मेहर के प्रकार/Types of Mehar

आज हम जानेंगें मेहर के प्रकार/Types of Mehar | मेहर मुस्लिम law के अनुसार विवाह के लिए एक आवश्यक तत्व है | जो पति द्वारा पत्नी को दिया जाता है |

फतवा-इ-काजी खाँ के अनुसार- “मेहर विवाह का एक ऐसा आवश्यक अंग है कि यदि विवाह के समय संविदा में उसका उल्लेख न हो, तो भी मुस्लिम law स्वतः ही संविदा के आधार पर मेहर की पूर्वधारणा कर लेगी।”

यदि विवाह से पहले स्त्री अपने मेहर के अधिकार का त्याग कर देती है या मेहर के बिना ही विवाह करने के लिये सहमत हो जाती है , तो ऐसा त्याग या सहमति अविधिमान्य होगा।

मेहर का महत्त्व

मेहर का इतना महत्व इसलिए है, ताकि पति के तलाक देने के अधिकार पर निर्बन्धन लगाया जा सके । अर्थात आसान शब्दों में कहे तो यह कह सकते है की मेहर का उद्देश्य पत्नी की सुरक्षा करना है | मुस्लिम विधि के अन्तर्गत पति अपनी इच्छा से कभी भी और किसी भी समय अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है, इसलिये मेहर का उद्देश्य पति की इस शक्ति के मनमाने प्रयोग पर रोक लगाना है। मेहर पति के तलाक देने की शक्ति से पत्नी की केवल रक्षा ही नहीं करता, बल्कि पति को एक से अधिक पत्नी रखने के अधिकार का प्रयोग करने से भी हतोत्साहित करता है |

अब्दुल कादिर बनाम सलीमा, 1886 इलाहबाद

न्यायमूर्ति श्री महमूद ने यह अभिनिर्धारित किया की – “मुस्लिम विधि में पति द्वारा विवाह की संविदा को आसानी से विच्छेदित किया जा सकता है है और एक से अधिक विवाह करने की आज़ादी और तलाक देने की आज़ादी पति को शक्ति प्रदान करते हैं। इसलिये विधि कर्ताओं द्वारा मेहर के भुगतान का नियम बनाया गया जिससे पति की अनिर्बंधित शक्ति पर अवरोध लगाया जा सके ।”

इसी कारण से पत्नी को मेहर दिया जाना मुस्लिम विवाह का एक आवश्यक अंग है । मेहर पारिवारिक सम्बन्धों की योजना में एक केन्द्रीय स्थान रखता है।

मेहर के प्रकार(Types of Mehar)

राशि के आधार पर मेहर दो वर्गों में बांटा जा सकता है-

(i) निश्चित मेहर (मेहर-इ-मुसम्मा) और

(ii) उचित (रिवाजी) मेहर (मेहर-इ-मिस्ल) ।

निश्चित मेहर (मेहर-इ-मुसम्मा)

निश्चित मेहर (मेहर-इ-मुसम्मा)
निश्चित मेहर (मेहर-इ-मुसम्मा)

यदि विवाह की संविदा में मेहर की धनराशि या सम्पत्ति का उल्लेख हो तो ऐसा मेहर निश्चित मेहर (Specified Dower) कहलाता है। यदि पति और पत्नी वयस्क और स्वस्थ्यचित्त के हों तो वे मेहर की धनराशि विवाह के समय स्वयं निर्धारित कर सकते हैं।

यदि संरक्षक द्वारा किसी अवयस्क बालक के विवाह की संविदा की जाती है, तो संरक्षक द्वारा विवाह के समय मेहर की धनराशि को निर्धारित किया जा सकता है और संरक्षक द्वारा निर्धारित मेहर की धनराशि बालक के ऊपर बाध्यकारी होगी। पति मेहर के रूप में पत्नी के लिये कितनी भी धनराशि दे सकता है, चाहे ऐसी धनराशी पति की स्वय शक्ति से परे क्यों न हो या इस बात से भी कोई फरक नही पढता है की मेहर के भुगतान के बाद उत्तराधिकारियों के लिये कुछ न बचे।

Also Read :- मेहर क्या होता है? महत्त्व, प्रकार और कब दिया जाता है

परन्तु हनफी विधि में मेहर की राशि किसी स्थिति में दस दिरहम से कम और मलिकी विधि में मेहर की राशि तीन दिरहम से कम नियत नहीं की जा सकती है । पैगम्बर मोहम्मद साहब ने गरीब मुसलमान पतियों के लिए यह निर्देश दिया कि वह मेहर के बदले में वह अपनी पत्नियों को कुरान की शिक्षा दें सकते है अर्थात कुरान की शिक्षा भी उचित मेहर है |

शिया विधी में मेहर की न्यूनतम राशि निर्धारित नहीं है।

निश्चित मेहर दो प्रकार का होता है

(1) मुअज्जल (तात्कालिक) मेहर और

(2) मुवज्ज्ल (आस्थगित ) मेहर।

मुअज्जल मेहर (Prompt Dower)

यह मेहर विवाह के बाद पत्नी द्वारा मांग किये जाने पर तत्काल देय होता है। अमीर अली ने मुअज्जल मेहर के सम्बन्ध में कहा है की पत्नी द्वारा मेहर के मुअज्जल भाग का भुगतान न किये जाने तक पति को सहवास करने से इन्कार कर सकती है। मुअज्जल मेहर के सम्बन्ध में निम्नलिखित बाते ध्यान देने योग्य हैं-

(1) मुअज्जल मेहर विवाह हो जाने पर तत्काल दिया जाता है या पत्नी की मांग किये जाने पर यह तत्काल देय होता है । मुअज्जल मेहर विवाह के पहले या बाद किसी भी समय पत्नी द्वारा वसूल किया जा सकता है। यदि विवाह पूर्णावस्था को प्राप्त नही हुआ है और मुअञ्जल मेहर की न देने के कारण पत्नी पति से अलग रहती है तो पति के द्वारा पत्नी पर लाया गया दाम्पत्य अधिकारों के पुनर्स्थापन का वाद खारिज कर दिया जायेगा और इस बात को की मुअज्जल मेहर पत्नी को नही दिया गया है , ऐसे वाद में पूर्ण प्रतिवाद माना जायेगा।

(2) मुअज्जल मेहर विवाह की पूर्णावस्था प्राप्त हो जाने के बाद मुवज्ज्ल मेहर में नही बदल जाता है और पत्नी को विवाह की पूर्णावस्था प्राप्त कर लेने के बाद भी मुअज्जल मेहर की वसूली का वाद दाखिल करने का पूरा अधिकार है। विवाह के पुर्णावस्था प्राप्त कर लेने से मेहर की अदायगी पर निम्न प्रभाव पड़ता है –

यदि मुअज्जल मेहर का भुगतान कर दिया गया है और पति द्वारा पत्नी पर दाम्पत्य अधिकारों के पुनर्स्थापन का वाद लाया जाता है तो पत्नी वाद में मेहर की अप्राप्ति का अभिवाक नही कर सकती है |

यदि विवाह पूर्णावस्था प्राप्त कर चूका है और पति द्वारा पत्नी को मुअञ्जल मेहर नही दिया गया है तो न्यायालय पति को इस शर्त पर डिक्री प्रदान कर सकता है कि पति पत्नी को मुअज्जल मेहर की धनराशि अदा करें।

अब्दुल कादिर बनाम सलीमा, 1886 इलाहबाद

तथ्य :- इस मामले तथ्य यह थे की अब्दुल कदीर और सलीमा की निकाह हुआ और दोनों के बीच 3 महीने सहवास होता रहा और एक दिन सलीमा अपने पिता घर के चली गई और फिर कभी लौटी नही | अब्दुल द्वारा सलीमा पर दाम्पत्य अधिकारों के पुनर्स्थापना का वाद लाया गया | सलीमा अपने प्रतिवाद में कहा की अब्दुल द्वारा उसपर क्रूरता की है और उसे तलाक दिया है और उसकी मेहर की धनराशि भी नही दी है | सालिमा 2 प्रतिवादों को साबित नही कर पाई और पति ने मेहर की धनराशि न्यायलय में जमा कर दी |

अभिनिर्धारित :- न्यायलय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया की पति दाम्पत्य अधिकारों के पुनर्स्थापन की डिक्री प्राप्त करने अधिकारी है |

मुवज्जल मेहर (Deferred Dower)

मुवज्जल मेहर निम्न दशाओं में देय होता है –

  • मृत्यु या
  • विवाह विच्छेद द्वारा विवाह के समाप्त हो जाने पर अथवा
  • करार द्वारा निर्धारित किसी निश्चित घटना के घटित होने पर |

अमीर अली के अनुसार विवाह का पूर्ण रूप से पालन कराने के उद्देश्य से और पति को विवश करने के उद्देश्य से भारत में मुवज्जल मेहर की राशि सामान्यतया अत्यधिक होती है।

मुवज्जल मेहर के विषय में निम्नलिखित बातें ध्यान देने योग्य हैं-

(1) मुबज्जल मेहर मृत्यु या विवाह विच्छेद द्वारा विवाह के विघटन होने पर देय होता है। इसलिये पत्नी मुवज्जल मेहर की मांग विवाह के विघटन के पूर्व नहीं कर सकती है। परन्तु यदि विवाह के विघटन के पहले मेहर के भुगतान किये जाने का कोई करार पति और पत्नी के बीच हुआ हो तो ऐसा करार मान्य और बन्धनकारी होता है।

(2) विवाह के विघटन अथवा निश्चित घटना के घटित होने से पहले पत्नी मुवज्जल मेहर की मांग नहीं कर सकती है, परन्तु यदि पति चाहे तो पत्नी को विघटन या निश्चित घटना के घटित होने से पहले ही भुगतान कर सकता है ।

3) मुवज्जल मेहर की दशा में पत्नी का हित निहित हित होता है न की समाश्रित हित। किसी घटना के होने से मेहर समाप्त नहीं किया जा सकता और पत्नी की मृत्यु से भी वह टल नहीं सकता और यदि पत्नी की मृत्यु हो जाती है तो उसकी और से उसके उत्तराधिकारी मेहर का दावा कर सकते है |

मुअज्जल और मुवज्जल मेहर के विषय में पूर्व धारणा :-

यदि मेहर विवाह के समय निश्चित किया गया है तो विवाह की संविदा में यह वर्णित रहता है कि मेहर का कितना भाग तात्कालिक होगा और कितना आस्थगित| परन्तु कठिनाई उस समय उत्पन्न होती है जब निकाहनामा उस विषय पर मौन होता है की कौन सा भाग मुअज्जल होगा और कौन सा मुवज्जल ?

इलाहाबाद और बम्बई में उच्च न्यायालय के अनुसार यदि मुअज्जल और मुवज्जल मेहर की गणना करनी हो तो निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए :-

  • पत्नी की स्थिति,
  • स्थानीय रिवाज,
  • मेहर की कुल राशि और
  • पति की हैसियत के अनुसार निर्धारित किया जाना चाहिए |
रेहाना खातून बनाम इतिदारुद्दीन, 1841

अभिनिर्धारित :- इस वाद में यह निर्णीत किया गया है कि मुअज्जल मेहर का अनुपात रिवाज द्वारा विनियमित किया जाता है और रिवाज के अभाव में मुअज्जल मेहर का अनुपात पक्षकारों की हैसियत और मेहर की कुल राशि द्वारा नियत किया जाता है |

नसीरुद्दीन शाह बनाम अमतुल बीबी, 1846, इलाहबाद

अभिनिर्धारित :- इस वाद में यह अभिनिर्धारित किया गया कि सुन्नी विधि के अनुसार मेहर के विषय में निकाहनामा और रिवाज के मौन होने पर मेहर का आधा भाग मुअज्जल और आधा भाग मुवज्जल माना जाता है।

मिर्जा बेदुर बख्त बनाम मिर्ज़ा कामरान बख्त, 1948

अभिनिर्धारित :- मद्रास उच्च न्यायालय ने निर्णीत किया है कि दम्पति चाहे शिया हों या सुन्नी इस बात का कोई प्रभाव नही पड़ता है, और यदि मेहर का कोई भाग स्थगित नही किया गया है तो, कम से कम मद्रास प्रेसिडेन्सी के क्षेत्र में, मेहर के मुअज्जल होने की पूर्व धारणा की जानी आवश्यक है।

शिया विधि -शिया विधि के अनुसार मेहर की पूरी धनराशि के मुअज्जल होने की पूर्वधारणा की जायेगी |

रिवाजी (उचित) मेहर ( मेहर-इ-मिस्ल)

उचित (रिवाजी) मेहर (मेहर-इ-मिस्ल)
उचित (रिवाजी) मेहर (मेहर-इ-मिस्ल)

यदि मेहर की राशि निश्चित नहीं की गई है तो पत्नी उचित मेहर (मेहर-इ-मिस्ल) की अधिकारी होती है, चाहे विवाह इस शर्त पर किया गया हो कि पत्नी किसी मेहर का दावा नहीं करेगी।

हमीरा बीबी बनाम जुवैदा बीबी, 1916

अभिनिर्धारित :- इस वाद में प्रिवी काउन्सिल ने यह अभिनिर्धारित किया गया कि मुस्लिम विधि के अन्तर्गत मेहर विवाह का आवश्यक तत्व है और यह इतना आवश्यक है की यदि विवाह के समय मेहर का उल्लेख नहीं किया गया है तो भी उसका निर्णय निश्चित सिद्धान्तों के अनुसार किया जाना आवश्यक है। मेहर की राशी को नियत करते समय न्यायालय निम्न को विचार में लेता है :-

a. पत्नी की निजी अहर्ताएं जैसे :- उसका सौन्दर्य, समझदारी एवंम सदाचार;

b. पत्नी के पिता की सामाजिक स्थिति;

c. पत्नी के पिता के परिवार में अन्य स्त्रियों को दिए गये मेहर की राशी के उदहारण;

d. पति की आर्थिक स्थिति;

e.  अन्य तात्कालिक परिस्थितियां |

शिया विधि के अनुसार, मेहर की अधिकतम सीमा 500 दिरहम गई है। सुन्नी विधि में मेहर की अधिकतम राशि की कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है।

Scroll to Top