आज हम जानेगें की अभिकर्ता और मालिक की परिभाषा के बारे ओर्यः जानेंगें की अभिकर्ता कैसे नियुक्त किया जा सकता है, अभिकर्ता को कौन नियुक्त करता है व किस व्यक्ति को अभिकर्ता के रूप में नियुक्त किया जा सकता है |(Sec 182 to 185 of Indian Contract Act/ Indian Contract Act in Hindi)
अभिकर्ता और मालिक की परिभाषा (Sec 182 to 185 of Indian Contract Act )
अभिकर्ता और मालिक की परिभाषा :-(धारा 182) “अभिकर्ता” वह व्यक्ति हैजो किसी अन्य की और से कोई कार्य करने के लिए या पर-व्यक्तियों स व्यवहारों में किसी अन्य का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियोजित है |
मालिक :-वह व्यक्ति जिसके लिए ऐसा कार्य किया जाता है या जिसका इस प्रकार प्रतिनिधित्व किया जाता है “मालिक” कहलाता है |
कल्यानजी बनाम टिकाराम, 1938
अभिनिर्धारित :- न्यायमूर्ति विवियन बोस ने प्रतिपादित किया की धारा 182 में दी गई अभिकर्ता की परिभाषा बहुत संकीर्ण है | न्यायमूर्ति बोसे के अनुसार यह परिभाषा इतनी विस्तृत है की इसमें नौकर तथा कोई अन्य व्यक्ति जिसे पल भर के कार्य के लिए रखा जाए वह भी शामिल है जैसे की जुटे पोलिश करने वाला कोई लड़का, हालाँकि उनके बारे में एल क्षण भी यह नही कहा जा सकता है की वे अभिकर्ता है |
अभिकरण का सार/अर्थ :-
अभिकरण का सार यह है की मालिक अपने अभिकर्ता को यह्शक्ति देता है की वह मालिक के अन्य व्यक्तियों के साथ संविदात्मक सम्बन्ध स्थापित करे | अभिकरण संविदा द्वारा स्थापित होता है | अभिकरण के माध्यम से मालिक को अन्य व्यक्तियों से संविदा करनी होती है इसलिए मालिक को संविदा करने हेतु सक्षम होना चाहिए | इस सम्बन्ध में भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 183 स्पष्ट रूप से यह उपबंधित करती है की कोई भी व्यक्ति जो प्राप्तव्य तथा स्वस्थ-चित हो, वह अभिकर्ता नियोजित कर सकता है | एक अप्राप्तवय(माइनर) अभिकर्ता नियोजित नही कर सकता है |
अभिकर्ता तथा किसी अन्य कार्य-कारक व्यक्ति में मुख्य भिन्नता यह है की अभिकर्ता एक प्रकार का प्रतिनिधि है जिसे मालिक के पर-व्यक्ति के साथ विधिक सम्बन्ध स्थापित करने की शक्ति है |
कृष्णा बनाम गणपति, 19५५ मद्रास हाईकोर्ट
अभिनिर्धारित :- विधि की द्रष्टि से देखें तो प्रत्येक ऐसा व्यक्ति जो किसी अन्य व्यक्ति के लिए कार्य करता है वह अभिकर्ता नही हो सकता है | उदहारण के लिए एक घरेलु नौकर मालिक की सेवा करता है, एक मजदूर दुसरे की खेती करता है या अन्य व्यक्ति की दुकान, कारखाने आदि में काम करता है तो ऐसा व्यक्ति अभिकर्ता नही है | ऐसा इसलिए है क्योंकि इस स्थिति में किसी को भी मालिक की तरफ से किसी पर-व्यक्ति के साथ व्यव्हार करने की शक्ति नही है |
अभिकर्ता केवल उसी व्यक्ति को कहा जा सकता है जिसे मालिक की तरफ से व्यापारिक कार्यकलाप अर्थात मलिक की और से व्यापारिक व्यव्हार करने की शक्ति हो | अभिकर्ता के दो विशेष गुण है जो की निम्नवत है :-
- प्रतिनिधितिव गुण; तथा
- मालिक से प्राप्त शक्ति |
महेश चन्द्र बासु बनाम राधा किशोर भट्टाचार्जी, 1908
अभिनिर्धारित :- अभिकरण का सार यह है की मालिक अपने अभिकर्ता को यह शक्ति देता है की वह मालिक की और से अन्य व्यक्तियों के साथ संविदात्मक संबंध स्थापित करे |
न्यायमूर्ति डेनिंग एल जे के अनुसार (shephard vs. carthright, 1953) –
एक माइनर अपने लिए अभिकर्ता नियोजित नही कर सकता है | यदि वह अभिकर्ता निओजित करने करने का प्रयत्न भी करता है तो न केवल नियोजन ही शुन्य होगा वरन अभिकर्ता द्वारा किये गये सभी कार्य शुन्य होंगे और उनका अनुसर्थान भी नही हो सकता है | एक माइनर को अपने लिए अभिकर्ता चुनने की सुझबुझ नही होती है | इसका कारन यह है की एक माइनर में अभिकर्ता चुनने की सुझबुझ नही होती है वह किसी गलत व्यक्ति को नियुक्त कर सकता है | इसी लिए विधि ने पहले ही यह घोषित कर दिया की वह अभिकर्ता चुनने की योग्यता ही नही रखता है |
बाउस्टेड की एजेंसी का सिद्धांत :-
बाउस्टेड की एजेंसी का सिद्धांत यह बताता है की जिन परिस्थितियों में माइनर संविदा कर सकता है उनमे वह अभिकर्ता भी नियुक्त कर सकता है | एक माइनर या अस्वस्थ-चित का व्यक्ति अपने अभिकर्ता द्वारा की गई संविदाओं से उन परिस्थितियों में आबद्ध होगा जिनमे वह स्वयं स्संविदा करता तो आबद्ध होता |
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क्या संरक्षक माइनर के लिए अभिकर्ता नियुक्त कर सकता है ?
मदनलाल धारीवाल बनाम भेरुलाल, 1965
अभिनिर्धारित :- संविदा अधिनियम में संरक्षक द्वारा अप्राप्तवय के लिए अभिकर्ता चुनने के लिए कोई भी प्रावधान नही किया गया है |
क्या अभिकरण हेतु अभिकर्ता का सक्षम होना आवश्यक है ?
अभिकरण के सर्जन हेतु अभिकर्ता का सक्षम होना आवश्यक नहीं है | धारा 184 में कहा गया है की मालिक तथा पर-व्यक्तियों में सम्बन्ध स्थापित करने के लिए कोई भी व्यक्ति अभिकर्ता नियुक्त किया जा सकता है | इसका कारन यह है की अभिकर्ता का मालिक के लिए की गई गई संविदा में कोई व्यक्तिगत दायित्व नही होता है तो इसलिए यह आवश्यक नही है की वह संविदा करने हेतु सक्षम हो अर्थात माइनर को भी अभिकर्ता बनाया जा सकता है |
क्या अभिकरण हेतु प्रतिफल की आवश्यकता होती है ?
अभिकरण का सम्बन्ध स्थापित करने हेतु किसी प्रतिफल की आवश्यकता नही होती है | इसका कारन यह है की अभिकर्ता को अपनी सेवाओं के बदले में दलाली/कमीशन मिलता है इसलिए यह आवश्यक नही है की नियोजन के समय ही उसे कोई प्रतिफल दिया जाए | (धारा 185)
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शिवराज रेड्डी एंड ब्रोस बनाम एस. रघुराज रेड्डी, 2002 आँध्रप्रदेश हाईकोर्ट
अभिनिर्धारित :- कोई व्यक्ति किसी भागीदारी फर्म में भागिदार बन सकता है और इस तरीके से फर्म का अभिकर्ता होने की स्थिति ग्रहण कर सकता है और यह आवश्यक नही है की वह पूंजी का योगदान करे |
अभिकर्ता और नौकर में अंतर :-
लक्ष्मीनारायण राम गोपाल एंड संस बनाम हैदराबाद सरकार, 1954 एस.सी.
अभिनिर्धारित :- इस वाद में सुप्रीम कोर्ट ने नौकर तथा अभिकर्ता के बीच अंतर स्पष्ट किया जो की निम्नवत है :-
- अभिकर्ता को मालिक के स्थान पर कार्य करने की तथा उसे पर-व्यक्तियों के साथ संविदा करने की शक्ति होती है जबकि ऐसी कोई शक्ति किसी नौकर के पास नही होती है |
- अभिकर्ता की दशा में मालिक यह बताता है क्या करना है जबकि नौकर की दशा में मालिक को यह बताना होता है की क्या करना है और कैसे करना है | नौकर मालिक के नियंत्रण में कार्य करता है जबकि अभिकर्ता मालिक के आदेशों के अनुरूप कार्य करने हेतु आबद्ध तो है किन्तु उसके नियंत्रण के अधीन कार्य करने हेतु आबद्ध नही |
- नौकर को पारिश्रमिक या मजदूरी मिलती है जबकि अभिकर्ता को दलाली/कमीशन मिलता है |
- नौकर की दुष्क्रतियों के लिए मालिक दायी होता है जबकि अभिकर्ता की दुष्क्रतियों हेतू मालिक तभी दायी होगा जब कार्य अभिकर्ता के प्राधिकार क्षेत्र में हो |
- नौकर केवल एक ही स्वामी की नौकरी करता है परन्तु अभिकर्ता कई मालिकों के कार्य किया करता है |
Indian Contract Act Bare Act in Hindi/भारतीय संविदा अधिनियम का बेयर एक्ट हिंदी में डाउनलोड करे – Link