आज हम जानेंगें दंड प्रक्रिया के अध्याय 20/Chapter 20 of CRPC(Sec 251 to Sec 259 तक Crpc) के बारे में, जो की उस प्रक्रिया का वर्णन करता है जो की मजिस्ट्रेट द्वारा समन मामलो में विचारण के लिए अपनाई जाती है :- Crpc in Hindi crpc full form- criminal procedure code
अध्याय- 20 मजिस्ट्रेट द्वारा समन मामलों का विचारण/Chapter 20 of CRPC (Sec 251 to Sec 259 तक Crpc)
मजिस्ट्रेट द्वारा जो समन मामलो में जो प्रक्रिया अपनाई जाती है वह निम्नवत है :-
(1) अभियोग का सारांश बताया जाना :- Sec 251 Crpc in hindi
जब समन मामलों में अभियुक्त मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होता है या लाया जाता है तब मजिस्ट्रेट उसे दोषारोपण का सारांश बताएगा तथा उससे यह पूछेगा कि क्या वह दोषी होने का अभिवचन करता है या प्रतिरक्षा करना चाहता है। ऐसे मामलों में आरोप को औपचारिक रूप से लिखित रूप में विरचित करना आवश्यक नहीं होगा।
(2) दोषी होने के अभिवाक् पर दोषसिद्धि :- Sec 252 Crpc
यदि अभियुक्त दोषी होने का अभिवचन करता है तो मजिस्ट्रेट अभियुक्त द्वारा प्रयोग किए गए शब्दों में ही उसके अभिवचन को लेखबद्ध करेगा तथा ऐसे अभिवचन के आधार पर अभियुक्त को दोषसिद्ध करेगा।
(3) छोटे मामलों में अभियुक्त की अनुपस्थिति में दोषी होने के अभिवाक् पर दोषसिद्धि :- Sec 253 Crpc
a) छोटे अपराध के मामलों में अभियुक्त न्यायालय में उपस्थित हुए बिना दोषी होने का अभिवचन कर सकता है। ऐसा उन मामलों में किया जा सकता है जिनमें धारा 206 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट द्वारा समन जारी किया गया हो। ऐसे मामलों में अभियुक्त डाक द्वारा या संदेशवाहक के द्वारा पत्र के माध्यम से दोषी होने का अभिवचन कर सकता है। अभियुक्त को ऐसे अभिवचन के साथ समन में विनिर्दिष्ट जुर्माने की रकम भी मजिस्टेªट को भेजनी होगी। धारा 253(1)
उपरोक्त धारा में छोटे अपराध से तात्पर्य ऐसे अपराधों से है जो केवल एक हजार से अनधिक जुर्माने से दण्डनीय होते हैं किंतु इसके अंतर्गत मोटर यान अधिनियम के अधीन दण्डनीय अपराध शामिल नहीं है। धारा 206(2)
b) इसके पश्चात् अभियुक्त द्वारा संदेशवाहक के माध्यम से भेजे गए पत्र के आधार पर मजिस्ट्रेट उसे दोषसिद्ध करेगा और अभियुक्त द्वारा भेजी गई राशि को जुर्माने में समायोजित करेगा या यदि अभियुक्त की ओर से उसका प्राधिकृत प्लीडर दोषी होने का अभिवचन करता है वहाॅ मजिस्टेªट प्लीडर द्वारा प्रयुक्त शब्दों में अभिवाक् को अभिलिखित करेगा और ऐसे अभिवाक् के आधार पर अभियुक्त को दोषसिद्ध करेगा। धारा 253(2)
(4) प्रक्रिया जब दोषसिद्धि न किया जाए :- Sec 254 Crpc
a) यदि मजिस्ट्रेट अभियुक्त धारा 252 या धारा 253 के अधीन दोषसिद्ध नहीं करता है तो वह अभियोजन को सुनेगा तथा अभियोजन के समर्थन में पेश किए गए सभी साक्ष्यों को लेगा। इसके पश्चात् वह अभियुक्त को सुनेगा तथा उसके द्वारा अपनी प्रतिरक्षा में पेश किए गए सभी साक्ष्यों को लेगा। धारा 254(1)
b) मजिस्ट्रेट अभियोजन या अभियुक्त के आवेदन पर किसी साक्षी को हाजिर होने या कोई दस्तावेज या कोइ्र अन्य वस्तु पेश करने को विवश करने हेतु समन जारी कर सकेगा। धारा 254(2)
c) मजिस्ट्रेट अभियुक्त या अभियोजन के आवेदन पर किसी साक्षी को समन करने से पूर्व इनसे यह अपेक्षा कर सकेगा कि साक्षी द्वारा विचारण के प्रयोजनों हेतु हाजिर होने में उसके लगे उचित व्यय को न्यायालय में जमा कर दे। धारा 254(3)
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(5) दोषमुक्ति या दोषसिद्धि :- Sec 255 Crpc
a) यदि धारा 254 में विनिर्दिष्ट साक्ष्यों और अपनी स्वप्रेरणा से पेश करवाए गए अतिरिक्त साक्ष्यों को लेने के पश्चात् मजिस्ट्रेट इस निष्कर्ष पर पहुॅचा है कि अभियुक्त दोषी नहीं है तो मजिस्ट्रेट अभियुक्त को दोषमुक्त कर देगा। धारा 255(1)
b) जहाॅ मजिस्ट्रेट इस निष्कर्ष पर पहुॅचता है कि अभियुक्त दोषी है और मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 325 और 360 के अधीन कार्यवाही नहीं की जाती है तो मजिस्ट्रेट विधि के अनुसार अभियुक्त के बारे में दण्डादेश देगा। धारा 255(2)
c) मजिस्ट्रेट धारा 252 या धारा 255 के अधीन किसी अभियुक्त को दोषसिद्ध कर सकता है यदि मजिस्ट्रेट का समाधान हो जाता है इससे अभियुक्त पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा और अभियुक्त द्वारा किए गए अपराध का विचारण करने के लिए मजिस्ट्रेट इस अध्याय के अधीन सशक्त है। फिर चाहे मामला परिवाद या समन किसी भी प्रकृति का हो। धारा 255(3)
(6) परिवादी का हाजिर न होना या उसकी मृत्यु :- Sec 256 Crpc
a) यदि मामला परिवाद का है और मजिस्ट्रेट द्वारा ऐसे परिवाद के आधार पर समन जारी कर दिया गया हो तथा अभियुक्त की हाजिरी के लिए दिन नियत कर दिया गया हो तब यदि परिवादी उस दिन अनुपस्थित रहता है और मजिस्ट्रेट की यह राय है कि किन्हीं कारणों से किसी अन्य दिन सुनवाई स्थगित करना ठीक नहीं है तो मजिस्ट्रेट अभियुक्त को दोषमुक्त कर देगा। धारा 256(1)
परंतु ऐसा आदेश तब नहीं दिया जाएगा जब परिवादी को वैयक्तिक हाजिरी से उन्मुक्ति मिल गई है और उसका प्रतिनिधित्व उसके प्राधिकृत प्लीडर द्वारा किया जा रहा है।
b) यदि परिवादी की अनुपस्थिति का कारण उसकी मृत्यु है तो भी मजिस्ट्रेट अभियुक्त को दोषमुक्त कर देगा। धारा 256(2)
(7) परिवाद को वापिस लेना :- Sec 257 Crpc
यदि अंतिम आदेश पारित किए जाने से पूर्व परिवादी मजिस्ट्रेट का यह समाधान कर देता है कि परिवाद को वापस लिए जाने के पर्याप्त आधार है तो मजिस्ट्रेट परिवाद को वापस लिए जाने की अनुमति दे सकता है और अभियुक्त को दोषमुक्त कर सकेगा। यदि एक से अधिक अभियुक्त है तो उन सभी या किन्हीं के विरूद्ध परिवाद वापस लिया जा सकता है।
(8) कुछ मामलों में कार्यवाही रोक देने की शक्ति :- Sec 258 Crpc
परिवाद से अन्यथा संस्थित समन मामलों में कोई प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट या मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अनुमति से कोई अन्य न्यायिक मजिस्ट्रेट निर्णय दिए जाने से पूर्व किसी भी अवस्था में कार्यवाही को रोक सकता है। परंतु उसे ऐसा करने के अपने कारणों को लेखबद्ध करना होगा।
यदि इस प्रकार कार्यवाही को रोके जाने से पूर्व मुख्य साक्षियों के साक्ष्य को अभिलिखित किया जा चुका था तो दोषमुक्ति का निर्णय दिया जाएगा। अन्य मामलों में अभियुक्त को उन्मोचित कर दिया जाएगा।
(9) समन मामलों को वारण्ट मामलों में संपरिवर्तित करने की न्यायालय की शक्ति :- Sec 259 Crpc
यदि किसी 6 माह से अधिक अवधि के कारावास से दण्डनीय अपराध से संबधित समन मामले के विचारण के दौरान मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि न्यायहित में उस अपराध का विचारण वारण्ट मामले के विचारण की प्रक्रिया के अनुसार किया जाना चाहिए तो ऐसा मजिस्ट्रेट वारण्ट मामलों के विचारण की प्रक्रिया के अनुसार उस मामले की पुनः सुनवाई कर सकता है तथा ऐसे साक्षियों को पुनः बुला सकता है जिनका परीक्षण किया जा चुका है।