Indian Evidence Act Sec 14 | धारा 14 भारतीय साक्ष्य अधिनियम

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Indian Evidence Act Sec 14

 

आज हम जानेंगें धारा 14 भारतीय साक्ष्य अधिनियम/Indian Evidence Act Sec 14 के बारे में ये धारा हमे मन व शरीर की संवेदना आदि से सम्बंधित तथ्यों की सुसंगति के बारे में बताती है | indian evidence act in hindi, judiciary exam

मन या शरीर की दशा या शारीरिक संवेदना का अस्तित्व दर्शित करने वाले तथ्य :- (Indian Evidence Act Sec 14)

मन या शरीर की दशा या शारीरिक संवेदना का अस्तित्व दर्शित करने वाले तथ्य
मन या शरीर की दशा या शारीरिक संवेदना का अस्तित्व दर्शित करने वाले तथ्य

धारा 14 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत निम्नलिखित तथ्य सुसंगत है :-

  1. मन की दशा दर्शित करने वाले तथ्य;
  2. शरीर की दशा करने वाले तथ्य;
  3. शारीरिक संवेदना दर्शित करने वाले तथ्य |

उपरोक्त तथ्य तभी सुसंगत होंगे जबकि मन की दशा शरीर की दशा या शारीरिक संवेदना का अस्तित्ब विवाधक या सुसंगत हो |

अथार्त दूसरे शब्दों में कहे तो मन की दशा या शरीर की दशा या शारीरिक संवेदना को दर्शित करने वाले तथ्य तभी सुसंगत होंगे जब विवाधक तथ्य यह हो कि ऐसी मन की दशा या शारीरिक संवेदना का अस्तित्व है या नहीं |

अधिकांश अपराधो और दीवानों मामलो मई अभियुक्त या प्रतिवादी की मानसिक दशा अपराध का महत्वपूर्ण तत्व होती है |

मानसिक दशा या मन की दशा या मानसिक तत्व या जिसे कि सामान्यता दुराशय बोलते है ; दायित्व की एक अनिवार्य शर्त है अथार्त अधिकांश अपराध दुराशय {गलत अपराध } के ऐसे तथ्य का साक्ष्य दिया जा सकता है जो उस मानसिक दशा के अस्तित्व या अनस्तित्व को साबित करता है|


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उधाहरण के लिए एक व्यक्ति पर जली सिक्के बाज़ार में चलाने का आरोप अथार्त नकली सिक्के चलाने का अपराध है| यहाँ साक्ष्य यह दिया जा रहा है की वह व्यक्ति जनता था की सिक्के नकली है |

जानना एक मानसिक दशा है अंतः यहाँ विवाधक यह है की वह व्यक्ति जनता था की सिक्के नकली है इसलिए इस परिस्तिथि में यह साक्ष्य दिया जा सकता है की वह व्यक्ति नही जानता था कि सिक्के जाली है |

मन की दशा :-

  1. अधिकांश अपराधो और अपक्रत्यो में अभियुक्त या प्रतिवादी की मानसिक दशा एक महत्पूर्ण आव्यशक तत्व होती है |
  2. मानसिक दशा दर्शित करने वाला कोई तथ्य धारा 14 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत तभी सुसंगत होगा जबकि किसी मानसिक दशा के अस्तित्व की विद्यमानता विवाहक या सुसंगत हो |
  3. धारा 14 किसी सिध्दांत को प्रतिपादित नही करती है यह तथ्यों की सुसंगतता को न्यायलय के विवेक पर छोड़ देती है | संक्षेप में जब किसी मानसिक दशा का अस्तित्व विवाधक या सुसंगत हो तब ऐसे प्रत्येक तथ्य का साक्ष्य दिया जा सकता है जो उस मानसिक दशा के अस्तित्व या अनस्तित्व को साबित कर सकता है |
  4. धारा 14 मन की दशा के निम्न प्रकारों का उल्लेख करती है :-
    • आशय {Iuteusion};
    • ज्ञान {Knowledge} ;
    • सद्भाव {Good faith};
    • उपेक्षा {Negligence} ;
    • उतावलापन {Recklessness};
    • वैमनस्य {ill- will} {बैर };
    • सदिच्छा {Good will} |

निम्न मन की दशाओ पर ही धारा 14 के निम्न द्रष्टांत आधारित है :-


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द्रष्टान्त (क):-

A चुराया हुआ माल यह जानते हुए की वह चुराया हुआ है प्राप्त है इसलिए A चुराये हुए माल को प्राप्त करने का अभियुक्त है | यह साबित कर दिया जाता है की इसके कब्जो में एक विशिष्ट चुराई हुई चीज़ थी |

यह तथ्य कि इसी समय {जब यह उसके पास अन्य चुराई हुई चीज़े थी यह दर्शित करता है की जो चीज़े इसके कब्जो में थी उसमे से हार एक या सब चीजों के बारे में यह जनता था की वह चुराई हुई है| एक सुसंगत तथ्य है|

क्योंकि यह साबित हो चूका था कि जिनके कब्जो में कोई चुराई हुई सम्पति है | अंतः. इससे यह पता लगता है कि A की मानसिक दशा दर्शित कर रहे है | { जनता था}Knowledge}

द्रष्टांत (ख ) :-

A पर यह आरोप है की उसने किसी अन्य व्यक्ति को एक कूटकृत सिक्का {अथार्त नकली सिक्का } दिया है और वह जनता था की वह सिक्का कूटकृत या नकली है |

यह तथ्य कि जब A ने उस व्यक्ति को वह कूटकृत सिक्का दिया तब उसके पास और भी कूटकृत सिक्के थे अथार्त इससे यह पता लग रहा है कि A जनता था की वह सिक्का कूटकृत है |{जानता था }


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द्रष्टांत (ग):-

B के कुत्ते द्वारा A का नुकसान किया जाता है और A B पर बाद लाता है तथा B यह जानता था कि उसका कुत्ता हिंसक है|

यहतथ्य की B के कुत्ते ने पह्के X ,y तथा Z को काटा था तथा X ,Y तथा Z द्वारा B को उस कुत्ते की शिकायत की गयी थी एशि वजह से B अपने कुत्ते के बारे में जानता था कि वह हिंसक है सुसंगत तथ्य है | {जानता था}

द्रष्टांत (घ ) :-

A द्वारा एक विनिमय पत्र प्राप्त किया गया और एस विमिमय पत्र पर पर किसी अन्य का नाम लिखा था जिसे ऐसा विनिमय पत्र A को देना था किन्तु उस विनिमय पत्र पर जिसका नाम लिखा था वह व्यक्ति काल्पनिक था अथार्त वह व्यक्ति या नही तो प्रश्न यह है की क्या A जानता था की वह व्यक्ति काल्पनिक है |

जिसको विनिमय पत्र दिया जाता है एस मामलो में यह तथ्य ससंगत है की A द्वारा इसी प्रकार के अन्य विनिमय पत्र प्प्राप्त किये थे जिन पर ऐसे ही व्यक्ति के नाम अंकित थे जो की काल्पनिक थे |


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अथार्त अगर वह व्यक्ति वास्तविक होते तो ऐसा विनिमय पत्र उनको दिया जाता किन्तु ऐसा नही था वह व्यक्ति काल्पनिक थे और A द्वारा उसी प्रकार के अन्य विनिमय पत्रों को प्रतिग्रहीत {प्राप्त किया गया था } किया गया था जिन पर काल्पनिक व्यक्तियों के नाम लिखे हुए थे |

सुसंगत तथ्य कई यह दर्शित करने के लिए की A जानता था कि वह व्यक्ति काल्पनिक है |

अथार्त न्यायालय में यह तो सिद्ध हो चूका है कि वह व्यक्ति काल्पनिक था लेकिन यह पता करना है की A जानता था कि वह व्यक्ति काल्पनिक है इसके लिए यह साक्ष्य दिया जा सकता है की A द्वारा ऐसे अन्य विनिमय पत्रों को भी प्राप्त किया गया था जिनके ऊपर काल्पनिक व्यक्ति के नाम थे सुसंगत तथ्य है |

द्रष्टांत (ङ ) :-

A पर आरोप है कि उसने B की ख्याति की अपहानि करने के आशय से एक लांछन प्रकाशित किया | इसलिए A पर B की मानहानि करने हेतु अभियोग चलाया जाता है|

इस प्रकरण में निम्न तथ्य सुसंगत है :-

1 यह तथ्य कि A ने B के बारे में पूर्व में और भी प्रकाशन किये थे जिससे यह दर्शित होता है कि B के प्रति A वैमनस्य रखता था इस कारण सुसंगत है क्योंकि इससे A का आशय साबित होता है कि प्रश्नगत विशिष्ट प्रकाश द्वारा B की व्यक्ति की अपमानि करने का A का आशय था |


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2 यह तथ्य कि A और B के बीच कोई झगडा नही था और कि A ने परिवादगत बात {जिस बात को लेकर बाद चल रहा है} को जैसा सुना था वैसा ही दोहरा दिया यह तथ्य यह दर्शित करने के नाते सुसंगत है कि A आशय B की ख्याति की अपहानि करने का नही था | {आशय पर आधारित }

द्रष्टांत (च ) :-

B द्वारा A पर यह वाद लाया जाता है A ने कपरपूर्वक B से यह व्यपदेशन (कहा) किया कि C शोधक्षम (जो व्यक्ति दिवालिया नही होता है जिससे B ने A की बात पर विश्वास किया और A की बात से उत्प्रेरित होकर B ने C पर भरोसा किया |

किन्तु C व्यक्ति दिवालिया था | इसलिए B A पर बाद लाता है उसने C के बारे में कपरपूर्ण व्यपदेश किया था की C दिवालिया नही है | B ने इस व्यपदेश किया था कि C दिवालिया नही है b ने इस व्यपदेशन से हानि नही उठाई |

यह तथ्य की जब A ने B से कहा था कि C दिवालिया व्यक्ति नही है तब के पडोसी और उससे व्यवहार करने वाले व्यक्ति {अथार्त जो उसके साथ रहते थे कारबार करते थे } C को दिवालिया नही समझते थे |

यह तथ्य यह है कि A व्यपदेशन करते समय सद्भावनापूर्वक था उसने जो भी व्यपदेशन किया सद्भावना में किया क्योंकि C के पडोसी तथा अन्य भी यही समझते थे कि C दिवालिया नही है | इसलिए यह तथ्य धरा 14 के अंतर्गत सुसंगत है {सद्भावना के ऊपर आधारित }

द्रष्टांत (छ ):-

B द्वारा A पर वाद लिया जाता है कि B ने A के गृह पर काम किया था और A ने उसको कीमत नही दी उस काम की और B ने A घर पर ऐसा काम C जो कि ठेकेदार था के आदेश पर किया था |

A ने यह कथन किया या अपने प्रतिवाद में कहा की B का ठेका C के साथ था |

यह तथ्य कि A ने प्रश्नगत काम के लिए C को किमत दे दी है सुसंगत है क्योंकि इससे यह साबित होता है कि A ने सद्भावनापूर्वक C को अपने गृह को बनाने का प्रबंध किया था |

इससे प्रतीत होता है कि B जो घर बनाने का कार्य कर रहा था वह C का अभिकर्ता था न की A का | इसलिए यह सुसंगत है क्योंकि A सद्भावनापूर्वक था | {सद्भावनापूर्वक }

तो यहाँ B A से पैसा नही वसूल कर सकता क्योंकि B C का अभिकर्ता या न कि A का |

द्रष्टांत (ज) :-

A ऐसी संपत्ति का बेईमानी से दुर्विनियोग करने का अभियुक्त है जो सम्पत्ति इसे पड़ी पाई थी|

प्रश्न यह है की जब A ने उस संपत्ति का विनियोग {इस्तेमाल } किया तब उसे सद्भावनापूर्वक यह विश्वास करने का कारण था की उस संपत्ति का वास्तविक स्वामी नही मिल सकता है |

1 यह तथ्य कि जहाँ A निवास करता था वहां उस स्थान में संपत्ति के खो जाने की सूचना को पूरे स्थान में बता दिया गया था की एक संपत्ति खो गयी है |

यह तथ्य सुसंगत है क्योंकि इससे यह दर्शित हो रहा है की A को यह सद्भावनापूर्ण विश्वास नही था किब उसका स्वामी नही मिल सकता | अथार्त वह चाहता तो उस संपत्ति को उसके स्वामी के पास पहुँच सकता था किन्तु उससे ऐसा नही किया | अथार्त उसने संपत्ति का दुर्विनियोग किया|


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2 यह तथ्य की ऐसी संपत्ति के खो जाने की सूचना C द्वारा कपटपूर्ण आशय से फैलाई गयी थी और A को यह विश्वास था या A इस बात को जानता था की C ने ऐसी सूचना जानबूचकर फैलाई है क्योंकि C उस संपत्ति पर मिथ्या (झूठा ) दावा करना चाहता था |

यह तथ्य यह दर्शित करता है की A को सूचना के बारे में ज्ञान था और उसे यह विश्वास था की C ने ऐसा कपटपूर्ण किया है इसलिए इससे यह साबित नही हिता है कि उसने उस संपत्ति का विनियोग सद्भावनापूर्वक नही किया था अथार्त A सद्भावपूर्वक या चाहे उसे ऐसी कपटपूर्ण सूचना प्राप्त हो | सुसंगत है | {सद्भावपूर्वक विश्वास }

द्रष्टांत (झ ) :-

A पर आरोप है कि उससे B को मार डालने के आशय से उस पर असन {shooting/fining} किया है | इसी वजह से A पर अभियोग चलाया जाता है |

यह तथ्य सुसंगत है की A ने B को मार डालने के आशय से उस पर पह्लेपहले भी कई बार असन किया था | {आशय }

द्रष्टांत (ञ)

A पर आरोप है कि उसने B की धमकी भरे पत्र भेजे है | यह तथ्य सुसंगत है की A ने B को पूर्व में भी कई बार धमकी भरे पत्र्र भेजे थे | {आशय }

द्रष्टांत (ट } :-

प्रश्न यह है कि क्या A ने अपनी पत्नी B के साथ क्रूटता की | इसलिए A का विचारण किया जाता है | क्रूटता के थोड़ी देर पहले या थोड़ी देर पश्चात् उन दोनों की एक दुसरे के प्रति जो भावना रही उसकी अभिव्यक्तियाँ सुसंगत है |

अथार्त उन दोनों की एक दूसरे के प्रति क्या भावना थी जैसे कि दोनों एक दूसरे के प्रति हीन भावना {बुरी भावना } रखते थे दोनों का एक दूसरे से वैमनस्य {बैर } था इस बात की अभिव्यक्तियाँ {उनकी बाते उनके expression/हाव भाव} सुसंगत है | क्योंकि इससे यह प्रतीत होगा की दोनों के बीच वैमनस्यया या नही {वैमनस्य पर आधारित }

शरीर की दशा या शारीरिक संवेदना :-

जब किसी व्यक्ति के शरीर के की दशा या शारीरिक संवेदना प्रश्नगत हो तब प्रत्येक ऐसे तथ्य का साक्ष्य दिया जा सकता है जिससे उक्त दशा या संवेदना का प्रभावित व्यक्ति के कथन महत्पूर्ण होते है क्योंकि वह व्यक्ति स्वंय अपने शरीर की दशा या संवेदना को सर्वाधिक जानता है |

दूसरे शब्दों में कहे तो जहाँ एक व्यक्ति के शरीर की दादा या शारीरिक संवेदना {अथार्त उसकी अपने शरीर की प्रतिभावना /bodily feeling} प्रश्नगत है | वहां स्वंय उस व्यक्ति के कथन बहुत महत्पूर्ण हो जाते है क्योंकि ऐसा व्यक्ति अपने शरीर की दशा या शारीरिक संवेदना के बारे बहुत अच्छी तरह से जानता है |


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शरीर की दशा या शारीरिक संवेदना वाले तथ्य तभी सुसंगत होते है जब वह ऐसी स्थिति में कहे जाए जब ऐसी शारीरिक दशा या शारीरिक संवेदना विधमान थी |

उदहारण क एलिए A एक व्यक्ति है जिसको विष दिया गया है और उस विष के कारण A के शरीर पर जो भी प्रभाव पड़े उनका साक्ष्य दिया जा सकता है लेकिन उनका साक्ष्य तभी दिया जा सकता है |

जब उस विष के कारण उसके शरीर पे कुछ प्रभाव पड़े हो और उससे प्रभावित होकर उससे कोई कथन किया है जैसे A बिमारी के दौरान बोलता कि में बीमार हूँ और मेरे पुरे शरीर में दर्द हो रहा है तो ऐसी स्थति में यह बोलने कि उसके शरीर में दर्द है सुसंगत तथ्य है क्योंकि जो शारीरिक दशा ज्यादा अच्छे तरीके से बता सकता है |

इस बात को समझने हेतु नींम द्रष्टातो का संदर्भ लिया जा सकता है –

द्रष्टांत (ठ):-

प्रश्न यह है कि क्या A की मृत्यु विष से करीत की गयी थी | अपनी रुग्णावस्था (बिमारी के दौरान ) के दौरान A द्वारा अपने लक्षणों के बारे में किये कथन सुसंगत तथ्य है |

क्योंकि इन तथ्यों को ऐसे समय में किया गया है जब शरीर की ऐसी दशा वर्तमान भी अथार्त A बीमार और लक्षणों के बारे में झूठ नही बोलेगा इसलिए सुसंगत है |

द्रष्टांत (ड ):-

प्रश्न यह है कि A के स्वास्थ्य की दशा उस समय कैसी थी जिस समय उसके जीवन का बीमा कराया गया था | यह तथ्य सुसंगत है कि जब बीमार थी या उसके जब उसकी बिमारी की दशा पूछी जा रही थी तब उसके द्वारा कहे गये कथन सुसंगत क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपनी शारीरिक दशा या संवेदना के बारे में उस समय झूठ नही बोलेगा जब प्रश्न करने समय उसकी शारीरिक दशा वास्तव में खराब है |

विशिष्ट तथ्यों का साक्ष्य दिया जाना चाहिए न कि किसी व्यक्ति की साधारण प्रवृत्ति का :-

धारा 14 का स्पष्टीकरण 1

धारा 14 का स्पष्टीकरण | धारा 14 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अत्यधिक व्यापक क्षेत्र को सीमित करता है | इसके अनुसार मन की सुसंगत दशा के अस्तित्व को दर्शित करने वाले तथ्य से यह दर्शित होना चाहिए की मन वह दशा साधारण नही वरन प्रश्नगत विशिष्ट विषय के बारे में अस्तिव में है |


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दुसरे शब्दों में अखे तोह धारा 14 भारतीय साक्ष्य अधिनियम का स्पष्टीकरण 1 धरा १4 के व्यापक क्षेत्र को सिमित करता है ऐसा इसलिए क्योंकि धरा मन की दशा के तथ्य को सुसंगत मानती है मन की दशा के अंतर्गत ऐसे तथ्य भी आते है जो कोई व्यक्ति साधारण करता ही है |

किन्तु धरा 14 का स्पष्टीकरण इस पर रोक लगाती है और कहती है कि धरा 14 में वह तथ्य सुसंगत होंगे जो प्रश्नगत किसी विशिष्ट कार्य के अंतर्गत किसी व्यक्ति की मन की दशा दर्शित करते हो अगर वह व्यक्ति किसी कार्य को करने साधारण रोज करता है तोह वह तथ्य सुसंगत नही होंगे |

इस बात को समझने हेतु धारा 14 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के निम्न द्रष्टांतो का संदर्ब लिया जा सकता है –

द्रष्टांत (ढ ) :-

A B पर वाद लगता है कि B ने उसे एक ऐसी गाडी भाड़े पर दी जो की अनुपयोग्य भी अथार्त उपयोग योग्य नही दी और उस गाडी से A को क्षति कारीत हुई और B ने ऐसा कार्य लापरवाही में किया |

यह तथ्य कि उस गाडी के सदर्भ में अन्य अवसरों पर भी B को बताया गया था | कि वह गाडी खराब है , सुसंगत तथ्य है | क्योंकि B जनता था कि गाडी खराब है और उससे फिर A को वह गाडी लापरवाही में भाड़े पर भी |

यह तथ्य सुसंगत नही है अथार्त विसंगत है की A द्वारा जितनी भी गाड़ियाँ दी जाती थी वह खराब दी जाती थी और बाद आदतन लापरवाही में ऐसी गाड़ियाँ भाड़े पर देता था अथार्त B को आदत पद चुकी थी | यह तथ्य विसंगत है |

क्योंकि साक्ष्य सिर्फ उशी गाडी के सन्दर्भ में दिया जा सकता है न कि उसकी आदत का यही बात स्पटिकरण 1 लहता है कि साक्ष्य विशिष्ट परिस्तितियों का या प्रश्नगत तथ्य के बारे में दिया जाएगा न कि किसी व्यक्ति की आदत का |

द्रष्टांत (ण ) :-

A पर आरोप है की उसने साशय {अथार्त आशय रख्जते हुए या आशय सहित} B की मृत्यु कारित की है | इसलिए A का विचारण किया जाता है |

यह तथ्य सुसंगत है कि A ने अन्य कई अवसरों पर B पर असन {shooting} किया था क्योंकि इससे A का यह आशय दर्शित होता है कि A B को मारना चाहता था |

किन्तु यह तथ्य सुसंगत नही है कि A असन करने का अभ्यासी या आदतन था और वह सभी व्यक्तियों पर असन करता था |

क्योंकि स्पटिकरण 1 सिर्फ प्रश्नगत तथ्यों के बारे में मन की दशा दर्शित करने की अनुमति देता है न की उसकी आदत के बारे में की उसकी आदत की ऐसी थी कि वह सब पर असन करता था साक्ष्य सिर्फ यह दिया जा सकता है की उसने B पर कई बार असन किया इससे A का यह आशय दर्शित होता है कि वह B को मारना चाहता था |

द्रष्टांत (त):-

A का किसी अपराध के लिए विचारण किया जाता है |

यह तथ्य सुसंगत है कि A ने एक बात कही जो उस अपराध पर {जिस अपराध के लिए उसका विचारण किया जा रहा है } के करने का आशय दर्शित करती है |

यह तथ्य सुसंगत नही है अथार्त विसंगत है कि उसने कोई बात कही जो यह दर्शित करती है जिस अपराध का विचारण A का किया जा रहा है उस प्रकार के अन्य अपराधो को मरने की उसकी साधारण प्रवृत्ति या प्रकति उपदर्शित करता है | यह सुसंगत नही क्योंकि धरा 14 का स्पष्टीकरण 1 :

इस बात पर रोक लगाती है ऐसा साक्ष्य नही दिया जाएगा जो किसी अपराध की साधारण प्रवृति दिखा रहा ह अथार्त कोई भी अपराध साधारण किस तरीके से किया जाता है | धरा 14 का स्पष्टीकरण 1 ऐसे सक्ष्य को पेश करने के अनुमति देते है जो यह दर्शित करो की जिस विशिष्ट मामले का विचारण चल रहा है वह कैसे किया गया |

आर बानाम प्रभुदास १८७४

तथ्य :- अभितुक्ति पर यह आरोप था की उसने वचनपत्र में कूटरचना की है | उसके घर पर छापा मारा गया | उनके दस्ताबेज बारामत हुए जिनमे से कुचकुच कूटरचित थे तथा कोच कूटरचित किये जाने की प्रक्रिया में थे |

अभिनिर्धारित :- बरामद दस्ताबेज अभियुक्त पर लगे आरोप के सदर्भ में सुसंगात्न्ही है क्योंकि इनके एक वर्ग के अपराधो को करने की प्रवृत्ति इंगित होती है अथार्त उनसे यह दर्शित होता है कि अभियुक्त कूटरचना करता है किन्तु यह दर्शित नही होता है कि अभियुक्त ने कूटरचना की है |

पूर्व दोष सिद्धियों का साक्ष्य :- {धारा 14 भारतीय साक्ष्य अधिनियम का स्पष्टीकरण 2}

धारा 14 के स्पष्टीकरण 2 यह दर्शित करता है कि अगर किसी व्यक्ति पर किसी अपराध के लिए जाने का आरोप लगाया जाता है और अगर अभियुक्त उसी प्रकार के अपराधों के लिए पूर्व में दोषसिद्ध किया गया है तो उस पुर्व्दोश सिद्धि का साक्ष्य दिया जा सकता है |

इस बात को समझने हेतु धारा 14 के द्रष्टांत (ख ) का संदर्भ लिया जा सकता है |

द्रष्टान्त (ख):-

A पर आरोप है कि किसी उसने किसी अन्य व्यक्ति को कूटकृत सिक्के का परिदान (देना) किया है और A जानता था कि वह सिक्का कूटकृत है |

निम्न तथ्य सुसंगत है |

a) यह तथ्य कि जब उसने उस अन्य व्यक्ति को एसा कूटकृत सिक्का {जाली सिक्का} दिया तब A के कब्जे में ऐसे और और अन्य कूटकृत सिक्के कूटकृत सिक्के भी थे और A यह जानता हुए की यह सिक्के कूटकृत फिर भी उन सिक्को का परिदान कर रहा था |

b) यह तथ्य की A द्वारा यह जानते हुए की सिक्के कूटकृत है पूर्व में भी उनका परिदान किया गया था और ऐसे परिदान हेतु A दोष सिद्ध भी हुआ था |

अथार्त A को न्यायालय द्वाराकूत्क्रत सिक्के का परिदान करने हेतु पहले भी दोषसिद्धि किया जा चुका है | सुसंगत है | यह तथ्य धरा 14 के स्पष्टीकरण 2 के अंतर्गत सुसंगत है |

सामान्य नियम यह है कि पूर्व दोषसिद्धि किसी बर्तमान विचारित मामले में न्यायालय किसी भी व्यक्ति को एस आधार पर दोषसिद्धि नहियो कर सकता है कि वक पूर्व मी भी दोषसिद्धि हुआ है |

लेकिन धारा 14 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत पूर्व दोषसिद्धि किसी वर्तमान विचरित मामले में दोषसिद्धि का आधार नही हो सकता है कि उसकी मन की दशा अपराध करने वाली है और उसने ऐसी ही मानसिक दशा के आधार पर पूर्व में भी अपराध किया है |

यह दर्शित करने हेतु पूर्व में भी अपराध उसने ऐसी ही मानसिक दशा के आधार पर पूर्व दोषसिद्धि का साक्ष्य दिया जा सकता है | पूर्व दोषसिद्धि अगर किसी व्यक्ति की शारीरिक दशा दर्शित करती है तो भी वह धरा 14 के स्पष्टीकरण 2 के अंतर्गत सुसंगत होगी |

आर बनाम पचुदास

तथ्य :- अभियुक्त हत्या तथा लूट का आरोप था | अभियोजंक ने उसके दोष को सिद्धि केरने हेतु उसके द्वारा की गयी पूर्व मई हत्याओं टाढा लूटो का साक्ष्य दिया |

अभिनिर्धारित :- पूर्व दोषसिद्धि का साक्ष्य वर्तमान मामले में दोषसिद्धि का आधार नही हो सकता है |

एम्परर बनाम अल्ल्कोमिया हसन १९०3 Bombay

तथ्य :- इस प्रकरण में यह हुआ था कि कुछ पुलिस अधिकारीयों ने अभियुक्त के घर पर छापा मारा और वहां देखा कि वहां फर्श पर आर अभियुक्त सहित 10 लोग गोल घेरा बना कर बैठे हुए थे और इस घेरे में ताश के पत्ते पड़े हुए है और कुछ रूपए पैसे भी पड़े हुए है लेकिन पुलिस अधिकारीयों ने वाश्ताविक जुआ या खेल होते हुए नही देखा था |

न्यायायलय में यह तथ्य प्रस्तुत किया गया कि उस कमरे में जुआ खेला जाता था और वहां से अभियुक्त को पहले भी पकड़ा गया है अभियुक्त जुआ खेलने के अपराध हेतु पूर्व में भी दोषसिद्धि जा चुका है |

अभिनिर्धारित :- न्यायलय द्वारा यह अवधारित किया गया कि यह तध्य कि अभियुक्त उस स्थान पर से पहले भी जुआ खेलते हुए पकड़ा गया था और उसकी पूर्व में भी दोषसिद्धि की गई थी तथा यह तथ्य की वर्तमान प्रकरण में अभियुक्त जहाँ बैठा था |

वहां ताश के पत्ते तथा पैसे पड़े हुए त्य्हे यह दोनों तथ्य मिलकर यह दर्शित कर रहे है कि अभियुक्त को जुआ खेलने हेतु पूर्व में भी दोषसिद्धि अभियुक्त की मानसिक दशा दर्शित कर रही है कि अभियुक्त जुआ खेलने का आदतन या और पूर्व में दोषसिद्धि किया जा चूका है इसलिए पूर्व दोषसिद्धि सुसंगत है |

इसलिए न्यायलय द्वारा यह अवधारित किया गया की अगर पूर्व दोषसिद्धि अभियुक्त की मानसिक दशा इंगित करती है तो ऐसी पूर्व दोषसिद्धि धारा 14 के स्पष्टीकरण 2 के अंतर्गत सुसंगत है |

अथार्त धारा 14 के स्पष्टीकरण 2 के अंतर्गत किसी व्यक्ति की पूर्व दोषसिद्धि का साक्ष्य दिया जाता है तो वह सुसंगत है |

धारा 14 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के स्पष्टीकरण 2 भारतीय साक्ष्य अभिनियम की धारा ५४ के साथ पठनीय है |

धारा 54 एक साधारण नियम यह प्रतिपादित करती है कि अभियुक्त के बुरे शील {अथार्त बुरा चरित्र } का साक्ष्य नही दिया जा सकता है और किसी भी इंसान कि अगर पूर्व दोषसिद्धि दर्शित को जाती है तो वह इस प्रयोजन के लिए कि जाती है कि उसका शील (चरित्र) अच्छा नही है और वह पूर्व मई दोष सिद्ध हो चुका है | किन्तु धारा 54 का स्पष्टीकरण यही कहता है कि पूर्वदोष सिद्धि यह दर्शित करने हेतु सुसंगत है कि अभियुक्त बुरे चरित्र का है |

और अगर साक्ष्य अभिनियम का कोई उपबंध { धारा 54 से अन्यथा } पूर्व दोषसिद्धि को सुसंगत मानता है तो कहे तो धारा 54 अखती है कि साक्ष्य अभिनियम मे पूर्व दोषसिद्धि सुसंगत तथ्य है तो धारा 54 उस पर लागू नही होगी | उधारण के लिए धारा 14 भारतीय साक्ष्य अधिनियम का स्पष्टीकरण 2 प[उर्वदोषसीदधि को सुसंगत मानता है अगर उस पूर्व दोषसिद्धि से अभियुक्त कि मानसिक दशा दर्शित हो रही है तो | ऐसी दशा मे पूर्व दोष सिद्धि का तथ्य सुसंगत हो जाएगा और धारा 54 का साधारण नियम कि अभियुक्त के बुरे शील का साक्ष्य नही दिया जा सकता लागू नही होगा |

धारा 14 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के स्पष्टीकरण 1 और 2 का तुलनात्मक अध्यन :-

धारा 14 भारतीय साक्ष्य अधिनियम का स्पष्टीकरण 1 यह निर्धारित करता है कि किसी मामले मे अगर  मन कि दशा दर्शित करनी है तो मन कि दशा उस विशिष्ट मामले हेतु दर्शित कि जानी चाहिए न कि साधारण किसी व्यक्ति कि मन कि दशा क्या रहती है यह दर्शित नही किया जाना चाहिए |

धारा 14 भारतीय साक्ष्य अधिनियम का स्पष्टीकरण 2 यह निर्धारित करता है कि किसी भी प्रकरण मई सख्या के रूप मई पूर्व सिद्धि ग्ताहन होगी या कहे कि किसी भी मामले मे यह तथ्य सुसंगत होगा कि किसी व्यक्ति को पूर्व मे भी दोषसिद्धि किया जा चुका है किन्तु ऐसी पूर्वसिद्धि सुसंगत होगी जब ऐसी पूर्व दोषसिद्धि उसकी मन कि दशा या शारीरिक दशा दर्शित करे |   उदाहरण :-

A पर यह आरोप है की उसने  B पर असन किया या फायरिंग की |

निम्नतथ्य स्पष्टीकरण 1 और 2 के अंतर्गत सुसंगत है :-

1) यह तथ्य की A ने B पर अन्य अवसरो पर भी असन किया था या वह पहले भी b पर असन करने हेतु दोषसिद्धि किया जा चुका है सुसंगत तथ्य है क्योंकि यह तथ्य यह दर्शित कर रहा है की A का आशय B पर असन करने का है यह तथ्य स्पष्टीकरण | और 2 दोनों मे सुसंगत है क्यूंकी स्पष्टीकरण 2 के अंतर्गत उसकी पूर्व दोषसिद्धि भी यही दर्शित कर रही है की A का आशय B पर असन करने का ही था |

2) धारा 14 भारतीय साक्ष्य अधिनियम का स्पष्टीकरण 1 इस तथ्य को सुसंगत नही मानता या विसंगत मानता है कि A अन्य लोगो पर { B को छोडकर } असन करने का आदतन था इससे यह दर्शित नही हो रहा है कि A ने B पर भी असन किया होगा | किन्तु अगर A अन्य लोगो पर असन करने हेतु पूर्व मे दोषसिद्धि किया जा चुका है तो ऐसी दोषसिद्धि स्पष्टीकरण 2 के अंतर्गत सुसंगत होगी क्योंकि यह A पूर्व मे भी असन हेतु दोषसिद्धि किया जा चुका है |

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