Meaning Of Evidence Under Sec 3 | Indian Evidence Act

भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार साक्ष्य क्या होता है ? साक्ष्य का अर्थ क्या है (meaning of evidence) ? न्यायालय में किसका साक्ष्य दिया जाता है और किसका नहीं इस बात की पूरी जानकारी आज हम लोग आपको देंगे | Indian Evidence Act in hindi

साक्ष्य/ Meaning Of Evidence :- {Sec 3 of Indian Evidence Act}

“साक्ष्य” शब्द से अभिप्रेत है और उसके अंतर्गत आते हैं:-

1. वे सभी कथन (बयान) जिनको न्यायालय साक्षियों द्वारा अपने सामने करने की अनुमति देता है या अपेक्षा करता है तथा ऐसे कथन न्यायालय के समक्ष जांचाधीन विषयों से सम्बंधित होते हैं और जब साक्षियों द्वारा ऐसे कथन किये जाते है तो वह मौखिक साक्ष्य कहलाते हैं ;

2.न्यायालय के निरीक्षण के लिय पेश किये गये सभी दस्तावेज, जिनमें इलेक्ट्रोनिक अभिलेख शामिल हैं,ऐसे दस्तावेजें दस्तावेजी साक्ष्य कहलाते हैं |

यह “साक्ष्य” शब्द की परिभाषा न होकर मात्र एक स्पष्टीकरण है जो की केवल साक्ष्य के प्रकारों को स्पष्ट करता है | यह साक्ष्य को मौखिक एवम् दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में वर्गीकृत करता है| इस परिभाषा से हम साक्ष्य को समझ नही पा रहे की आख़िरकार साक्ष्य है क्या ?          

वास्तव में साक्ष्य शब्द का अर्थ है ऐसी कोई वस्तु जिससे किसी अभिव्यक्त या विवादग्रस्त तथ्य को न्यायालय में साबित या नासबित किया जाता है |     


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उपरोक्त साक्ष्य की परिभाषा में केवल दो प्रकार के साक्ष्य वर्णित हैं अर्थात मौखिक साक्ष्य एवं दस्तावेजी साक्ष्य | इसका अर्थ यह नही है की कोई अन्य प्रकार का साक्ष्य हो ही नही सकता है | उदाहरणार्थ जब  न्यायाधीश जब न्यायाधीश स्वयं घटनास्थल का निरिक्षण करने जाता है और नक्शा बनता है तो वह भी एक साक्ष्य है | यद्यपि वह न तो किसी साक्षी  का मौखिक कथन है और न ही पक्षकरो के द्वारा प्रस्तुत किया गया कोई दस्तावेज है | फिर भी यह कहा जाता है की वह एक प्रकार का दस्तावेज है |                  

इस अभिप्राय से धारा 3 में दी गई साक्ष्य की परिभाषा पूर्ण है की अंतिम रूप से प्रत्येक प्रकार के साक्ष्य को या तो मौखिक साक्ष्य या दस्तावेजी साक्ष्य की श्रेणी में रखा जा सकता है | संक्षेप में “साक्ष्य” शब्द केवल तर्कों को छोड़कर ऐसे सभी विधिक साधन शामिल करता है | जो उस तथ्य की सत्यता को साबित या नासाबित करने का प्रभाव रखता है और जो न्यायिक अन्वेषण के अधीन है |

निर्णय का आधार बनाये जा सकने वाले समग्र विषयों को साक्ष्य के निम्नलिखित रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है :-

1.मौखिक एवं दस्तावेजी साक्ष्य ;

2.मौलिक एवं अनुश्रुत साक्ष्य ;

3.प्राथमिक एवं दितीयिक‌‍ साक्ष्य ;

4.न्यायिक एवं न्यायिकेतर साक्ष्य ;

5.प्रत्यक्ष एवं परिस्थितिजन्य साक्ष्य |

मौखिक एवंम दस्तावेजी साक्ष्य, मौलिक एवंम अनुश्रुत साक्ष्य, प्राथमिक एवंम द्वितीयक साक्ष्य के बारे में हम साक्ष्य अधिनियम में आगे पढ़ेंगे |  


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न्यायिक साक्ष्य और न्यायिकेतर साक्ष्य :-

न्यायिक साक्ष्य :- 

न्यायिक साक्ष्य ऐसा साक्ष्य होता है जो न्यायालय के समक्ष दिया जाता है |

न्यायिकेतर साक्ष्य :- 

न्यायिकेतर साक्ष्य ऐसा साक्ष्य होता है जो न्यायालय के बाहर दिया जाता है |

प्रत्यक्ष और परिस्थितिजन्य साक्ष्य:-

प्रत्यक्ष और परिस्थितिजन्य साक्ष्य
प्रत्यक्ष और परिस्थितिजन्य साक्ष्य

विवाद्यक तथ्य को साबित  करने के ढंग के आधार पर साक्ष्य को निम्नलिखित दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है :-

प्रत्यक्ष  साक्ष्य :-                 

प्रत्यक्ष साक्ष्य से तात्पर्य ऐसे तथ्य से जो बिना किसी अन्य तथ्यों के हस्तक्षेप के किसी  विवाद्यक तथ्य के अस्तित्व को साबित करते हैं | दुसरे शब्दों में जब साक्ष्य किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा दिया जाता है जिसने घटना को स्वयं देखा या सुना या अनुभव किया है तो ऐसे साक्ष्य को प्रत्यक्ष साक्ष्य कहा  जाता है |

उदहारण :- “ख” को लाठी से घोर उपहति करीत करने के लिय “अ” का विचारण किया जाता है | “ग” न्यायालय के समक्ष कथन करता है की उसने अभियुक्त को लाठी से “ख” को चोट पहुंचाते हुए देखा है | जिस कारण “ख” को घोर उपहति कारित हुए | यहाँ “ग” के द्वारा दिया गया साक्ष्य प्रत्यक्ष साक्ष्य है |

भारतीय साक्ष्य अधिनिओयम की धारा 60 के अनुसार मौखिक साक्ष्य सदैव प्रत्यक्ष होना चाहिय |


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परिस्थितिजन्य साक्ष्य :-                         

परिस्थितिजन्य साक्ष्य से तात्पर्य ऐसी परिस्थितियों के साक्ष्य से है | जो घटना या अपराध के इर्द-गिर्द घुमने वाले तथ्यों के सबूत होते हैं औरजिनका अवलोकन करने से विवाद्यक तथ्य के बारे में कोई अनुमान इंगित होता है | प्रत्यक्ष साक्ष्य के आभाव में ऐसे साक्ष्य का महत्त्व बढ़ जाता है |               

परिस्थतिजन्य साक्ष्य को अच्छा साक्ष्य माना जाता है | क्योंकि साक्षी झूठ बोल सकता है किन्तु परिस्थतियाँ नही | अतः अभियुक्त को केवल परिस्थितिजन्य  साक्षी के आधार पर दोषसिद्ध तथा दण्डित किया जा सकता है |

उदहारण :-

a.यह तथ्य कि घटना के दिन अभियुक्त तथा मृतक को साथ देखा गया था |

b.यह  तथ्य कि अभियुक्त तथा मृतक के परिवार के बीच पुरानी दुश्मनी थी |

c.यह तथ्य की घटना में प्रयुक्त हथियारों की अभियुक्त के पास से बरामदगी हुई |

उमेद भाई बनाम गुजरात राज्य, 1978, सुप्रीम कोर्ट

अभिनिर्धारित :- न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया की जब कोई मामला केवल परिस्थितियों के साक्ष्य पर निओर्भर हो, तो यह आवश्यक है की अभियोजन न्यायालय के समक्ष जो भी परिस्थिति लाया है उनकी दिशा एकमात्र रूप से अभियुक्त को दोषी साबित करने की होनी चाहिये, और कोई भी परिस्थिति ईएसआई नही होनी चाहिये जो अभियुक्त के दोषी होने से मेल नही खाती हो | न्यायालय को परिस्थिति के कुल प्रभाव को देखना चाहिये | परिस्थितियों की एक भी कड़ी टूट जाना अभियोजन के मामले के लिए घातक हो सकता है ( और हो सकता है अभियुक्त दोषमुक्त हो जाए) |

उत्तर प्रदेश राज्य बनाम रविन्द्र प्रकाश मित्तल, 1992, सुप्रीम कोर्ट

अभिनिर्धारित :- इस वाद में उच्चतम न्यायालय ने परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर दोषसिद्धि आवधारित करते समय निम्नलिखित सावधानी बरतने के आधार उपलब्ध कराये :-

i. जिन परिस्थितियों से निष्कर्ष निकाला गया है उन्हें पूर्ण रूप से साबित होना चाहिये;    

ii. परिस्थितियों को निश्चायक प्रकृति का होना चाहिये;                             

iii. परिस्थितियों को अभियुक्त के दोषी होने से संगत होना चाहिये तथा उसके निर्दोष होने से असंगत होना चाहिये |                                                           

iv. परिस्थितियों को अभियुक्त के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति के दोषी होने की संभावना को निवारित करना चाहिये |         

अतः यह निष्कर्षित किया जा सकता है कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर अभियुक्त की दोषसिद्धि की जा सकती है यदि वे पूर्णतः साबित हो चुकी हो | परन्तु परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर दोषसिद्धि करते समय न्यायालय को सतर्क एवंम न्यायिक सिद्दांतो द्वारा मार्गदर्शित होना चाहिये |

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