदेश देगा कि वह अभियुक्त को प्रतिकर दे।

यह धारा प्रतिकर की कोई राशि नियत नहीं करती है। प्रतिकर की अधिकतम राशि मजिस्ट्रेट द्वारा दिए जाने योग्य अर्थदण्ड से अधिक नहीं होगी। {धारा 250(2)}

iii) प्रतिकर देने हेतु आदेशित व्यक्ति द्वारा प्रतिकर के संदाय में व्यतिक्रम करने पर 30 दिन से अनधिक अवधि के सादा कारावास से दण्डित किया जाएगा। {धारा 250(3)}

iv) जब किसी व्यक्ति को धारा 250(3) के अधीन कारावास दिया जाता है तब भा0द0सं0 की धारा 68 और 69 के उपबंध लागू होंगे। {धारा 250(4)}

नोट :- a) जुर्माना देने पर कारावास को पर्यवसान हो जाना {धारा 68 भा0द0सं0}
b) जुर्माने के आनुपातिक भाग के दे दिए जाने की दशा में कारावास का पर्यवसान {धारा 69 भा0द0सं0}

v) धारा 250(3) के अधीन प्रतिकर दिए जाने के आदेश के कारण अन्य सिविल या दाण्डिक कार्यवाहियॉ बाधित नहीं होगी।
किंतु अभियुक्त व्यक्ति को इस धारा के अधीन दी गई रकम का हिसाब, किसी पश्चात्वर्ती सिविल वाद में पीड़ित व्यक्ति के पक्ष में दिए गए, प्रतिकर के निर्णय में लिया जाएगा। {धारा 250(5)}

vi) अगर परिवादी या सूचनादाता को 100 रूपये से अधिक प्रतिकर देने का आदेश द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दिया गया है तो ऐसा परिवादी या सूचनादाता ऐसे आदेश के विरूद्ध अपील ऐसे कर सकेगा कि मानों द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा उसे किसी विचारण में दोषसिद्ध किया गया है। {धारा 250(6)}

vii) यदि प्रतिकर देने का आदेश द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दिया गया तो ऐसे आदेशित व्यक्ति द्वारा अभियुक्त व्यक्ति को प्रतिकर देने का आदेश तब तक नहीं दिया जाएगा, जब तक-

a) अपील पेश करने की अनुज्ञात अवधि बीत न जाए; या
b) अपील पेश कर दी गई है तो जब तक अपील का विनिश्चय न आ जाए।

परंतु यदि प्रतिकर का आदेश अपील योग्य नहीं है तो अभियुक्त को ऐसा प्रतिकर, आदेश की तारीख से एक मास की समाप्ति के पश्चात् दिलवाया जाएगा। {धारा250(7)}

viii) इस धारा के उपबंध समन और वारण्ट दोनों मामलों में लागू होते है। {धारा 250(8)}

Criminal Procedure Code/Crpc Bare Act Download – Link


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