दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत अपराधो का वर्गीकरण{Classification of Crime Under CRPC} निम्नवत है :-
1. संज्ञेय और असंज्ञेय अपराध
2. जमानतीय और अजमानतीय अपराध
3. शमनीय और अशमनीय अपराध
संज्ञेय और असंज्ञेय अपराध :-
संज्ञेय अपराध की परिभाषा:- crpc {धारा 2(c/ग)}
“संज्ञेय अपराध” से ऐसा अपराध अभिप्रेत है जिसके लिए और “संज्ञेय मामला” से ऐसा मामला अभिप्रेत है जिसमे पुलिस अभिकारी प्रथम अनुसूची के या तत्समय प्रवृत किसी अन्य विधि के अनुसार वारंट के बिना गिरफ्तार कर सकता है |
आसान शब्दों में कहे तो संज्ञेय अपराध ऐसे अपराध है जिनमे पुलिस अधिकारी अपराधी को बिना वारंट गिरफ्तार कर सकता है | ध्यान देने योग्य बात यह है की किसी पुलिस अधिकारी को यह कैसे पता चलेगा की कोई अपराध संज्ञेय है या नही | इस प्रश्न का उत्तर यह है की संज्ञेय अपराधो की सूची को दंड प्रक्रिया संहिता की प्रथम अनुसूची में अंतर्विष्ट किया गया है जिसमे देखकर पुलिस अधिकारी यह पता लगा सकता है की कौन सा अपराध संज्ञेय है और कौन सा नही |
यदि पुलिस अधिकारी द्वारा किसी विशिष्ट विधि के अधीन गिरफ्तारी की जा रही है तो उस विशिष्ट विधि में यह उपबंधित होगा की वह संज्ञेय अपराध है या नही |
असंज्ञेय अपराध:- {धारा 2(l/ठ)}
“असंज्ञेय अपराध” से ऐसा अपराध अभिप्रेत है जिसके लिए और “असंज्ञेय मामला” से ऐसा मामला अभिप्रेत है जिसमे पुलिस अधिकारी को वारंट के बिना गिरफ्तारी करने का प्राधिकार नही होता है |
आसान शब्दों में कहे तो असंज्ञेय अपराध ऐसे अपराध होते है जिसमे पुलिस अधिकारी को बिना वारंट गिरफ्तार करने का अधिकार नही होता है |
दंड प्रक्रिया संहिता की प्रथम अनुसूची में ही असंज्ञेय अपराधो को अंतर्विष्ट किया गया है |
संज्ञेय और असंज्ञेय अपराधो में अंतर :-
संज्ञेय अपराध धारा 2(c) | असंज्ञेय अपराध धारा 2(l) |
ये अपराध गंभीर प्रकृति के होते है | | ये अपराध सामान्य प्रकृति के होते है | |
ऐसे अपराधो के कारित किये जाने पर पुलिस अधिकारी अभियुक्त को बिना वारंट गिरफ्तार कर सकता है | | ऐसे अपराधों के कारित किया जाने पर पुलिस अधिकारी अभियुक्त को बिना वारंट गिरफ्तार नही कर सकता है | |
ऐसे अपराधो के कारित किये जाने पर पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना अन्वेषण प्रारम्भ कर सकता है| | ऐसे अपराधो के कारित किये जाने पर पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना अन्वेषण प्रारम्भ नही कर सकता है| |
ऐसे अपराधो के मामलो में कार्यवाही प्रारम्भ करने के लिए सदैव परिवाद प्रस्तुत करने की आवश्यकता नही है | | ऐसे अपराधो के मामलो में कार्यवाही का प्रारम्भ सदैव परिवाद से ही होता है | |
जमानतीय और अजमानतीय अपराध :-
“जमानतीय अपराध” से ऐसा अपराध अभिप्रेत है जो प्रथम अनुसूची में जमानतीय के रूप में दिखाया गया हो या तत्समय प्रवृत किसी अन्य विधि द्वारा जमानतीय बनाया गया है |
“अजमानतीय अपराध” से कोई अन्य अपराध अभिप्रेत है |
जमानतीय और अजमानतीय अपराध में अंतर :-
जमानतीय अपराध {धारा 2(a)} | अजमानतीय अपराध {धारा 2(a)} |
ये अपराध साधारण प्रकृति के होते है | | ये अपराध गंभीर प्रकृति के होते है | |
ऐसे अपराधो के मामलो में जमानत पर छोड़ा जाना अभियुक्त का अधिकार होता है | | ऐसे अपराधो में अभियुक्त की जमानत न्यायालय के विवेक पर निर्भर करती है | |
ऐसे अपराधो के मामलो में आयु, लिंग एवंम रोग के आधार पर अभियुक्त व्यक्तियों के मध्य भेद नही किया जा सकता है| | ऐसे अपराधो के मामलो में अभियुक्त के जमानत प्रार्थना पत्र पर विचार करते समय न्यायालय अभियुक्त की आयु, लिंग एवंम रोगों को ध्यान में रखता है | |
ऐसे अपराधो के मामलो में अग्रिम जमानत लेने की आवश्यकता नही होती है | | ऐसे अपराधो के मामलो में अग्रिम जमानत हेतु आवेदन किया जा सकता है | |
शमनीय और अशमनीय अपराध :-
शमनीय अपराध वे अपराध होते है जिनमे पक्षकार आपस में समझौता करके मामले को वापस ले सकते है तथा अशमनीय अपराध वे अपराध होते है जिनमे पक्षकार समझौता करके मामला वापस नही ले सकते है |
किन अपराधो का शमन किया जा सकता है :- {धारा 320 }
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 320 उन अपराधो का उल्लेख करती है जिनका विधिक रूप से शमन किया जा सकता है |
धारा 320(1) में उल्लिखित अपराधो का शमन न्यायालय की अनुमति के बिना भी किया जा सकता है | जैसे की :- जारकर्म एवंम द्वि-विवाह |
परन्तु धारा 320(2) में उल्लिखित अपराधो का शमन न्यायालय की अनुमति से ही किया जा सकता है | जैसे की :- घोर उपहति आदि |
शमनीय अपराधो के दुष्प्रेरण या प्रयत्नों का भी शमन उसी प्रकार किया जा सकता है जिस प्रकार उस अपराध का शमन किया जा सकता है | {धारा 320(3)}
अगर कोई व्यक्ति जड़ या पागल है तो उसकी तरफ से अपराध का शमन कौन कर सकता है :- {धारा 320 (4)(a)}
अगर कोई व्यक्ति जो की किसी अपराध का शमन करने में अक्षम है अर्थात 18 वर्ष से कम आयु का है या जड़ या पागल है तो कोई अन्य व्यक्ति जो उस अक्षम व्यक्ति की और से संविदा करने के लिए सक्षम हो न्यायालय की अनुमति से उस अपराध का शमन कर सकता है | चाहे ऐसा अपराध धारा 320(1) की परिधि में ही क्यों न आता हो | उस व्यक्ति को अपराध के शमन हेतु न्यायालय की अनुमति प्राप्त करना अनिवार्य है |
अगर कोई व्यक्ति मर गया है तो उसकी तरफ से अपराध का शमन कौन कर सकता है :- {धारा 320 (4)(b)}
अगर कोई व्यक्ति, जो की इस धारा के अधीन किसी अपराध का शमन कर सकता है, मर गया है तो उसके स्थान पर उसका विधिक प्रतिनिधि न्यायलय की सम्मति से उस अपराध का शमन कर सकता है | चाहे ऐसा अपराध धारा 320(1) की परिधि में ही क्यों न आता हो | ऐसे विधिक प्रतिनिधि को ऐसे अपराध के शमन हेतु न्यायलय की सम्मति प्राप्त करना अनिवार्य होगा |
जब अभियुक्त विचारण के दौरान किसी अन्य न्यायालय को सुपुर्द कर दिया जाता है या जब वह दोषसिद्ध कर दिया जाता है और ऐसी दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील की गई हो तो फिर अगर अपराध का शमन करना है तो उस न्यायलय की इजाजत के बिना उस अपराध का शमन नही किया जा सकता है जिसे वह सुपुर्द किया गया है या जिसके समक्ष अपील लंबित है | अनुमति अनिर्वार्य है चाहे मामला धारा 320(1) की परिधि में ही क्यों न आता हो | {धारा 320(5)}
धारा 401 के अधीन पुनरीक्षण की अपनी शक्तियों के प्रयोग में कार्य करते हुए उच्च न्यायलय या सेशन न्यायलय किसी व्यक्ति को किसी ऐसे अपराध का शमन करने की अनुमति दे सकता है जिसका शमन करने के लिए व्यक्ति इस धारा के अधीन सक्षम है | {धारा 320(6)}
अगर किसी व्यक्ति द्वारा एक ही अपराध दोहराया जाता है तो क्या वह दूसरी बार में अपराध का शमन कर सकता है :- {धारा 320(7)}
अगर किसी व्यक्ति द्वारा पूर्व में कोई ऐसा अपराध किया गया है जो की धारा 320 के अधीन शमनीय था किन्तु उस अपराध का शमन वह व्यक्ति नही करता है तथा पश्चात् में भी वह वही अपराध दोबारा दोहराता है तथा विधि के अनुसार वह अपराध उसे दोबारा करने पर वर्धित दंड दिया जाना है अर्थात पहले की अपेक्षा अधिक दंड दिया जाना है तो वह अब उस अपराध का शमन नही कर सकता है |
किसी भी अपराध का शमन इस धारा के उपबंधो के अनुसार ही किया जायेगा अन्यथा नही |{धारा 320(9)}
किसी अपराध के शमन का प्रभाव :-{धारा 320(8)}
अपराध के शमन के परिणामस्वरूप अभियुक्त दोषमुक्त कर दिया जाता है | ऐसे अपराध जिनके बारे में यह नही बताया गया है की वह शमनीय है या अशमनीय {चाहे किसी विशिष्ट या विशेष विधि का अपराध हो या भारतीय दंड संहिता में उपबंधित अपराध } तो उस अपराध को अशमनीय अपराध माना जायेगा |
अब हम लोगो ने अभी अपराधो के बारे में पढ़ लिया की कौन सा अपराध कब क्या कहलायेगा | अब एक सबसे महत्वपूर्ण बात जानना बाकि रह गया है की मान लीजिये की किसी विशेष विधि में यह नही बताया गया है की उसमे परिभाषित अपराध संज्ञेय है या असंज्ञेय, जमानतीय है या अजमानतीय तो कैसे पता चलेगा की वह अपराध कौन सा है | तो चलिए इसके बारे में जानते है |
जब अन्य विधि मौन हो तो अपराधो को किस प्रकार पहचाने की वह किस प्रकृति का अपराध है :-
भारतीय दंड संहिता से भिन्न अन्य विधियों के विरुद्ध अपराधो के सम्बन्ध में, यदि उन विधियों में यह उल्लिखित न हो, की वह संज्ञेय है या असंज्ञेय और जमानतीय है या अजमानतीय अपराध है तो निम्न सूची का सन्दर्भ लिया जा सकता है :-
अपराध | संज्ञेय या असंज्ञेय | जमानतीय या अजमानतीय | किस न्यायलय द्वारा विचारणीय है |
यदि म्रत्यु, आजीवन कारावास या 7 वर्ष से अधिक अवधि के कारावास से दंडनीय हो | संज्ञेय | अजमानतीय | सेशन न्यायलय |
यदि 3 वर्ष और उससे अधिक किन्तु 7 वर्ष से अनधिक अवधि का करावस हो | संज्ञेय | अजमानतीय | प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट |
यदि 3 वर्ष से कम अवधि के कारावास या केवल जुर्माने से दंडनीय हो | असंज्ञेय | जमानतीय | कोई भी मजिस्ट्रेट |
अगर उस विशिष्ट विधि में उपबंधित किया गया है की अपराध किस प्रकृति का होगा तो यह सारणी लागु नही होगी | अगर शमनीय अशमनीय अपराध का उपबंध नही किया गया है तो अपराध अशमनीय होगा |