Crpc Chapter 18 (Sec 225 to Sec 236 Crpc)

Crpc Chapter 18 (Sec 225 to Sec 236 Crpc) : Simplified the Concept of Crpc

Crpc Chapter 18 (Sec 225 to Sec 236 Crpc) सत्र न्यायालय के समक्ष विचारण की प्रक्रिया का वर्णन करता है | इस अध्याय में इस बात का उल्लेख किया गया है की कोई सत्र न्यायाधीश कैसे किसी मामले का विचारण करेगा और कैसे किसी अपराधी को सजा देगा |

Table of Contents

Crpc Chapter 18 (Sec 225 to Sec 236)/ अध्याय- 18 सेशन न्यायालय के समक्ष विचारण की प्रक्रियाः- (धारा 225 से धारा 237 तक)


A) धारा 209 के अंतर्गत सत्र न्यायालय को सुपुर्द किए गए मामलों में विचारण की प्रक्रिया {धारा 225 से धारा 236 तक}

B) धारा 199(2) के अधीन संस्थित मामलों में प्रक्रिया {धारा 237}

A) धारा 209 के अंतर्गत सत्र न्यायालय को सुपुर्द किए गए मामलों में विचारण की प्रक्रिया :- {धारा 225 से धारा 236}


इस पहले भाग में यह बताया गया है की जब कोई मामला सत्र न्यायालय को विचारण हेतु सुपुर्द किया जाता है तब वह किस प्रक्रिया का पालन करेगा |

(1) विचारण का संचालन लोक अभियोजक द्वारा किया जाना :- {धारा 235 Crpc}


सत्र न्यायालय के समक्ष प्रत्येक विचारण में अभियोजन का संचालन लोक अभियोजक द्वारा किया जाएगा।

(2) अभियोजन के मामले के कथन का प्रारम्भ :- {धारा 236 Crpc}


जब धारा 209 के अधीन मामला सत्र न्यायालय को सुपुर्द किया जाता है और जब ऐसी सुपुर्दगी के अनुसरण में अभियुक्त न्यायालय के समक्ष हाजिर होता है या लाया जाता है तब लोक अभियोजक सत्र न्यायालय के समक्ष मामले को प्रारम्भ करते हुए न्यायालय को अभियुक्त पर लगाए गए आरोप से अवगत कराएगा तथा संक्षेप में यह बताएगा कि अभियुक्त की दोषसिद्धि के लिए वह क्या साक्ष्य प्रस्तुत करने जा रहा है।

(3) उन्मोचन :- {धारा 227 Crpc}


यदि मामले के अभिलेख और उसके साथ प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों पर विचार कर लेने के पश्चात् तथा इस सम्बन्ध में अभियुक्त और अभियोजन के निवेदन की सुनवाई कर लेने के पश्चात्, न्यायाधीश यह समझता है कि अभियुक्त के विरूद्ध कार्यवाही के लिए पर्याप्त आधार नहीं है तो वह अभियुक्त को उन्मोचित कर देगा तथा ऐसा करने के अपने कारणों को लेखबद्ध करेगा।

प्रश्न- उन्मोचन से आप क्या समझते हैं? उन्मोचन का आदेश किन आधारों पर दिया जा सकता है?

उत्तरः- उन्मोचन विचारण का निलंबन है, उसका समापन नहीं। उन्मोचन का आदेश तब पारित किया जाता है जब अभियुक्त के विरूद्ध आगे कार्यवाही करने के कोई पर्याप्त आधार नहीं बचता है।

(4) आरोप विरचित करना :- {धारा 228 Crpc}


i) यदि पूर्वोक्त रूप से विचार और सुनवाई के पश्चात् न्यायाधीश की यह राय है कि अभियुक्त ने ऐसा अपराध किया है तब :-

a) यदि मामला अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय नहीं है तो वह अभियुक्त क विरूद्ध आरोप विरचित कर सकता है और तारीख नियत करते हुए अभियुक्त को आदेश देगा कि नियत तारीख को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर हो। अर्थात मामले को CJM या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट को अंतरित कर देगा और ऐसा मजिस्ट्रेट मामले का विचारण हेतु पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित वारण्ट मामलों की प्रक्रिया अपनाएगा।


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b) अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है तो वह अभियुक्त के विरूद्ध आरोप लिखित रूप में विरचित करेगा।

ii) यदि सत्र न्यायालय धारा 228(1)(b) के अधीन अभियुक्त के विरूद्ध आरोप विरचित करता है तो न्यायालय अभियुक्त को ऐसा आरोप पढ़कर सुनाएगा व समझाएगा और अभियुक्त से यह पूछेगा कि क्या वह दोषी होने का अभिवचन करता है या विचारण का दावा करता है। धारा 228(2)

(5) दोषी होने का अभिवचन :- {धारा 229 सपठित धारा 375 Crpc}


i) यदि अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन करता है तो न्यायाधीश अभियुक्त को ऐसे अभिवचन के आधार पर दोषसिद्ध कर सकेगा। {धारा 229}

ii) कुछ मामलों में जब अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन करे, अपील न होना (धारा 375)

जहॉ अभियुक्त व्यक्ति ने दोषी होने का अभिवचन किया है, और ऐसे अभिवचन पर वह दोषसिद्ध किया गया है, वहॉ-

a) यदि दोषसिद्धि उच्च न्यायालय द्वारा की गई है तो , कोई अपील नहीं होगी; अन्यथा

b) यदि दोषसिद्धि सेशन न्यायालय, महानगर मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग या द्वितीय वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा की गई है तो अपील दण्ड के परिणाम या उसकी वैधता के परिणाम या उसकी वैधता के बारे में ही हो सकेगी, अन्यथा नहीं।

(6) अभियोजन साक्ष्य के लिए तारीख :- {धारा 376 Crpc}


यदि अभियोजन दोषी होने का अभिवचन करने से इंकार करता है या अभिवचन नहीं करता है या विचारण किये जाने का दावा करता है या धारा 229 के अधीन दोषसिद्ध नहीं किया जाता है तो न्यायाधीश अभियोजन साक्षियों की परीक्षा के लिए तिथि नियत करेगा तथा अभियोजन पक्ष के आवेदन पर किसी साक्षी को हाजिर होने या कोई दस्तावेज या कोई अन्य वस्तु प्रस्तुत करने के लिए विवश करने हेतु आदेशिका जारी कर सकता है।

(7) अभियोजन के लिए साक्ष्य :- {धारा 231 Crpc}


i) नियत तिथि पर अभियोजन के समर्थन में पेश किए गए सभी साक्ष्यों को लेने के लिए न्यायाधीश अग्रसर होगा। {धारा231(1)}

ii) न्यायाधीश स्वविवेक से किसी साक्षी की प्रतिपरीक्षा को तब तक के लिए स्थगित करने की अनुमति दे सकेगा जब तक कि अन्य साक्षी या साक्षियों का परीक्षण न कर लिया जाए। वह किसी साक्षी को अतिरिक्त प्रतिपरीक्षा के लिए पुनः बुला सकेगा। {धारा 231(2)}

(8) दोषमुक्ति :- {धारा 232 Crpc}


यदि अभियोजन का साक्ष्य लेने के पश्चात् तथा अभियुक्त का परीक्षण और अभियोजन को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात् न्यायाधीश के विचार में इस बात का समुचित आधार न हो कि अभियुक्त ने अपराध किया है तो वह उसे दोषमुक्त कर देगा।

(9) प्रतिरक्षा आरम्भ करना :- {धारा 233 Crpc}


i) यदि अभियुक्त धारा 232 के अधीन दोषमुक्त नहीं किया जाता है वहॉ अभियुक्त से यह अपेक्षा की जाएगी कि अपनी प्रतिरक्षा प्रारम्भ करे और अपने समर्थन में जो भी साक्ष्य हों उन्हें पेश करें। {धारा 233(1)}

ii) यदि अभियुक्त कोई लिखित कथन देता है तो न्यायाधीश उसे अभिलेख में फाईल करेगा। {धारा 233(2)}

iii) न्यायाधीश अभियुक्त के आवेदन पर किसी साक्षी को हाजिर होने या कोई दस्तावेज या कोई अन्य वस्तु पेश करने को विवश करने हेतु आदेशिका जारी कर सकता है किंतु यदि न्यायाधीश को प्रतीत होता है कि ऐसा आवेदन तंग करने या विलम्ब करने या न्याय के उद्देश्यों करने के प्रयोजनों से किया गया है तो वह ऐसे आवेदन को नामंजूर करते हुए अपने कारण अभिलिखित करेगा। {धारा 234(3)}

(10) बहस :- {धारा 234 Crpc}


जहॉ प्रतिरक्षा के साक्षियों की परीक्षा समाप्त हो जाती है तो अभियोजक अपने मामले का उपसंहार{Conclude /sum up} करेगा और अभियोजक या उसका प्लीडर अभियोजक के प्रश्नो का उत्तर देने के हकदार होगें।
परंतु अभियुक्त या उसके प्लीडर द्वारा इसके स्वरूप कोई विधि का प्रश्न उठाया जाता है तो अभियोजन न्यायालय की अनुमति से उस प्रश्न पर अपना निवेदन प्रस्तुत कर सकेगा।

(11) दोषमुक्ति या दोषसिद्धि का निर्णय :- {धारा 235 Crpc}


i) बहस तथा विधि प्रश्न सुनने के पश्चात् न्यायाधी मामले में अपना निर्णय देगा। {धारा 235(1)}

ii) यदि न्यायाधीश अभियुक्त को दोषसिद्ध करता है तथा उसे परिवीक्षा पर नहीं छोड़ता है या धारा 360 के अधीन कार्यवाही नहीं करता है तो न्यायाधीश दण्ड के प्रश्न पर अभियुक्त पर सुनेगा और विधि के अनुसार अपना निर्णय देगा। {धारा 235(2)}

बर्न स्टैण्डर्ड कम्पनी बनाम भारत संघ 1991, उच्चतम न्यायालय

अभिनिर्धारित :- दोषसिद्ध व्यक्ति को दण्डित करने के लिए अर्थात् दण्डादेश पारित करने के लिए कोई तिथि नियत की जानी चाहिए। दोषसिद्धि का आदेश तथा दण्डादेश एक ही दिन पारित नहीं किया जाना चाहिए।

अलाउद्दीन मियॉ बनाम बिहार राज्य, 1984, उच्चतम न्यायालय

अभिनिर्धारित :- दण्डादेश दिए जाने से पूर्व सुनवाई का अवसर दिए जाने का उपबंध आज्ञापक है।

(12) पूर्व दोषसिद्धि :- {धारा 236 Crpc}


यदि अभियुक्त पर धारा 211(7) के उपबंधों के अधीन पूर्व दोषसिद्धि का आरोप लगाया गया हो तथा अभियुक्त द्वारा ऐसे आरोप को स्वीकार न किया गया हो तो न्यायाधीश अभियुक्त को धारा 229 या 235 के अधीन दोषसिद्ध करने के पश्चात् ऐसी पूर्व दोषसिद्धि के सम्बन्ध में साक्ष्य ले सकेगा तथा उस पर निष्कर्ष अभिलिखित करेगा।


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परंतु जब तक अभियुक्त को धारा 229 या 235 के अधीन दोषसिद्ध न कर दिया गया हो तब तक निम्न में से कोई कार्य नहीं किया जाएगा-

a) ऐसा आरोप न्यायाधीश द्वारा पढकर नहीं सुनाया जाएगा;
b) न ही अभियुक्त से उस पर अभियोजन करने को कहा जाएगा और
c) न ही अभियोजन द्वारा उसके द्वारा दिए गए किसी साक्ष्य में पूर्व दोषसिद्धि का निर्देश किया जाएगा।

B) धारा 199(2) की परिधि में आने वाले मामलों में सत्र न्यायालय के समक्ष विचारण की प्रक्रिया :- {धारा 237 सपठित धारा 244 से धारा 250 तक Crpc}


इस भाग में यह बताया गया की धारा 199(2) की परिधि में आने वाले मानहानि के मामलों में सत्र न्यायालय द्वारा विचारण की किस प्रक्रिया का अनुसरण किया जाएगा |

(1) धारा 199(2) की परिधि में आने वाले मामलों में के लिए सत्र न्यायालय द्वारा कौन सी प्रक्रिया का अनुसरण किया जाएगा :- {धारा 237(1) Crpc}


धारा 199(2) की परिधि में आने वाले मानहानि के मामलों में सत्र न्यायालय द्वारा विचारण की उस प्रक्रिया का अनुसरण किया जाएगा, जिसका मजिस्ट्रेट द्वारा पुलिस रिपोर्ट से अन्यथा संस्थित वारण्ट मामलों के विचारण में किया जाता है। पुलिस रिपोर्ट से अन्यथा संस्थित वारण्ट मामलों के विचारण की प्रक्रिया का उल्लेख धारा 244 से धारा 250 तक में किया गया है।
परंतु जिस व्यक्ति के विरूद्ध अपराध किया गया है सत्र न्यायालय द्वारा उसकी परीक्षा अभियोजन साक्षी के रूप में की जाएगी।

(2) कार्यवाही का बंद कमरे में किया जाना :- {धारा 237(2) Crpc}


यदि दोनों में से कोई पक्षकार इच्छुक हो या न्यायालय उचित समझता हो तो ऐसे मामलों का गोपनीय विचारण या बंद कमरे में विचारण किया जाएगा।

(3) यदि अभियुक्त को उन्मोचित या दोषसिद्ध किया जाता है तब प्रक्रिया :- {धारा 237(3) Crpc}


यदि न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि अभियुक्त या एक से अधिक अभियुक्त है तो सभी अभियुक्तों या उनमें किन्हीं अभियुक्तों के विरूद्ध अभियोग लगाने का कोई उचित आधार नहीं है तो न्यायालय द्वारा उस व्यक्ति के विरूद्ध कारण दर्शाओ नोटिस जारी किया जा सकेगा जिसके विरूद्ध ऐसा मानहानि का अपराध किया जाना अभिकथित है (अर्थात अभियोजक / परिवादी)। ऐसे नोटिस के माध्यम से उससे यह कारण दर्शित करने की अपेक्षा की जाएगी कि उसे अभियुक्त या एक से अधिक है तो सभी या किन्हीं को प्रतिकर देेने का आदेश क्यों न दिया जाए।

परंतु राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल तथा संघ राज्यक्षेत्र के प्रशासक के विरूद्ध कारण दर्शाओ नोटिस जारी नही किया जाएगा।

(4) अभियुक्त को प्रतिकर की कितनी राशि दिलवायी जाएगी :- {धारा 237(4) Crpc}


जिस व्यक्ति को न्यायालय द्वारा कारण दर्शाओं नोटिस जारी किया गया है यदि उस व्यक्ति द्वारा कारण दर्शित नहीं किये जाते है या उचित कारण दर्शित नहीं किये जाते हैं तो न्यायाधीश ऐसे व्यक्ति के विरूद्ध आदेश पारित करेगा कि ऐसा व्यक्ति अभियुक्त को या एक से अधिक है तो उनमें से प्रत्येक को या किसी को 1000 रूपये का प्रतिकर दे।

(5) प्रतिकर का वसूल किया जाना :- {धारा 237(5) Crpc}


धारा 237(4) के अधीन निर्णीत किए गए प्रतिकर को ऐसे वसूला जाएगा कि मानो वह मजिस्टेªट द्वारा अधिरोपित किया गया जुर्माना हो।

(6) प्रतिकर का आदेश किसी अन्य सिविल या दाण्डिक दायित्व से छूट प्रदान नहीं करता है :- {धारा 237(6) Crpc}


ऐसा प्रतिकर दिए जाने के आदेश के कारण अन्य सिविल या दाण्डिक कार्यवाहियॉ बाधित नहीं होगी।

किंतु अभियुक्त व्यक्ति को इस धारा के अधीन दी गई रकम का हिसाब किसी पश्चात्वर्ती सिविल वाद में पीड़ित व्यक्ति के पक्ष मे दिए गए प्रतिकर के निर्णय में लिया जाएगा।

(7) इस धारा के अधीन दिया गया आदेश प्रतिकर योग्य है :- {धारा 237(7) Crpc}


धारा 237(4) में दिया गया आदेश अपील योग्य है और ऐसे आदेश की अपील उच्च न्यायालय मे की जाएगी।

(8) प्रतिकर देने का आदेश कब तक लम्बित रहेगा :- {धारा 237(8) Crpc}


प्रतिकर देने के आदेश की वसूली अपील लम्बित रहने तक या जब तक अपील अनुज्ञात करने की अवधि बीत न जाए तब तक स्थगित रहेगी।

Criminal Procedure Code/Crpc Bare Act Download – Link


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