CRPC | धारा 156 दंड प्रक्रिया संहिता

CRPC SEC 156 की पूरी जानकारी | न्यायिक परिक्षओं में पूछे गये प्रश्नों के साथ |

Table of Contents

CRPC-धारा 156

संज्ञेय मामलों का अन्वेषण करने की पुलिस अधिकारी की शक्ति :-{धारा 156 दंड प्रक्रिया संहिता}

1. थाना प्रभारी, मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना किसी ऐसे संज्ञेय मामले का अन्वेषण कर सकता है, जिसकी जॉच या विचारण करने की शक्ति उस थाने की सीमाओं के भीतर के स्थानीय क्षेत्र पर अधिकारिता रखने वाले न्यायालय को अध्याय 13 के उपबंधों के अधीन है। {धारा 156(1) सीआरपीसी}

2. किसी संज्ञेय मामले में पुलिस अधिकारी की कोई कार्यवाही किसी भी प्रकरण में इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी की वह पुलिस अधिकारी उस मामले का अन्वेषण करने के लिए सशक्त नहीं था। {धारा 156(2) CRPC}

3. ऐसा कोई मजिस्ट्रेट, जो धारा 190 के अंतर्गत मामले का संज्ञान लेने के लिए सशक्त है, उस मामले का अन्वेषण करने का आदेश कर सकता है। {धारा 156(3)CRPC}

क्या पुलिस न्यायलय के आदेश के बिना अन्वेषण कर सकती है :-

क्या पुलिस न्यायलय के आदेश के बिना अन्वेषण कर सकती है
क्या पुलिस न्यायलय के आदेश के बिना अन्वेषण कर सकती है

संज्ञेय मामलो में पुलिस न्यायालय के आदेश के बिना अन्वेषण कर सकती है | ऐसे मामलो अन्वेषण पर या ऐसे अम्वेशन करने वाले पुलिस अधिकारी के कार्य पर न्यायलय का कोई नियंत्रण नही रहता है |

Eastern Spinning mills Vs. Rajeev Poddar, 1985 S.C.

अभिनिर्धारित :- अपराधों के अन्वेषण में उच्च न्यायलय का हस्तक्षेप केवल तभी अनुज्ञेय है जब ऐसा हस्तक्षेप न करने का परिणाम न्याय की हत्या होना होगा |

क्या कोई व्यक्ति अपना अन्वेषक और न्यायाधीश स्वयं चुन सकता है :-

T. Sarojni Ammal Vs. Union of India, 1992 Ker. H.C.

अभिनिर्धारित :- केरल उच्च न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया की कोई पक्षकार अपना अन्वेषक या न्यायाधीश स्वयं नही चुन सकता है |

नज़ीर अहमद, 1944, बोम्बे हाई कोर्ट

अभिनिर्धारित :- संज्ञेय अपराध के मामलो में पुलिस न्यायालय के आदेश के बिना अन्वेषण कर सकती है | ऐसे मामलो के अन्वेषण पर या ऐसे अन्वेषण को करने वाले पुलिस अधिकारी के कार्य पर न्यायालय का कोई नियंत्रण नही होता है |

क्या मजिस्ट्रेट अन्वेषण हेतु C.B.I. को आदेशित कर सकता है :-

State of Karnataka Vs. Thaimmia, 1999 Kant. H.C.

अभिनिर्धारित :- अन्वेषण करने के लिए मजिस्ट्रेट सी.बी.आई.(C.B.I.) को निदेशित नही कर सकता है, मजिस्ट्रेट सिर्फ उसी थाने के भारसाधक पुलिस अधिकारी को निदेशित कर सकता है जो उसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर आता है |

सी.बी.आई. बनाम स्टेट, 2001, सुप्रीम कोर्ट

अभिनिर्धारित :- मजिस्ट्रेट को धारा 156(3) के अंतर्गत सी.बी.आई. को अन्वेषण करने का आदेश देने की शक्ति नही है |

मजिस्ट्रेट द्वारा अन्वेषण का आदेश :-{धारा 156(3)CRPC}

ऐसा कोई मजिस्ट्रेट, जो सीआरपीसी की धारा 190 के अंतर्गत मामले का संज्ञान लेने के लिए सशक्त है, उस मामले का अन्वेषण करने का आदेश कर सकता है। यह उपधारा किसी ऐसे मामले की जाँच करने के लिए पुलिस को आदेश देने के लिए मजिस्ट्रेट को सशक्त करती है जहाँ वह स्वयं तत्काल आदेशिका नही जरी कर सकता है|

बटेश्वर सिंह बनाम स्टेट ऑफ़ बिहार, 1992 पटना

अभिनिर्धारित :- दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) में मजिस्ट्रेट से तात्पर्य न्यायिक मजिस्ट्रेट से है जो संज्ञेय अपराध का संज्ञान लेने के लिए सशक्त है न की कार्यपालक मजिस्ट्रेट से |

हरभजन सिंह बनाम स्टेट ऑफ़ एम.पी. 2002, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय

अभिनिर्धारित :- धारा 156(3) किसी ऐसे मामले की जाँच करने के लिए पुलिस को आदेश देने के लिए मजिस्ट्रेट को सशक्त करती है जहाँ वह स्वयं तत्काल आदेशिका नही जारी करता है |

क्या न्यायलय अन्वेषण मे हस्तक्षेप कर सकता है ?

नहीं न्यायलय अन्वेषण में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है | इस सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निम्न मामले में प्रतिपादित किया गया की :-

शरीफ अहमद बनाम स्टेट (NCT DELHI), 2009 सुप्रीम कोर्ट

अभिनिर्धारित :- न्यायालय अन्वेषण एजेंसी को यह निदेशित नही कर सकता है की वह किसी विशिष्ट अपराध पर ध्यान केन्द्रित करे और तद्नुसार अन्वेषण करे |

कृष्ण लाल बनाम धर्मेन्द्र बाफना, 2009 सुप्रीम कोर्ट

अभिनिर्धारित :- अन्वेषण में न्यायिक हस्तक्षेप केवल आपवादित दशाओं में ही किया जा सकता है |

Also Read :- https://folkslegal.com/apradh-ka-arth-ipc/

कब न्यायालय पुनः अन्वेषण करने का निर्देश दे सकता है ?

कृष्ण लाल बनाम धर्मेन्द्र बाफना, 2009 सुप्रीम कोर्ट

अभिनिर्धारित :- के मामले में उच्चतम न्यायालय ने विनिश्चय किया कि निम्न परिस्थितियों में पुनः अन्वेषण करने का निर्देश दिया जा सकता है-
1. यदि मामले में नये तथ्य प्रकाश में आये हो; या
2. यदि न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुॅचता है कि मामले में किया गया अन्वेषण कलुषित या अनुचित है; या
3. यदि न्यायालय यह अनुभवन करे कि न्यायिक दृष्टि से पुनः अन्वेषण कराया जाना न्यायोचित होगा।

मजिस्ट्रेट द्वारा पुलिस अधिकारी को निर्देश

क्या मजिस्ट्रेट पुलिस अधिकारी द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता धारा 173(2) सीआरपीसी के अधीन पुलिस रिपोर्ट भेजे जाने के पश्चात् भी आगे अन्वेषण को जारी रखने का निर्देश दे सकता है?

हॉ। पुलिस अधिकारी द्वारा मजिस्ट्रेट को धारा 173(2) सीआरपीसी के अधीन पुलिस रिपोर्ट भेजे जाने के बाद भी मजिस्ट्रेट धारा 156(3) सीआरपीसी के अधीन अन्वेषण को आगे जारी रखने का निर्देश दे सकता है।
पंरतु यदि मजिस्ट्रेट धारा 173(2) सीआरपीसी के अधीन भेजी गई पुलिस रिपोर्ट के आधार पर अपराध का संज्ञान ले लेता है तो वह धारा 156(3) सीआरपीसी के अधीन अन्वेषण को आगे जारी रखने का निर्देश नहीं दे सकेगा। {रणधीर सिंह राणा बनाम् दिल्ली प्रशासन, 1997, उच्चतम न्यायालय}

अन्वेषण का वीडियोग्राफ तैयार किये जाने का आदेश :-

उच्चतम न्यायालय ने राज्य सरकार को आदेश दिया की अन्वेषण की जाँच हेतु एक समिति की गठन किया जाए और अन्वेषण की वीडियोग्राफी तैयार किये जाने की व्यवस्था की जाए | उच्चतम न्यायलय ने यह आदेश उक्त मामले में दिया :-

दया शंकर बनाम स्टेट ऑफ़ यू.पी., 1999, सुप्रीम कोर्ट

अभिनिर्धारित :- उच्चतम न्यायलय ने राज्य सरकार को निदेशित किया की वह एक समिति गठित करे जो अन्वेषण के विभिन्न पहलुओं की जाँच करे और अन्वेषण वैज्ञानिक ढंग से किये जाने का सुझाव प्रस्तुत करे | न्यायलय ने अन्वेषण की वीडियोग्राफी किये जाने पर भी बलपूर्वक जोर दिया | न्यायालय ने राज्य सरकार को निदेशित किया की मानववध की स्थिति में शव परीक्षा की वीडियोग्राफी तैयार किया जाना चाहिए |

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) और 202(1) में अंतर :-

देवरापल्ल्ली लक्ष्मी नारायण रेड्डी बनाम नारायण रेड्डी, 1976 सुप्रीम कोर्ट

अभिनिर्धारित :- सीआरपीसी की धारा 156(3) के अधीन पुलिस अन्वेषण के लिए आदेशित कने की शक्ति धारा 202(1) के अधीन अन्वेषण के लिए निदेशित करने की शक्ति से भिन्न है | धारा 156(3) के अधीन अन्वेषण का आदेश संज्ञान लेने से पूर्व दिया जाता है जबकि धारा 202(1) के अन्वेषण का आदेश संज्ञान लेने के पश्चात् दिया जाता है |

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