Section 438 of CrPC

Section 438 of CrPC: A Comprehensive Guide to Anticipatory Bail”

आज हम जानेंगें दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438/Crpc Sec 438 Anticipatory bail के बारे में जो की अग्रिम जमानतका प्रावधान करती है इसके अनुसार यदि किसी व्यक्ति को यह आशंका हो की पुलिस उसे किसी अजमानतीय अपराध के लिए गिरफ्तार कर लेगी तो वह न्यायालय से बिना जेल जाए जमानत ले सकता है | Crpc in Hindi

Table of Contents

गिरफ्तारी की आशंका करने वाले व्यक्ति की जमानत मंजूर करने के लिए निदेश / अग्रिम जमानत :- Crpc Sec 438 Anticipatory bail

(1) धारा 438 Crpc संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य में विलुप्त कर दी गई थी किंतु उत्तर प्रदेश अधिनियम संख्या 4 वर्ष 2019 की धारा 2 के द्वारा यह धारा उ0प्र0 राज्य में पुनः लागू कर दी गई है। यह धारा उत्तर प्रदेश राज्य में 6 जून 2019 से लागू हुई। इसी के साथ उत्तर प्रदेश राज्य में इस धारा में 4 खण्ड भी जोड़े गये है।

(2) Crpc धारा 438 के अंतर्गत उच्च न्यायालय तथा सत्र न्यायालय को समवर्ती अधिकारिता प्राप्त है।

3) अग्रिम जमानत हेतु कौन आवेदन कर सकता है और किस न्यायालय में आवेदन कर सकता है :- धारा 438(1) Crpc

ऐसा व्यक्ति जिसे यह विश्वास करने का कारण हो कि उसे अजमानतीय अपराध के दोषारोपरण पर गिरफ्तार किया जा सकता है वह उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय में आवेदन कर सकता है। न्यायालय जमानत प्रार्थना पत्र पर विचार करते समय अन्य बातों के साथ निम्न बातों को ध्यान में रखेगा-

  • अभियोग की प्रकृति और गम्भीरता;
  • आवेदक के पूर्व के कृत्य अर्थात क्या आवेदक को पूर्व में किसी संज्ञेय अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया था;
  • न्याय से भागने की आवेदक की सम्भाव्यता;
  • क्या आवेदक को इस प्रकार गिरफ्तार कराकर क्षति पहुॅचाने या अपमानित करने के उद्देश्य से अभियोग लगाया गया है।

न्यायालय उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए जमानत प्रार्थना पत्र के सम्बंध में निम्न आदेश पारित कर सकता है:-

1) अग्रिम जमानत मंजूर करने के लिए अंतरिम आदेश देगा; या

इस स्थिति में न्यायालय ऐसे आवेदन पर यह निर्देश देगा कि यदि ऐसी गिरफ्तारी की जाती है तो आवेदक को जमानत पर रिहा कर दिया जाए।

2) तत्काल आवेदन को अस्वीकार कर देगा

इस स्थिति में पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी आवेदक को बिना वारण्ट गिरफ्तार करने के लिए मुक्त होगा।

4)न्यायालय द्वारा आवेदन की सूचना लोक अभियोजक और पुलिस अधीक्षक को देना :- धारा 438(1-A) Crpc

  • यह उपधारा दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2005 की धारा 38 द्वारा प्रतिस्थापित की गई।
  • यदि न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत मंजूर करने के लिए अंतरिम आदेश दिया जाता है तो न्यायालय द्वारा ऐसे आदेश की सूचना लोक अभियोजक और पुलिस अधीक्षक को दी जाएगी। ऐसी सूचना की अवधि सात दिवस से कम की नहीं होगी। सूचना के साथ न्यायालय द्वारा आदेश की एक प्रति भी भेजी जाएगी ताकि न्यायालय द्वारा आवेदन की अंतिम रूप से सुनवाई के समय लोक अभियोजक को सुनवाई का युक्ति युक्त अवसर मिल सके।

5) लोक अभियोजक के आवेदन पर आवेदक की उपस्थिति को बाध्यकारी करने का निदेश :- धारा 438(1-B) Crpc

  • यह उपधारा दण्ड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2005 की धारा 38 द्वारा प्रतिस्थापित की गई।
  • यदि लोक अभियोजक द्वारा किए गए आवेदन पर न्यायालय का यह विचार है कि अग्रिम जमानत चाहने वाले आवेदक की न्यायालय में उपस्थिति न्यायहित में आवश्यक है तो अंतिम आदेश या अंतिम सुनवाई के समय आवेदक की न्यायालय में उपस्थिति बाध्यकर होगी।

6) न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत मंजूर करते समय शर्तें अधिरोपित करना :- धारा 438(2) Crpc

जब न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत मंजूर की जाती है तो न्यायालय द्वारा निम्न शर्तें अधिरोपित की जा सकती हैं-

  • पुलिस अधिकारी की अपेक्षा किए जाने पर आवेदक पूछताछ हेतु स्वयं को उपलब्ध कराएगा;
  • आवेदक मामले के तथ्य एवं परिस्थितियों से परिचित किसी व्यक्ति को उत्प्रेरणा, धमकी या वचन नहीं देगा;
  • आवेदक न्यायालय की पूर्व अनुमति के बिना भारत नहीं छोड़ेगा;

Crpc धारा 437(3) की परिधि में आने वाली शर्तें ऐसे अधिरोपित कर सकेगा कि मानों जमानत धारा 437 के अधीन मंजूर की गई है।


अन्य पढ़ें :- Crpc Sec 82 to Sec 86 | धारा 82 से धारा 86 दंड प्रक्रिया संहिता


7) यदि आवेदक को जमानत मंजूर करने के पश्चात् पुलिस द्वारा बिना वारण्ट गिरफ्तार किया जाता है तब प्रक्रिया :- धारा 438(3) Crpc

  • यदि आवेदक को पुलिस थाने के भार साधक अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना गिरफ्तार कर लिया जाता है तब प्रक्रिया तब ऐसा व्यक्ति गिरफ्तारी के समय या यदि वह अभिरक्षा में है तो किसी समय यदि जमानत देने के लिए तैयार है तो उसे जमानत पर छोड़ दिया जाएगा।
  • यदि मामले का संज्ञान लेने वाले मजिस्टेªट की राय यह है कि आवेदक के विरूद्ध प्रथम बार वारण्ट जारी किया जाना चाहिए तब प्रक्रिया इस स्थिति में संज्ञान लेने वाले मजिस्टेªट द्वारा ऐसे व्यक्ति के विरूद्ध जमानतीय वारण्ट जारी किया जा सकता है।

8)अग्रिम जमानत किन मामलों में नही दी जा सकेगी :- धारा 438(4) Crpc

अग्रिम जमानत निम्न मामलों में नहीं दी जा सकती हैं-

a)यदि कोई व्यक्ति धारा 376(3) या 376।ठ या 376क्। या 376क्ठ का अपराध करता है;

b) उ0प्र0 राज्य हेतु धारा 438 के अधीन निम्न मामलों में जमानत नहीं दी जा सकती है-

i) विधि-विरूद्ध क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 के अधीन किए गए अपराधों में;

ii) स्वापक औषधि और मनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 के मामलों में;

iii) शासकीय गुप्त बात अधिनियम, 1923 के मामलों में;

iv) उत्तर प्रदेश गिरोहबन्द और समाज विरोधी क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम, 1986 के मामलों में;

v) ऐसे अपराधों में जिनमें मृत्युदंडादेश अधिनिर्णीत किया जा सकता है। {धारा 438(6) सिर्फ उ0प्र0 राज्य हेतु}

9) 0प्र0 राज्य में अग्रिम जमानत के आवेदन का निस्तारण कितनी अवधि में किया जा सकेगा :- धारा 438(5) सिर्फ उ0प्र0 राज्य हेतु

उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत मंजूर किये जाने के किसी आवेदन का निस्तारण आवेदन किए जाने की तिथि से 30 दिनो के भीतर किया जाएगा।

Criminal Procedure Code/Crpc Bare Act Download – Link

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