CrPc Chapter 17 Charge : Simplified Overview For Legal Understanding Part-1

आज हम जानेंगें दंड प्रक्रिया संहिता/ Crpc आरोप/Charge {Chapter 17 of Crpc} के बारें में जो की यह बताता है की न्यायालय जब किसी व्यक्ति पर विचारण शुरू करता है तो यह विचारण की प्रथम स्थिति है इसके बाद ही न्यायालय में विचारण शुरू होता है | Crpc in hindi

आरोप/Charge {Chapter 17 of Crpc} :-


  1. अध्याय 17/Chapter 17 of Crpc (धारा 221-224) Crpc आरोप से सम्बंधित है | यह अध्याय निम्न दो भागो में विभाजित है :-
  2. आरोपों का प्रारूप (धारा 211-217)
  3. आरोपो का संयोजन (धारा 218-224) |
  4. धारा 2(b) Crpc आरोप को परिभाषित करती है | परिभाषा निम्न है :-

    “आरोप के अंतर्गत, जब आरोप में एक से अधिक शीर्ष आरोप का कोई भी शीर्ष है |”

                  परन्तु यह आरोप की परिभाषा न होकर एक स्पष्टीकरण अधिक प्रतीत होती है | वास्तव में आरोप अभियुक्त द्वारा कारित अभिकथित अपराध का न्यायालय द्वारा लगाया गया है एक औपचारिक दोषारोपण है |

  • यह एक न्यायिक कृत्य है | यह स्वच्छ विचारण की एक अनिवार्य अपेक्षा है | इसका उद्देश्य अभियुक्त को उसके विरुद्ध मामले का ज्ञान कराकर उसे प्रभावी प्रतीक्षा का अवसर प्रदान करना है |
  • समन मामले में आरोप का लिखित विरचन आवयश्क नही होता है | परन्तु वारंट मामले में आरोप का लिखित विरचन आवयश्क है |
  • आरोप का प्रारूप  द्वितीयक अनुसूची के प्रारूप संख्या 32 में दिया गया है |

अन्य पढ़े :- Crpc Sec 82 to Sec 86 | धारा 82 से धारा 86 दंड प्रक्रिया संहिता


आरोप की अन्तर्वस्तु :-


आरोप की अंतर्वस्तु में निम्नलिखित बातों का उल्लेख होगा :-

  1. अभियुक्त पर आरोपित अपराध का उल्लेख किया गया है | {धारा 211(1)Crpc}
  2. उस अपराध का सृजन करने वाली विधि यदि उस अपराध को कोई विनिर्दिष्ट नाम देती है तो आरोप में उसका वर्णन उसी नाम से किया जायगा | {धारा 211(2)Crpc}
  3. उस अपराध का सृजन करने वाली विधि यदि उस अपराध को कोई विनिर्दिष्ट नाम न देती है तो उस अपराध की इतनी परिभाषा दी जायगी जिससे अभियुक्त को इस बात का ज्ञान हो जाय की उस पर किस अपराध का आरोप है | {धारा 211(3)Crpc}
  4. सम्बंधित विधि एवंम उसकी निश्चित धारा (जिसके लिए अपराध किया गया है ) का उल्लेख किया जायगा | {धारा 211(4)Crpc}
  5. आरोप न्यायालय की भाषा में लिखा जायगा | {धारा 211(6)Crpc}
  6. यदि अभियुक्त किसी पूर्व दोषसिद्धि के कारण अतिरिक्त या वर्धित दण्ड का भागी है तो आरोप में पूर्व दोषसिद्धि की तिथि, समय, तथा स्थान का उल्लेख किया जायगा | {धारा 211(7)Crpc}
  7. अभियुक्त को अपराध के समय, स्थान, या जिस वास्तु के सम्बन्ध में अपराध किया गया है उस व्यक्ति या वस्तु के बारे में विशिष्टियों का उल्लेख किया जायगा | {धारा 212(1)Crpc}

      यदि अभियुक्त पर आपराधिक न्यास भंग या आपराधिक दुर्विनियोग का आरोप है तो उतना ही पर्याप्त होगा की उन विशिष्ट मतों का जिनके विषय में अपराध किया गया है या उस एकल राशि का विनिर्देश या उस चल सम्पति का वर्णन क्र दिया जाये जिसके विषय में अपराध किया जाना अभिकथित है | इस प्रकार विरचित आरोप धारा 219 के अर्थों में एक ही अपराध के आरोप समझे जायेंगे परन्तु यह की ऐसी तिथियों में से प्रथम तथा अंतिम तिथि के बीच का समय एक वर्ष से अधिक न हो | {धारा 212(2)Crpc}

  • यदि धारा 211 तथा 212 में वर्णित विशिष्टियाँ अभियुक्त को उस पर लगाए गए आरोप या आरोपो के बारे में समुचित जानकारी देने के लिए अपर्याप्त हो तो मजिस्ट्रेट द्वारा आरोप में उस रीति का भी उल्लेख किया जायगा जिससे अभिकथित अपराध किया गया है | {धारा 213Crpc}

आरोप के विरचन में त्रुटी या लोप का प्रभाव :-


  1. आरोप में अपराध या अन्य विशिष्टियों का कथन करने में हुई किसी त्रुटी या लोप को तात्विक नही माना जायगा | जब तक की अभियुक्त ऐसी त्रुटी या लोप के कारण भ्रमित न हो गया हो तथा न्याय की विफलता न हुई हो | {धारा 215)Crpc}
  2. धारा 464 के अनुसार आरोप के विरचन में त्रुटी या लोप के कारण न्यायालय के निष्कर्ष, दण्डादेश या आदेश अविधिमान्य न समझे जायेंगे | तब तक की न्याय की विफलता न हुई हो |

        यह धारा यह भी उपबन्ध करती है की यदि आरोप में किसी त्रुटी या लोप या अनियमितता के कारण न्याय की विफलता हुई है तो अभियुक्त का पुनःविचारण किया जायगा |

  • यह विनिश्चित करने के लिए की क्या आरोप में किसी त्रुटी या लोप के कारण न्याय की विफलता हुई है | न्यायालय को उस रीति को विचार में लेना चाहिये जिस रीती से अभियुक्त ने अपनी प्रतिरक्षा की थी |

कहाण सिंह बनाम हरियाणा राज्य, 1971, सुप्रीम कोर्ट


अभिनिर्धारित :- आरोप विरचित करने का उद्देश्य अभियुक्त को उस पर किये गये दोषारोपण को संसूचित करना है और यदि अभियुक्त को दोषारोपण आवयश्क रूप से संसूचित कर दिया गया था तो आरोप में किसी त्रुटी या लोप को घातक नही माना जा सकता | यदि अभियुक्त को ऐसी त्रुटी या लोप के कारण प्रभावी प्रतिरक्षा करने में कोई हानि नही हुई थी |   

Criminal Procedure Code/Crpc Bare Act Download – Link

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