दंड प्रक्रिया संहिता{Introduction of CRPC} जैसा की आप सभी लोगो को नाम से ही समझ आ रहा है की एक ऐसी संहिता जो आपको प्रक्रिया बताती है की अगर आपके साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कोई अपराध घटित हो जाए तो वो किस प्रकार न्याय प्राप्त कर सकता है |
दंड प्रक्रिया संहिता का परिचय/Introduction of CRPC :-
इसमें हम अपराधो की बात नही करते है हम इसमें उस प्रक्रिया की बात करते है जो हमे न्याय दिलाये | दुसरे शब्दों में कहे तो जो कार्य भारतीय दंड संहिता के अधीन दंडनीय बताये गये है उन कार्यो के अन्वेषण (INVESTIGATION), जाँच(INQUIRY) और विचारण(TRIAL) की प्रक्रिया दंड प्रक्रिया संहिता में बताई गई है | हमने इसके नाम का अर्थ तो जान लिया तो चलिए अब इसकी कुछ महत्वपूर्ण बातो के बारे और जान लेते है जो की परीक्षाओं की द्रष्टि से बहुत आवश्यक है |
दंड प्रक्रिया के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य :-
- दंड प्रक्रिया संहिता में कुल 484 धाराएं हैं जो की 37 अध्यायों में विभक्त है। संहिता के साथ 2 अनुसूची भी संलग्न है | अनुसूची 1 में कुल 6 कॉलम है जो की हमे अपराधो के बारे में बताती है की भारतीय दंड संहिता में परिभाषित कौन सा अपराध जमानतीय है या अजमानतीय है कौन सा अपराध संज्ञेय या संज्ञेय और किसके द्वारा विचारणीय है आदि बातो का ज्ञान देती है |
- अनुसूची 2 में प्रारूप बताये गये है जो की हमे इस बात का ज्ञान देते है की दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत जो भी कार्यवाही जैसे वारंट या समन आदि किस प्रारूप में भेजे जायेंगे | इस बात का ज्ञान हमे दंड प्रक्रिया संहिता की अनुसूची 2 से ही होता है | इस अनुसूची में 56 प्रारूप है जिसमें से 42वे प्रारूप में मृत्युदंड का निष्पादन बताया है।
- दंड प्रक्रिया संहिता को 1 जनवरी 1974 में राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली व यह 1 अप्रैल 1974 से प्रवर्तन में आयी। दंड प्रक्रिया संहिता का अधिनियम संख्याकं “1974 का अधिनियम क्रमांक 2 है |”
- दंड प्रक्रिया संहिता एक प्रक्रियात्मक विधि है | विधि 2 प्रकार की होती है :-
- सारवान विधि अर्थात ऐसी विधि जो अधिकार और कर्तव्यों को परिभाषित करती है | जैसे की भारतीय संविदा अधिनियम, भारतीय दंड संहिता आदि |
- प्रक्रियात्मक विधि अर्थात ऐसी विधि जो अधिकारों या सारवान विधि को प्रवर्तित कराने के लिए प्रक्रिया विहित करती है | जैसे कि दंड प्रक्रिया संहिता आदि |
अगर सारवान विधि और प्रक्रियात्मक विधि में कोई विरोधाभास उत्पन्न होता है तो सारवान विधि लागु होती है |
एक उदहारण से अगर इन दोनों विधियों को समझना चाहे तो कह सकते है की अगर भारतीय दंड संहिता अपराध को परिभाषित तथा उस अपराध के लिए दंड का प्रावधान करती है (अर्थात एक दायित्व सृजित कर रही है की अगर आपने ये कार्य किया तो यह माना जायेगा की आपने अपराध किया है) तो उस अपराध के लिए दंड कैसे मिलेगा कहाँ मिलेगा इसकी प्रक्रिया दंड प्रक्रिया संहिता में बताई गई है इसलिए यह एक प्रक्रियात्मक विधि है और भारतीय दंड संहिता एक सारवान विधि |
- दंड प्रक्रिया संहिता संविधान की 7वीं अनुसूची की समवर्ती सूची का विषय है | अतः इस संहिता की धाराओं में संसद तथा राज्य विधानमंडल दोनों ही संसोधन कर सकती है |
- इस संहिता का विस्तार नागालैंड राज्य एवंम जनजातिय क्षेत्रों को छोड़कर सम्पूर्ण भारत पर है | किन्तु नागालैंड राज्य एवंम जनजातिय क्षेत्रों पर दण्ड प्रक्रिया संहिता के अध्याय 8,10, एवंम 11 के उपबंध लागु होंगे | अतः दंड प्रक्रिया संहिता के 37 अध्यायों में से 34 अध्यायों के उपबंध नागालैंड राज्य एवंम जनजातिय क्षेत्रों पर लागु नही होंगे | {A/c to Article 371-A}
किन्तु सम्बंधित राज्य की सरकारें अर्थात नागालैंड राज्य एवंम अन्य जनजातिय क्षेत्रों की राज्य सरकारे अधिसूचना जारी करके दंड प्रक्रिया संहिता के अन्य उपबंधो को नागालैंड राज्य एवंम अन्य जनजातिय क्षेत्रो या उसके किसी भाग पर अनुपूरक, आनुषांगिक या परिणामिक रूपांतरणों सहित लागु कर सकती है |
- दंड प्रक्रिया संहिता भारतीय दंड संहिता में परिभाषित अपराधो के अन्वेषण, जाँच और विचारण तथा उससे सम्बंधित अन्य कार्यवाहियों के लिए प्रक्रिया विहित करती है |
अगर किस स्थानीय विधि या विशेष विधि में परिभाषित अपराधो के अन्वेषण, जाँच और विचारण के लिए कोई प्रक्रिया उस स्थानीय विधि या विशेष विधि में नहीं बताई गई है तो दंड प्रक्रिया संहिता के उपबंध ही उस स्थानीय विधि या विशेष विधि पर लागु होंगे |
किन्तु अगर उस स्थानीय विधि या विशेष विधि में परिभाषित अपराधो के जाँच, विचारण और अन्वेषण के लिए कोई प्रक्रिया उसी स्थानीय विधि या विशेष विधि में बताई गई है तो उस विशिष्ट अपराध के अन्वेषण, जाँच और विचारण के सन्दर्भ में वही प्रक्रिया अपनाई जाएगी जो उस विधि में बताई गई है |
भारतीय दंड संहिता 1862 की और दंड प्रक्रिया संहिता 1974 की यह कैसे संभव है ? क्या इतने लम्बे अन्तराल तक भारत में कोई दंड प्रक्रिया संहिता अस्तित्व में नही थी ? अगर नही तो अन्वेषण., जाँच और विचारण हेतु कौन सी प्रक्रिया अपनाई जाती थी और अगर लागु थी तो विधानमंडल द्वारा यह नई दंड प्रक्रिया संहिता क्यों बनाई गई ?
पुरानी दंड प्रक्रिया संहिता के होने बाद भी नई दंड प्रक्रिया संहिता क्यों बनाई गई :-
दंड प्रक्रिया संहिता में एक सोचने की बात यह की यह 1974 से प्रवर्तन में आई लेकिन भारतीय दंड संहिता 1862 से लागु है तो क्या उस समय दंड प्रक्रिया संहिता नही थी क्या जिससे भारतीय दंड संहिता में परिभाषित दण्डों का निष्पादन कराया जा सके | उस समय भी दंड प्रक्रिया संहिता,1889 प्रवर्तन में थी | तो अब प्रश्न या उठता है की जब दंड प्रक्रिया संहिता थी तो फिर विधान मंडल द्वारा दूसरी दंड प्रक्रिया संहिता क्यों बनाई गई | विधानमंडल ने पुरानी संहिता को संशोधित क्यों नही किया |
पुरानी दंड प्रक्रिया संहिता में कुछ कमियां थी और वह कमियां ऐसी थी जिन्हे सामान्य संशोधनों द्वारा सुधारा नहीं जा सकता था। इसलिए पुरानी दंड प्रक्रिया संहिता के स्थान पर नयी दंड प्रक्रिया संहिता अधिनियमित की गई। 1973 में नई दंड प्रक्रिया संहिता को अधिनियमित करने के मुख्य कारण थे:-
a. न्यायपालिका का कार्यपालिका से पृथक्करण (अनुच्छेद 50 भारतीय संविधान )
नई दंड प्रक्रिया संहिता बनाने का यह सबसे मुख्य कारण था कि न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक किया जाए। ऐसा इसलिए जरूरी था क्योंकि पुरानी दंड प्रक्रिया संहिता में कार्यपालिका को न्यायिक शक्तियाँ भी प्राप्त थी जिसकी वजह से न्याय हो पाना बहुत मुश्किल हो गया था।
इस बात को इस तरीके से समझ सकते हैं कि दाण्डिक मामलो के तीन चरण होते हैं या दुसरे शब्दो में कहे तो जब कोई व्यक्ति अपराध करता है और इस पर दाण्डिक कार्यवाई शुरु की जाती है तो उसके 3 चरण होते है जो की निम्नवत है :-
(i) प्रथम चरण : अन्वेषण
(ii)द्वितीय चरण : जाँच
(iii)तृतीय चरण : विचारण
अर्थात दाण्डिक मामलो में प्रथम चरण होता है अन्वेषण, और अन्वेषण का उद्देश्य होता है साक्ष्य एकत्र करना और अन्वेषण किया जाता है पुलिस द्वारा और पुलिस होती है राज्य सरकार के अधीन अर्थात कार्यपालिका के अधीन |
अब समझने योग्य बात यह है की पुलिस के द्वारा ही साक्ष्य एकत्रित किया जाय और मान लीजिये पुलिस द्वारा ही उन साक्ष्यों का अवलोकन कराया जाए तथा उन पर विचार करने दिया जाए तो ऐसी स्थिति में यह संभव नही है की पुलिस अपने द्वारा किये गये कार्य को गलत ठहरायेगी |
इन्ही परिस्थितियों से बचने के लिए तथा न्याय को सुनिश्चित करने के लिए कार्यपालिका को न्यायपालिका से पृथक किया गया | अब कार्यपालिका के पास सिर्फ इतना कार्य है की वह साक्ष्यों को एकत्रित करे तथा जाँच और विचारण के लिए न्यायपालिका को सौप दे जिससे उस मामले की निष्पक्ष जाँच हो पाए तथा न्याय सुनिश्चित हो पाए |
b. कार्यपालक मजिस्ट्रेट को निवारक शक्तियाँ देना :-
नई दंड प्रक्रिया संहिता को बनाने का उद्देश्य यह भी तथा की कार्यपालक मजिस्ट्रेट को लोकशांति बनाये रखने के लिए केवल निवारक शक्तियां दी जाए अर्थात अगर कार्यपालक मजिस्ट्रेट को यह लगता है की लोक शांति भंग हो सकती है तो उसके पास यह शक्तियां होंगी की वह उस खतरे का निवारण कर सके जिससे लोक शांति भंग हो सकती है |
c. तृतीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट के पद की समाप्ति :-
नई दंड प्रक्रिया संहिता बनाने का एक उद्देश्य यह भी तथा की तृतीय श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट के पद की समाप्ति कर दी जाए |
d. जूरी विचारण का समाप्त किया जाना :-
नई दंड प्रक्रिया संहिता बनाने का एक उद्देश्य यह भी था की जूरी विचारण को समाप्त कर दिया जाए |