Chapter 21 of Crpc : Simplified the Concept of Summary trial in Hindi {Sec260 to Sec 265}

आज हम जानेंगें संक्षिप्त विचारण/Summary trial {Sec 260 to Sec 265 Crpc} के बारे बारे में जो की दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय 21/Chapter 21 of Crpc {Sec 260 to Sec 265 Crpc} में उपबंधित है | संक्षिप्त विचारण मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाता है और ये समन मामलो में किया जाता है |

Table of Contents

अध्याय- 21 संक्षिप्त विचारण/Chapter 21 of Crpc Summary trial (Sec 260 to Sec 265 Crpc)


सर्वप्रथम हम जानेंगें संक्षिप्त विचारण/Summary trial से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य | जो की निम्न है :-

कुछ महत्वपूर्ण तथ्य :-


(1) अध्याय-21 {धारा 260 से धारा 265 तक Crpc} संक्षिप्त विचारण से संबधित है। इस अध्याय के उपबंध अध्याय 20 तथा धारा 250 के साथ पठनीय है।

नोट :- यह अध्याय, अध्याय-20 के साथ इसलिए पठनीय है क्योंकि संक्षिप्त विचारण में वही प्रक्रिया अपनाई जाती है जो समन मामलों के विचारण में अपनाई जाती है। इसी के साथ यह अध्याय धारा 250 के साथ इसलिए पठनीय है क्योंकि धारा 250 उचित कारण के बिना अभियोग के लिए प्रतिकर का उपबंध करती है और धारा 250(8) यह प्रावधानित करता है कि धारा 250 समन मामलों तथा वारण्ट मामलों दोनों को लागू होगी और संक्षिप्त विचारण समन मामलों का ही होता है।

(2) संक्षिप्त विचारण नियमित विचारण का एक संक्षिप्त रूप है और छोटे मामलों के विचारण में समय बचाने हेतु इसका प्रयोग किया जाता है।

किसी मामले को संक्षिप्ततः विचारित किए जाने योग्य घोषित किए जाने का तात्पर्य यह नहीं है कि मजिस्ट्रेट उस मामले को संक्षिप्ततः विचारित करने के लिए आबद्ध होगा। यह विनिश्चित करने का उसे विवेकाधिकार प्राप्त है परंतु विवेधाधिकार का प्रयोग प्रत्येक मामले की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर न्यायिकतः किया जाना चाहिए।

संक्षिप्त विचारण करने की शक्ति :-


A) किस मजिस्ट्रेट द्वारा संक्षिप्त विचारण किया जा सकता {धारा 260(1) सपठित धारा 261 Crpc}B) किस अपराध का संक्षिप्त विचारण किया जा सकता है {धारा 261(1) Crpc}C) यदि संक्षिप्त विचारण के दौरान यदि मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत हो की संक्षिप्त विचारण नही किया जाना तब प्रक्रिया
{धारा 262(2) Crpc}
संक्षिप्त विचारण करने की शक्ति

A) किस मजिस्ट्रेट द्वारा संक्षिप्त विचारण किया जा सकता है :- {धारा 260(1) सपठित धारा 261 Crpc}


धारा 260(1) के अंतर्गत निम्न मजिस्ट्रेट किसी अपराध का संक्षिप्त विचारण करने हेतु सशक्त हैः-

a) मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट;

b) महानगर मजिस्ट्रेट;

c) कोई प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेटट, जो उच्च न्यायालय द्वारा इस निमित्त विशेषतया सशक्त किया गया हो।

इसी के साथ धारा 261 यह प्रावधानित करती है कि उच्च न्यायलय द्वारा सशक्त कोई द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्टेªट भी संक्षिप्त विचारण कर सकता है।

d) द्वितीय वर्ग के मजिस्ट्रेटो द्वारा संक्षिप्त विचारण :- {धारा 261 Crpc}


उच्च न्यायालय किसी द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट को संक्षिप्त विचारण करने के लिए सशक्त कर सकती है किंतु सिर्फ ऐसे अपराध का संक्षिप्त विचारण द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा किया जा सकता है जो केवल जुर्माने या जुर्माने सहित या रहित 6 माह के कारावास से दण्डनीय अपराध है इसी के साथ ऐसे अपराध के प्रयत्न या दुष्प्रेरण का भी संक्षिप्त विचारण किया जा सकता है।

B) किस अपराध का संक्षिप्त विचारण किया जा सकता है :- {धारा 260(1) Crpc}


धारा 260(1) में वर्णित अपराधों का संक्षिप्त विचारण किया जा सकता है। ऐसे अपराध निम्नवत् हैंः-

  • ऐसे अपराध जो मृत्युदण्ड, आजीवन कारावास या दो वर्ष से अधिक अवधि के कारावास से दण्डनीय नहीं है, अर्थात् जुमाने सहित या रहित 2 वर्ष तक की अवधि के कारावास से या केवल जुर्माने से दण्डनीय अपराध ही संक्षिप्त विचारण योग्य हैं;
  • धारा 379, 380 व 381 भा0द0सं0 के अधीन दण्डनीय चोरी किंतु ऐसी चोरी में चुराई हुई सम्पत्ति का मूल्य 2000रूपये से अधिक नहीं होना चाहिए;
  • धारा 411 भा0द0सं0 के अधीन दण्डनीय चोरी की सम्पत्ति को प्राप्त करने या रखे रखने का अपराध किंतु चुराई हुई सम्पत्ति का मूल्य दो हजार रूपये से अधिक नहीं होना चाहिए;
  • धारा 414 भा0द0सं0 के अधीन दण्डनीय चुराई हुई सम्पत्ति को प्राप्त करने या या रखे रखने का अपराध किंतु चुराई हुई सम्पत्ति का मूल्य दो हजार रूपये से अधिक नहीं होना चाहिए;
  • धारा 454 और 456 भा0द0सं0 के अधीन दण्डनीय अपराध;
  • धारा 504 भा0द0सं0 के अधीन लोक शांति भंग कराने को प्रकोपित करने के आशय से अपमान तथा धारा 506 भा0द0सं0 के अधीन आपराधिक अभित्रास का अपराध जो कि दो वर्ष तक के कारावास से या जुर्माने से या दोनों से दण्डनीय है;
  • उपरोक्त अपराधों में से किसी अपराध का दुष्प्रेरण;
  • उपरोक्त अपराधों में से किसी अपराध का प्रयत्न;
  • ऐसा कोई अपराध जिसके सम्बंध में पशु अतिचार अधिनियम, 1871 की धारा 20 के अधीन परिवाद दाखिल किया जा सकता है।

C) संक्षिप्त विचारण के दौरान मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि मामले का संक्षिप्त विचारण नहीं किया जाना चाहिए, तब प्रक्रिया :- {धारा 260(2) Crpc}


यदि संक्षिप्त विचारण करने वाले मजिस्ट्रेट को विचारण के दौरान यह प्रतीत होता है कि मामला इस प्रकार का है कि उसका संक्षिप्त विचारण किया जाना वांच्छनीय नहीं है तो मजिस्ट्रेट मामले को संहिता के अंतर्गत अन्यथा विचारित करने को अग्रसर होगा और किन्हीं साक्षियों को, जिनकी परीक्षा की जा चुकी है, पुनः बुलाएगा।

संक्षिप्त विचारण की प्रक्रिया :- {धारा 262 Crpc}


a) संक्षिप्ततः विचारित मामलों में वही प्रक्रिया अपनाई जाएगी जो कि समन मामलों हेतु अध्याय-20 में प्रावधानित है। {धारा 262(1)}


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b) संक्षिप्ततः विचारित मामले में 3 माह से अधिक अवधि के कारावास का दण्ड नहीं दिया जा सकता है। यदि 3 माह से अधिक के कारावास का दण्ड देना आवश्यक हो तो अध्याय-20 के अंतर्गत विचारण किया जाना चाहिए। {धारा 262(2)}

संक्षिप्त विचारणों में अभिलेख :- {धारा 263 Crpc}


संक्षेपतः विचारित मामलें में मजिस्ट्रेट राज्य सरकार द्वारा निर्धारित प्रारूप में निम्न विवरण दर्ज करेगा-

  • मामले का क्रम संख्याक;
  • अपराध किए जाने की तिथि;
  • रिपोर्ट या परिवाद की तिथि;
  • परिवादी का नाम;
  • अभियुक्त का नाम, उसके माता-पिता का नाम और उसका निवास;
  • वह अपराध जिसका परिवाद किया गया है और वह अपराध जो साबित हुआ है तथा धारा 260(1)(पप), 260(1)( पपप) और 260(1)(पअ) के अधीन यदि अपराध सम्पत्ति से संबधित है तो उस सम्पत्ति का मूल्य;
  • अभियुक्त का अभिवचन और उसकी परीक्षा;
  • निष्कर्ष;
  • दण्डादेश या अन्य अंतिम आदेश;
  • कार्यवाही समाप्त होने की तारीख।

संक्षेपतः विचारित मामलों में निर्णय :- {धारा 264 Crpc}


यदि संक्षेपतः विचारित मामलें में अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन नही करता है तो मजिस्ट्रेट साक्ष्य के सारांश और निष्कर्ष के कारणों का संक्षिप्त कथन देते हुए निर्णय अभिलिखित करेगा।

अभिलेख और निर्णय की भाषा :- {धारा 265 Crpc}


a) प्रत्येक अभिलेख और निर्णय न्यायालय की भाषा में लिखा जाएगा। {धारा 265(1)}


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b) उच्च न्यायालय विचारण करने वाले मजिस्ट्रेट को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा नियुक्त किए गए किसी अधिकारी के माध्यम से अभिलेख तथा निर्णय अभिलिखित तथा तैयार कराने हेतु सशक्त कर सकता है। ऐसे अधिकारी द्वारा तैयार किए गए निर्णय तथा अभिलेख को विचारण मजिस्ट्रेट द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा। {धारा 265(2)}

Criminal Procedure Code/Crpc Bare Act Download – Link

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