Indian contract Act का परिचय और प्रस्ताव की परिभाषा और उसके आवश्यक तत्व तथा प्रस्ताव के प्रकार{Definition of Proposal And Types} | न्यायिक परीक्षाओं के द्रष्टिकोण से सम्पूर्ण जानकारी |
परिचय :-
- भारतीय संविदा अधिनियम, 1872, 1 सितम्बर, 1872 को प्रभाव में आया।
- इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है |
- इसका उद्देश्य संविदाओं से सम्बंधित विधि के कतिपय भागो को परिभाषित और संशोधित करना है | अतः यह अधिनियम पूर्ण नही है |
- सम्पति अंतरण अधिनियम की धारा 4 यह उपबंधित करती है की सम्पति अंतरण अधिनियम में संविदाओं से सम्बंधित उपबंध भारतीय संविदा अधिनियम के भाग समझें जायेंगे | इस प्रकार सम्पति अंतरण अधिनियम एवंम भारतीय संविदा अधिनियम दोनों मिलकर संविदा की संहिता को पूरा करते है |
- यह अधिनियम भूतलक्षी भी नहीं है | इसका अर्थ है अधिनियम के पारित होने से पूर्व के जितने भी सनिदाओं के मामले है वो उसी रुढ़ि या तब की प्रशासित विधि से हल किये जायेंगे | वाणिज्यिक रुढ़ियों और प्रथाओं को इस अधिनियम के उपबंधो से असंगत होने पर भी संरक्षित रखा गया है |
- इस अधिनियम के निम्न दो अध्याय निरसित (हटा) किये जा चुके हैं :-
- अध्याय 7 ( धारा 76 – 123 );
- अध्याय 11 ( धारा 239-266)|
- अध्याय 7 एवंम अधयाय 11 के स्थान पर निम्न दो नए अधिनियम लाये गए हैं :-
- माल विक्रय अधिनियम, अध्याय 7 के स्थान पर,
- भारतीय भागीदारी अधिनियम, अध्याय 11 के स्थान पर।
CLASSIFICATION OF INDIAN CONTRACT ACT, 1872
भारतीय संविदा अधिनियम को हम 3 भागो में वर्गीकृत करते है :-
- संविदाओं से सम्बंधित सामान्य सिद्धांत ( धारा 3 – 75 );
- निरसित उपबंध ( अध्याय 7 एवमं अध्याय 11 );
- विशिष्ट उपबंध ( धारा 124 – 238 )|
इन तीनो भागो को भी कुछ भागो में बाँटा गया है जो की इस प्रकार है।
1. संविदाओं से सम्बंधित सामान्य सिद्धांत (धारा 3-75) :-
संविदा अधिनियम से सम्बंधित सामान्य सिद्धांतों को 6 भाग में बाँटा गया है जो की इस प्रकार है :-
- अध्याय 1 ( धारा 3 – 9 ) :- प्रस्तावो की संसूचना, प्रतिग्रहण और प्रतिसंहरण
- अध्याय 2 ( धारा 10 – 30 ) :- संविदाएं, शून्यकरणीय संविदाएं, शुन्य करार
- अध्याय 3 ( धारा 31 – 36 ) :- समाश्रित संविदाएं
- अध्याय 4 ( धारा 37 – 67 ) :- संविदाओं का पालन
- अध्याय 5 ( धारा 68 – 72 ) :-संविदा द्वारा सृजित सम्बन्धो के सदृश कतिपय सम्बन्धो के विषय में
- अध्याय 6 ( धारा 73 – 75 ) :- संविदा का भंग
2. निरसित उपबंध ( अध्याय 7 एवमं अध्याय 11) :-
निरसित उपबंध वे उपबंध है जिन्हे इस अधिनियम से हटा दिया गया है, और इस अधिनियम से सिर्फ 2 ही उपबंध हटाए गए हैं जो की इस प्रकार है :-
- अध्याय 7 ( धारा 76 – 123 ) :- जो की अब माल विक्रय अधिनियम के नाम से जाना जाता है।
- अध्याय 11 ( धारा 239 – 266 ) :- जो की अब भारतीय भागीदारी अधिनियम से जाना जाता है।
3. विशिष्ट उपबंध ( धारा 124 – 238 ) :-
विशिष्ट उपबंध को 3 भागो में बांटा गया है जो की इस प्रकार है :-
- अध्याय 8 ( धारा 124 – 147 ) :- क्षतिपूर्ति एवमं प्रत्याभूति की संविदा
- अध्याय 9 ( धारा 148 – 181 ) :- उपनिधान
- अध्याय 10 ( धारा 182 – 238 ) :- अभिकरण
इस अधिनियम की धारा 1 में इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ और व्यावृति बताई गइ है | जो की मैं आप लोगो को शुरू में बता चूका हूँ।
धारा – 2 ( निर्वचन खण्ड ) :-
इस धारा के अंतर्गत उन शब्दों को परिभाषित किया गया है जो की इस अधिनियम में प्रयुक्त किये गये है | एक तरीके से आप समझने के लिए बोल सकते है की इस अधिनियम के जो महत्वपूर्ण शब्द है उनको इस धारा में परिभाषित किया गया है | इस धारा में निम्नलिखित शब्दों को परिभाषित किया गया है :-
- प्रस्ताव (Proposal) {धारा 2(a)}
- प्रतिग्रहण (Acceptance) {धारा 2(b)}
- वचन, वचनदाता और वचनग्रहीता (Promise, Promisor and Promisee) {धारा 2(c)}
- प्रतिफल (Consideration) {धारा 2(d)}
- करार (Agreement) {धारा 2(e)}
- व्यतिकारी वचन (Reciprocal Promises) {धारा 2(f )}
- शुन्य करार (Void Agreement) {धारा 2(g)}
- संविदा (Contract) (धारा 2(h)}
- शून्यकरणीय संविदाएं (Voidable Contract) {धारा 2(i)}
- शुन्य संविदा (Void Contract) {धारा 2(j)}
FORMATION OF CONTRACT ( संविदा का निर्माण )
संविदा के निर्माण को हम एक फॉर्मूले के रूप में पढ़ेंगे जो की इस प्रकार है :-
प्रस्ताव {धारा 2(a)} + प्रतिग्रहण {धारा 2(b)} = वचन{धारा 2(c)}* => करार {धारा 2(e)}करार {धारा 2(e)} + विधि द्वारा प्रवर्तनीय {धारा 10 } = संविदा {धारा 2(h)}
*आप लोगो के मन में एक सवाल जरुर होगा की मैंने वचन को सीधे करार में कैसे परिवर्तित कर दिया तो जमीन आप लोगो को बता दूँ की किसी भी कार्य को करने का वचन देना अपने आप में एक करार है |
PROPOSAL ( प्रस्ताव )
- एक वैध प्रस्ताव संविदा के निर्माण की और प्रथम चरण है। प्रस्ताव को भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 2(a) में परिभाषित किया गया है। प्रस्ताव करने वाला व्यक्ति प्रस्तावक कहलाता है, और जिस व्यक्ति को प्रस्ताव किया जाता है वह प्रस्ताविति कहलाता है। केवल प्रस्ताविति प्रस्ताव को स्वीकार कर सकता है।
- स्वीकृति संविदा के निर्माण की ओर दूसरा चरण है। स्वीकृति को भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 2(b) में परिभाषित किया गया है। स्वीकृति प्रस्ताव को अंतिमतः प्रदान करती है। स्वीकृत प्रस्ताव वचन कहलाता है। {धारा 2(b)}
- वचन एक करार है। विधि द्वारा प्रवर्तनीय करार एक संविदा है {धारा 2(h)} | वह करार वो विधि द्वारा प्रवर्तनीय नहीं है शुन्य है {धारा 2(g)} | ऐसा करार जो एक या अधिक पक्षकारो के विकल्प पर प्रवर्तनीय हो, परन्तु अन्य पक्षकार या पक्षकारों के विकल्प पर नहीं, शून्यकरणीय संविदा है {धारा 2(i)}। ऐसी संविदा जो विधि द्वारा प्रवर्तनीय नहीं रह जाती है वह तब तक शुन्य हो जाती है जब वह प्रवर्तनीय नहीं रह जाती है {धारा 2(j)} |
DEFINITION OF PROPOSAL (प्रस्ताव की परिभाषा)
“जबकि –
- एक व्यक्ति किसी बात को करने या करने से प्रविरत रहने की अपनी रजामंदी
- किसी अन्य को इस दृष्टि से संज्ञापित करता है, की
- ऐसे कार्य या प्रविरति के प्रति उस अन्य की अनुमति अभिप्राप्त करे
तब वह प्रस्थापना करता है, यह कहा जाता है। ”
एक वैध प्रस्ताव के आवश्यक तत्व
- एक वैध प्रस्ताव के आवयश्क तत्व निम्नवत है :-
- यह सदैव किसी दूसरे व्यक्ति के प्रति किया जाता है। क्योंकि कोई भी व्यक्ति स्वयं को प्रस्ताव नहीं कर सकता है।
- यह किसी कार्य को करने या न करने की इच्छा को अभिव्यक्त करता है।
- इसका उद्देश्य अभिकथित कार्य या प्रविरति के प्रति प्रस्तविति की सहमति प्राप्त करना है।
- प्रस्ताव स्पष्ट या गर्भित हो सकता है। जब प्रस्ताव लिखत या मौखिक शब्दों में व्यक्त किया जाता है तो उसे स्पष्ट प्रस्ताव कहते है और जब प्रस्ताव पक्षकारो के आचरण या परिस्थितियों से प्रकट होता है तो उसे गर्भित पक्षकार कहते है।
- प्रस्ताव किसी विशिष्ट व्यक्ति या जनसाधारण को किया जाता है।
- प्रस्ताव विधिक सम्बन्ध स्थापित करने के आशय से किया जाना चाहिए। संविदा करने का आशय वस्तुपरक होता है। इसका अवधारण मामले के तथ्य एवंम परिस्थितियों से किया जाता है। सामान्यतः सामाजिक और घरेलू करारो में यह प्रकल्पना की जाती है की पक्षकारो का आशय विधिक सम्बन्ध श्रजित करने का नहीं था।
बाल्फोर बनाम बाल्फोर, 1919
मामले के तथ्य :- श्री बाल्फोर ने अपनी बीमार पत्नी जो की इंग्लैंड में थी, को प्रतिमाह 30 पौंड भेजते रहने का वचन दिया था क्योंकि बाल्फोर श्री लंका में नौकरी करते थे और उनकी पत्नी बीमारी के कारन श्री लंका जाने में असमर्थ थी। बाल्फोर ने निर्धारित राशि नहीं भेजी और इसलिए उनकी पत्नी ने उनके विरुद्ध वाद संस्थित किया।
अभिनिर्धारित :- न्यायलय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया की वह उस राशि को नहीं वसूल सकती, क्योंकि वह वचन पति पत्नी के बिच का एक पारिवारिक समझौता था तथा उनका विधिक सम्बंध स्थापित करने का कोई आशय नहीं था।
- प्रस्ताव की शर्ते निश्चित, स्पष्ट होनी चाहिए भ्रामक नहीं।
- प्रस्ताव की शर्ते युक्तियुक्त, विधिक, एवंम लोकनीति के विरुद्ध नहीं होनी चाहिए।
लिली वाइट बनाम मुन्नू स्वामी, 1966 मद्रास
मामले के तथ्य :- इस वाद में ग्राहक ने 220 रु मूल्य की नई साड़ी ड्राई क्लीनिंग के लिए दी। साड़ी खो गई। ग्राहक ने शादी के पुरे मूल्य हेतु दवा प्रस्तुत किया, जबकि ड्राई क्लीनर ने इस आधार पर 50% राशि प्रस्ताव किया की रसीद के पीछे यह शर्त लिखी हुई थी की कपड़ो के खो जाने पर उनके मूल्य की 50% राशि का ही भुगतान किया जायगा।
अभिनिर्धारित :- न्यायलय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया की शर्त अयुक्तियुक्त एवंम लोकनीति के विरुद्ध है क्योंकि इससे समाज में बेइमानी को बढ़ावा मिलेगा।
- प्रस्ताव में ऐसी कोई शर्त नहीं होनी चाहिए जिसका पालन न होने पर प्रस्ताव को स्वीकृत मन लिया जाता हो।
फेल्ट हाउस बनाम बिन्दले , 1863
मामले के तथ्य :- इस मामले में फेल्ट हाउस ने एक बार अपने भतीजे को एक पत्र लिखा और उसमे उसने अपने भतीजे का एक घोड़ा 30 पौंड में खरीदने का प्रस्ताव किया और यह भी लिखा की “यदि मुझे इस बारे में कोई उत्तर नहीं मिला तो में समझूंगा की घोड़ा मेरा हो गया। भतीजे ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया।
अभिनिर्धारित :- यह अभिनिर्धारित किया गया गया की किसी संविदा का निर्माण नहीं हुआ क्योंकि प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया किया गया था।
- प्रस्ताव तथा इच्छा प्रकट करने में अंतर है। यदि कोई व्यक्ति विधिक दायित्व उत्पन्न करने के आशय के बिना घोषणा करता है तो उसे प्रस्ताव नहीं कहते है।
हेरीज बनाम निकटसन, 1873
मामले के तथ्य :-इस मामले एक व्यक्ति फर्नीचर का क्रय करने के आशय से काफी दूर से नीलामी स्थल परन्तु नीलामी स्थगित कर दी गई।
अभिनिर्धारित :- यह अभिनिर्धारित किया गया की वह अपने समय व धन की बर्बादी के लिए नीलामीकर्ता के विरुद्ध वाद नहीं ला सकता है। क्योंकि वह विज्ञापन प्रस्ताव न होकर नीलामी करने की इच्छा घोषणा मात्र है।
- प्रस्ताव और प्रस्ताव के लिए निमंत्रण में अंतर करना चाहिए। प्रस्ताव के लिए निमंत्रण की दशा में निमंत्रण देने वाला व्यक्ति स्वयं प्रस्ताव नहीं करता है, बल्कि वह दूसरे व्यक्ति को प्रस्ताव करने के लिए आबंटित करता है।
यदि कोई व्यक्ति कुछ ऐसी शर्ते बताता है या सूचना प्रदत्त करता है जिनके आधार पर वह वार्तालाप करने के लिए तैयार एवंम रजामंद है तो वह प्रस्थपना के लिए निमंत्रण देता है यह कहा जाता है।
हार्वे बनाम फ़ेसी, 1893
मामले के तथ्य :- इस मामले में वादी ने प्रतिवादी को -” आप हमे बम्पर हॉल पेन का विक्रय करेंगे ? काम-से-कम नकद मूल्य का तार दीजिए।”
प्रतिवादी ने तार द्वारा उत्तर दिया – “बम्पर हॉलपेन का कम-से-कम नकद मूल्य 900 पौंड है।”
वादी पुनः तार भेजा – “आपके द्वारा बताये गए 900 पौंड में बम्पर विक्रय करने के लिए हम सहमत है।”
वादी ने इस आधार पर बम्पर हॉलपेन का दावा किया की एक बंधनकारी संविदा का निर्माण हुआ।
अभिनिर्धारित :- यह अभिनिर्धारित किया गया की प्रतिवादी का तार प्रस्तावना के लिए निमंत्रण था और वादी का तीसरा तार क्रय करने का प्रस्ताव था जो प्रतिवादी द्वारा कभी स्वीकृत नहीं किया गया। अतः किसी बंधनकारी संविदा का निर्माण नहीं हुआ।
- प्रस्ताव को सम्यक रूप से संसूचित अवश्य किया जाना चाहिए। स्वीकृतः को प्रस्ताव की संसूचना के बिना प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
लाल मन शुक्ल बनाम गौरी दत्त , 1903
मामले के तथ्य :- इस मामले में गौरी ने अपने मुनीम लाल को अपने भतीजे को ढूढ़ने को भेजा। मुनीम के चले जाने के बाद गौरी ने यह घोषणा की जो भी मेरे भतीजे को ढूंढ कर लाएगा उसे 50 रु का इनाम दिया जायेगा। लाल ढूंढ लाया। इसके पश्चात जब लाल को इनाम की घोषणा की जानकारी हुई तो उसने इनाम की मांग की।
अभिनिर्धारित :- यह अभिनिर्धारित किया गया की लाल इनाम पाने का अधिकारी नहीं है क्योंकि जब भतीजे को ढूंढा, उस समय उसे प्रस्ताव का ज्ञान नहीं था और जब तक प्रस्ताव का ज्ञान न हो वह स्वीकार नहीं किया जा सकता।
Kinds of Proposal ( प्रस्ताव के प्रकार ) :-
प्रस्ताव निम्न 5 प्रकार का हो सकता है :-
- अभिव्यक्त प्रस्ताव एवंम विवक्षित प्रस्ताव;
- विशिष्ट प्रस्ताव एवंम आम प्रस्ताव;
- क्रॉस प्रस्ताव;
- प्रतिप्रस्ताव;
- खुला या स्थायी प्रस्ताव |
अभिव्यक्त प्रस्ताव एवंम विवक्षित प्रस्ताव :-
जब प्रस्ताव लिखित या मौखिक शब्दों में व्यक्त किया जाता है तो उसे अभिव्यक्त प्रस्ताव हैं। {धारा 9}
उदाहरण :- a एक पत्र लिखकर अपनी कार b को 40000 रु में बेचने का प्रस्ताव करता है। यह अभिव्यक्त प्रस्ताव है।
जब प्रस्ताव मौखिक या लिखित शब्दों द्वारा नहीं बल्कि पक्षकारो के आचरण या परिस्थितियों से प्रकट होता है तो उसे विवक्षित प्रस्ताव कहते है। { धारा 9 }
उदाहरण :- दिल्ली में D.T.C. विभिन्न अपनी बसे चलती है जो कोई भी जो कोई भी निर्धारित किराया देने को तैयार हो उसे वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है यह एक विवक्षित प्रस्ताव है।
विशिष्ट प्रस्ताव एवंम आम प्रस्ताव :-
जब प्रस्ताव किसी विशिष्ट व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को किया जाता है तो उसे विशिष्ट प्रस्ताव कहते है।
वह केवल उस निश्चित व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा ही स्वीकृत किया जा सकता है जिसे वह किया गया है।
जब प्रस्ताव जन साधारण या जन सामान्य को किया जाता है तो उसे सामान्य प्रस्ताव या आम प्रस्ताव कहते हैं। दूसरे शब्दों में ऐसे मामलो में बंधनकारी संविदा के सर्जन हेतु प्रस्तावक को स्वीकृति की संसूचना दिया जाना आवयश्क है।
कार्लिल बनाम कार्बोलिक स्मोक बॉल कम्पनी, 1893
मामले के तथ्य :- इस मामले में a कंपनी ने विज्ञापन निकला की जिस किसी को कंपनी द्वारा निर्मित स्मोक बॉल नामक दवा का दिय गए निर्देशों के अनुसार उपयोग करने पर भी इन्फ्लुएंजा होगा, तो कंपनी उस व्यक्ति को 100 पौंड इनाम देगी । श्रीमती कार्लिल ने विज्ञापन पर विश्वाश करके निर्देशानुसार दवा का उपयोग उपयोग किया परन्तु फिर भी उन्हें इन्फ्लुएंजा हो गया।
अभिनिर्धारित :- यह अभिनिर्धारित किया गया की वादी इनाम की हक़दार है क्योंकि उसने प्रस्ताव की शर्तो का पालन करके कंपनी के प्रस्ताव को स्वीकार किया था।
क्रॉस प्रस्ताव :-
जब दो व्यक्ति एक दूसरे के प्रस्ताव की जानकारी के बिना एक दूसरे को एक जैसा ही प्रस्ताव करते है तो उन्हें क्रॉस प्रस्ताव कहते हैं। स्थिति में एक व्यक्ति के प्रस्ताव को दूसरे व्यक्ति के प्रस्ताव की स्वीकृति नहीं माना जाता है। अतः उनके बिच किसी संविदा का निर्माण नहीं हुआ।
टिन बनाम हॉब्स मैन
मामले के तथ्य :- a ने दिल्ली से एक पत्र द्वारा अपना माकन 10 लाख रु में b को बेचने का प्रस्ताव किया। उसी दिन बॉम्बे से b ने भी एक पत्र द्वारा a का मकान 10 लाख रु में खरीदने का प्रस्ताव किया।
अभिनिर्धारित :- यह अभिनिर्धारित किया गया की किसी वेध संविदा का निर्माण नहीं हुआ, क्योंकि द्वारा किय गए प्रस्ताव क्रॉस प्रस्ताव है, इसलिए किसी के भी प्रस्ताव को दूसरे के प्रस्ताव की स्वीकृति नहीं मन जा सकता।
प्रतिप्रस्ताव :-
जब कोई प्रस्ताव पूर्णतः या शर्त रहित स्वीकृत नहीं किया जाता है या उसे शर्तो के अधीन स्वीकार किया जाता है तो उस स्वीकृति को प्रस्ताव माना जाता है।
हाइड बनाम ब्रेंच, 1840
मामले के तथ्य :- इस मामले में प्रतिवादी ने अपना फार्म 1000 पौंड में वादी को बेचने का प्रस्ताव किया। वादी ने उत्तर दिया की वह फार्म केवल 950 पौंड में खरीदेगा।
प्रतिवादी ने उत्तर दिया की वह 950 पौंड में फार्म का विक्रय नहीं करेगा। वादी ने प्रतिउत्तर में प्रतिवादी से कहा, की वह फार्म के लिए 1000 पौंड देने को तैयार है।
प्रतिवादी ने वादी को 1000 पौंड में भी अपने फार्म का विक्रय नहीं किया। वादी ने संविदा के विनिर्दिष्ट पालन हेतु वाद प्रस्तुत किया।
अभिनिर्धारित :- यह अभिनिर्धारित किया गया की वादी ने 950 पौंड में फार्म का क्रय करने के प्रतिप्रस्ताव से प्रतिवादी के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया था और इस प्रकार नामंजूर किये गए प्रस्ताव को बाद में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
खुला या स्थायी प्रस्ताव :-
कभी कभी प्रस्ताव सतत प्रकृति का होता है, इसे खुला या स्थायी प्रस्ताव कहा जाता है। खुला प्रस्ताव निविदा के सामान होता है।
प्रायः कोई व्यक्ति या विभाग या अन्य संस्था द्वारा कुछ वस्तुओं की बड़ी बड़ी मात्रा में मांग करने के लिए विज्ञापन निकाला जाता है वास्तव में वह प्रस्ताव न होकर प्रस्ताव के लिए निमंत्रण होता है। जब कोई व्यक्ति विशिष्ट वस्तुओं या सेवाओं को प्रदान करने के लिए टेंडर भरकर भेजता है तो उस व्यक्ति की और से प्रस्ताव किया समझा जाता है।
जब किसी विशेष टेंडर को स्वीकार किया जाता है तो यह खुला प्रस्ताव माना जाता है।