आज हम जानेंगें सह अभियुक्त/Co-Accused के बारे की यह होता क्या है इसके द्वारा दिए गये साक्ष्य की क्या अहमियत होती है इसका प्रावधान भारतीय साक्ष्य अधिनियम/Indian Evidence Act की किस धारा में किया गया है |
जब एक से अधिक व्यक्तियों को एक ही या कई अपराधो के लिए संयुक्त रूप से विचारित किया जाता है तो वे एक दुसरे के सह अभियुक्त/Co-Accused कहलाते है |
सह अभियुक्त/Co-Accused के द्वारा की गई संस्वीकृति क्या होती है :-
जब सह-अभियुक्त में से किसी एक के द्वारा ऐसी संस्वीकृति की गई हो जिससे वह स्वयं तथा उसके अन्य सह-अभियुक्त फसतें हो तो उसे सह-अभियुक्त की संस्वीकृति कहा जाता है | इससे सम्बंधित विधि सा Sec 30 of Indian Evidence Act में उपबंधित है | धारा 30 इस नियम का अपवाद है की किसी अभियुक्त द्वारा की गई संस्वीकृति केवल उसी के विरुद्ध सुसंगत होती है |
धारा 30 के आवश्यक तत्व :-
दो या अधिक व्यक्तियों का संयुक्त विचारण किया जा रहा हो | उनका विचारण एक ही अपराध के लिए किया जा रहा हो (जिसमे उस अपराध का दुष्प्रेरण व प्रयत्न शामिल हो )|
ऐसे व्यक्तियों में से किसी एक के द्वारा स्वयं को और ऐसे व्यक्तियों में से किसी अन्य को फसाने वाली की गई संस्वीकृति को साबित किया गया हो |
तब न्यायालय ऐसी संस्वीकृति को निम्न के विरुद्ध विचार में ले सकेगा :-
- ऐसी संस्वीकृति करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध तथा
- ऐसे अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध |
द्रष्टान्त:-
क और ब को स की हत्या के लिए सयुंक्त रूप से विचारित किया जाता है | यह साबित किया जाता है की क ने कहा, ” ब और मैंने स की हत्या की है |” ब के विरुद्ध इस संस्वीकृति के प्रभाव पर न्यायालय विचार कर सकेगा |
सह-अभियुक्त की संस्वीकृति का सक्ष्यिक मूल्य :-धारा 30 सह-अभियुक्त की संस्वीकृति के सक्ष्यिक मूल्य के सम्बन्ध में मौन है | यह धारा केवल इतना ही कहती है की न्यायालय ऐसी संस्वीकृति अन्य सह-अभियुक्त के विरुद्ध विचार में ले सकेगा | इसका सक्ष्यिक मूल्य कितना होगा यह न्यायालय के विवेक पर छोड़ दिया गया है |
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अभियुक्त की संस्वीकृति उसके अपने विरुद्ध एक सारवान तथा निश्चायक प्रकृति का साक्ष्य है | यदि वह स्वेच्छिक तथा सत्य एवं विश्वसनीय है तो अभियुक्त की दोषसिद्धि का एकल आधार हो सकती है परन्तु अन्य सह-अभियुक्त के विरुद्ध यह एक दुर्बल साक्ष्य है | वास्तव में यह विधिक अभिप्राय में कोई साक्ष्य ही नही है |
न्यायालय ने अनेक मामलो में यह अभिनिर्धारित किया है की सह-अभियुक्त की संस्वीकृति से स्वतन्त्र ऐसा प्राप्त साक्ष्य होना चाहिये जिसके आधार पर अभियुक्त की दोषसिद्धि की जा सके | इसके पश्चात् ही न्यायालय सह-अभियुक्त की संस्वीकृति को अतिरिक्त साक्ष्य के रूप में विचार में ले सकता है |
भागौनी साहू बनाम द किंग, 1949 (प्री.वी. काउंसिल)
अभिनिर्धारित:- सह-अभियुक्त की संस्वीकृति एक दुर्बल साक्ष्य है क्योंकि यह साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 में दी गई साक्ष्य की परिभाषा के अनुसार साक्ष्य नही है | ऐसी संस्वीकृति शपथ पर नही की जाती है और न ही दुसरे अभियुक्त की उपस्थिति में की जाती है | इसकी प्रति-परीक्षा द्वारा जाँच भी नही की जा सकती है | अतः यह दोषसिद्धि का एकल आधार नही हो सकती है | इसका केवल समर्थनकारी मूल्य हो सकता है |
कश्मीरा सिंह बनाम मध्यप्रदेश राज्य, 1952 (एस.सी.)
अभिनिर्धारित :- इस मामले में भागौनी साहू के प्रकरण में प्रिवी काउंसिल द्वारा धारित विधि का अवलम्ब विश्वास करते हुए न्यायालय ने धारित किया की सह अभियुक्त द्वारा की गई संस्वीकृति का सक्ष्यिक बल बहुत दुर्बल होता है | किसी व्यक्ति के जीवन तथा निजी स्वतंत्रता को ऐसे दुर्बल साक्ष्य के आधार पर नही छिना जा सकता है | जबकि तात्विक विशिष्टियों में इसकी संपुष्टि नही हो जाती है | अतः यह दोषसिद्धि का एकल आधार नही हो सकती है |
रामेश्वर बनाम स्टेट ऑफ़ राजस्थान, 1952 (एस.सी.)
अभिनिर्धारित :- सह अभियुक्त की संस्वीकृति का समर्थन किसी ऐसे गवाह के परिसाक्ष्य से नही किया जा सकता जो भले ही स्वयं सह अपराधी नही है, किन्तु विश्वसनीयता के हिसाब से वैसी ही स्थिति में है |
स्टेट ऑफ़ तमिलनाडु बनाम कुटी, 2001 (एस.सी.)
अभिनिर्धारित :- एक सह अभियुक्त की संस्वीकृति से किसी दुसरे की संस्वीकृति की पुष्टि नही की जा सकती है |
पंचो बनाम स्टेट ऑफ़ हरियाणा, 2011 (एस.सी.)
अभिनिर्धारित :- उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में यह अभिनिर्धारित किया की माना कि सह अभियुक्त की संस्वीकृति सारवान साक्ष्य नहीं है सह अभियुक्त द्वारा की गई संस्वीकृति का प्रयोग केवल अन्य साक्ष्यों की पुष्टि के लिए किया जा सकता है न की इस संस्वीकृति के आधार पर किसी अन्य अभियुक्त को दोषसिद्ध या दोषमुक्त किया जा सकता है | इस सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय ने यह तर्क दिया की माना साक्ष्य अधिनियम की धारा 30 के अर्थों में सह अभियुक्त की संस्वीकृति ग्राह्य हो गई लेकिन यह धारा 3 में दी गई साक्ष्य की परिभाषा के अंतर्गत नही आता है |