आज हम जानेंगें दंड प्रक्रिया के अध्याय 6/Chapter 6 of CRPC के बारे में, जो की न्यायालय में व्यक्तियों की हाजिरी को विवश करने से सम्बंधित है | इस अध्याय में यह प्रावधानित है की कब न्यायालय समन जारी कर सकता है, कब न्यायालय किसी व्यक्ति के लिए वारंट जरी कर सकता है | जो की इस प्रकार है :- Crpc in Hindi
अध्याय-6 हाजिरी को विवश करने के लिए आदेशिकाएँ {धारा 61 से 90}/Chapter 6 of CRPC
1) अध्याय 6{धारा 61 से 90 Crpc} हाजिरी को विवश करने के लिए आदेशिकाओं से सम्बंधित है। यह अध्याय निम्न 4 भागों में विभाजित हैः-
क) समन{धारा 61-69}
ख) गिरफ्तारी का वारण्ट {धारा 70-81}
ग) उद्घोषणा एवंम् कुर्की {धारा 82-86}
घ) आदेशिकाओं से सम्बंधित अन्य नियम {धारा 87-90}
2) अध्याय 6 का उद्देश्य वांछित व्यक्ति को न्यायिक प्रक्रिया के अधीन करना है।
समन :-{Crpc Sec 61 to Sec 69} Crpc in hindi
सर्वप्रथम हम यह देखेगें कि समन का प्रारूप कैसा होता और फिर यह जानेगें कि जब न्यायालय द्वारा समन जारी कर दिया जाता है तो वह किसके द्वारा और और किसके ऊपर तामिल किया जाता है।
1) समन का प्रारूप :- {धारा 61}
न्यायालय द्वारा जारी किए गए प्रत्येक समन का प्रारूप निम्नवत् होगाः-
i) लिखित होगा,
ii) दो प्रतियों में होगा,
iii) समन पर न्यायालय के पीठासीन अधिकारी या उच्च न्यायालय द्वारा निर्मित नियमों द्वारा निर्देशित अधिकारी के हस्ताक्षर होगें।
iv) इस पर न्यायालय की मुद्रा भी अंकित होगी।
2) समन की तामिल किसके द्वारा और कैसे की जाएगी :-{धारा 62}
i) समन की तामिल पुलिस अधिकारी द्वारा या न्यायालय के अधिकारी या लोक सेवक द्वारा की जाएगी।
ii) यदि सम्भव हो तो समन किए गए व्यक्ति पर समन की तामिल उस समन की दो प्रतियों में से एक का परिदान या निविदान करके वैयक्ति व्यक्तिगत रूप से की जाएगी।
iii) समन की तामिल करने वाले अधिकारी द्वारा समन किए गए व्यक्ति से दूसरी प्रति पर पृष्ठांकन ले लिया जाएगा।
3) यदि समन की तामिल निगमित निकाय या सोसाइटी पर की जानी हो तब प्रक्रिया :- {धारा 63}
निगमित निकायों तथा सोसाइटीयों पर समन की तामील उनके सचिव या स्थानीय प्रबंधक या अन्य मुख्य अधिकारियों के माध्यम से की जाएगी। पंजीकृत डाक के माध्यम से भी ऐसे समन की तामील की जा सकती है।
4) समन किए गए व्यक्ति के न मिलने पर प्रक्रिया :-{धारा 64}
जिस व्यक्ति पर समन की तामील की जानी है यदि वह नही मिलता है तो समन की तामील परिवाद के किसी वयस्क पुरूष सदस्य {जो सामान्यतः साथ निवास करता है} को समन की एक प्रति देकर समन की तामील की जा सकती है। सेवक परिवार का सदस्य नही है।
5) जब धारा 62,63 या 64 के अनुसार समन की ब्रामील न हो पाए तब प्रकिया :- {धारा 65}
यदि धारा 62, धारा 63 या धारा 64 के अनुसार समन की तामील न हो पाए तो एक प्रति घर के सहज दृश्य भाग पर चस्पा कर दी जाएगी।
6) यदि किसी शासकीय सेवक पर समन की तामील की जानी हो प्रक्रिया :-{धारा 66}
शासकीय सेवक पर समन की तामील कार्यालय प्रमुख के माध्यम से की जाएगी तथा कार्यालय प्रमुख धारा 62 अर्थात समन की प्रति उस व्यक्ति को दे देना और दूसरी प्रति पर उसके हस्ताक्षर लेना के अनुसार समन की तामील कराएगा और उस दूसरी प्रति पर उस व्यक्ति के हस्ताक्षर के साथ अपने हस्ताक्षर करके न्यायालय को लौटा देगा। इस प्रकार किए गए हस्ताक्षर इस बात का साक्ष्य होगें कि समन की तामील हो गई है।
7) जिस न्यायालय द्वारा समन जारी किया गया है उस न्यायालय की स्थानीय अधिकारिताओं के बाहर समन की तामील की जाने की प्रक्रिया :-{धारा 67}
जब न्यायालय यह चाहता है कि उसके द्वारा जारी किए समन की तामील उसकी स्थानीय अधिकारिता के बाहर किसी स्थान में की जाए तब वह {न्यायालय} मामूली तौर पर ऐसा समन दो प्रतियों में उस मजिस्टेट को भेजेगा जिसकी स्थानीय अधिकारिता के अंदर उसकी तामील की जानी हैैैै या उस मजिस्टेªट को भेजेगा जिसकी स्थानीय अधिकारिता के भीतर ऐसा व्यक्ति निवास करता है।
8) जब समन की तामील न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता से बाहर की गई है और यदि सुनवाई वाले दिन समन की तामील करने वाला अधिकारी अनुपस्थित है तौ इस बात का क्या सबूत होगा कि समन की तामील हो चुकी है :-{धारा 68}
जब समन की तामील न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता से बाहर की गई है और यदि सुनवाई वाले दिन समन की तामील करने वाला अधिकारी अनुपस्थित हो तो उस समन की दूूसरी प्रति के साथ एक शपथ पत्र संलग्न किया जाएगा कि समन की तामील हो गई है। दूसरे शब्दों में कहे तो शपथ पत्र के माध्यम से समन की तामील का कथन किया जाएगा।
Crpc Sec 82 to Sec 86 | धारा 82 से धारा 86 दंड प्रक्रिया संहिता
9) जब किसी साक्षी पर समन की तामील डाक द्वारा की जानी हो तब प्रक्रिया :-{धारा 69}
न्यायालय किसी साक्षी पर समन की तामील व्यक्तिगत रूप सेे करने का निर्देश दे सकता है या उसके .साथ-.साथ किसी पंजीकृत डाक से भी समन की तामील का आदेेेेेेश देे सकता हैैैैैैैै।
डाक द्वारा समन की तामील तब पूरी मानी जाएगी जब साक्षी द्वारा हस्ताक्षर करके अभिस्वीकृति दे दी जाएगी या डाक कर्मचारी द्वारा यह पृष्ठाकंन कर दिया जाएगा कि साक्षी ने समन लेने से इकंार कर दिया है, तो न्यायालय यह घोषित कर सकता है कि समन की सम्यक रूप से तामील कर दी गई है।
गिरफ्तारी का वारण्ट/Warrant of Arrest under Crpc :- {Sec 70 to 81 Crpc} Crpc in Hindi
सर्वप्रथम हम गिरफ्तारी के वारण्ट/Warrant of Arrest under Crpc में यह देखेगें कि गिरफ्तारी का/Warrant of Arrest under Crpc वारण्ट किसके द्वारा जारी किया जाता हैं, इसका प्ररूप कैसा होता है और यह कब तक प्रर्वतन में रहता है।
1) गिरतारी का वारण्ट/Warrant of Arrest under Crpc किसकेे द्वारा जारी किया जाता है, इसका प्ररूप कैसा होता है और इसकी अवधि होती है:- {धारा 70}
गिरफ्तारी का वारण्ट/Warrant of Arrest under Crpc न्यायालय द्वारा जारी किया जाएग तथा न्यायालय के पीठासीन अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा। इस पर न्यायालय की मुद्रा अंकित होगी। गिरफ्तारी का वारण्ट लिखित होगा। यह निष्पादित हो जाने तक या निरस्त किए जाने तक प्र्रवर्तन में बना रहेगा।
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2) न्यायालय द्वारा वारण्ट, पर यह प्रष्ठांकन की प्रतिभूति लेकर गिरतार व्यक्ति को छोड दिया जाए :-{धारा 71}
वारण्ट दो प्रकार के होते है जमानतीय वारण्ट और अजमानतीय वारण्ट। वारण्ट जमानतीय होगा या अजमानतीय यह न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है। धारा 71 जमानतीय वारण्ट का प्रावधान करती है।
वारण्ट जारी करने वाला न्यायालय वारण्ट पर यह पृष्ठांकन कर सकता है कि यदि गिरफ्तार व्यक्ति अपनी उपस्थिति का बंधपत्र निष्पादित करता है तो प्रत्याभूति लेकर उसे अभिरक्षा से मुक्त कर दिया जाए। ऐसे पृष्ठांकन में निम्न बाते होगीं-
a) प्रतिभूओं की संख्या
b) बंधपत्र की रकम
c) वह समय जब न्यायालय के समक्ष उसे उपस्थित होना है।
3) न्यायालय द्वारा जारी वारण्ट किसको निर्देशित होगा :-{धारा 72}
गिरफ्तारी का वारण्ट सामान्यतः पुलिस अधिकारी को निर्देशित होता है। किन्तु तत्काल निष्पादन आवश्यक होने पर तथा तत्काल पुलिस अधिकारी उपलब्ध न होने पर वारण्ट किसी अन्य व्यक्ति को भी निर्देशित किया जा सकता है।
4) न्यायालय द्वारा जारी वारण्ट किसी भी व्यक्ति {अर्थात पुलिस अधिकारी से भिन्न व्यक्ति} को निदिष्ट हो सकेगें :-{धारा 73}
धारा 73 के अन्तर्गत मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी का न्यायिक मजिस्ट्रेट अपनी स्थानीय अधिकारिता के भीतर निम्न की गिरफ्तारी हेतु किसी भी व्यक्ति को वारण्ट निर्देशित कर सकता है-
- उद्घोषित अपराधी;
- निकल भागा दोषसिद्ध;
- अजमानतीय अपराध का ऐसा व्यक्ति जो गिरफ्तारी से बच रहा है।
ऐसा व्यक्ति जिसको इस प्रकार वारण्ट निर्देशित किया गया है, वारण्ट को लिखित रूप में अभीस्वीकार करेगा और यदि वह व्यक्ति, जिसकी गिरफ्तारी के लिए वारण्ट जारी किया गया है, उसके भार साधन के अधीन किसी भूमि में है या प्रवेश करता है तो वह वारण्ट का निष्पादन करके गिरफ्तार व्यक्ति को वारण्ट सहित निकटतम पुलिस थाने में सौंप देगा।
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5) वारण्ट का निष्पादन किसी अन्य पुलिस अधिकारी द्वारा किया जाना :- {धारा 74}
न्यायालय द्वारा किसी वारण्ट को किसी पुलिस अधिकारी को निर्देशित किया जाता है और वह पुलिस अधिकारी उस वारण्ट पर किसी अन्य पुलिस अधिकारी का नाम पृष्ठांकित कर देता है तो उस अन्य पुलिस अधिकारी द्वारा भी उस वारण्ट का निष्पादन किया जा सकता है।
6) पुलिस अधिकारी द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को वारण्ट के सार की सूचना देना :-{धारा 75 Crpc}
धारा 75 वारण्ट के निष्पादक को {चाहे पुलिस अधिकारी हो या कोई अन्य व्यक्ति} वारण्ट का सारांश बताने के कर्तव्य के अधीन करती है। सारांश उस व्यक्ति को बताया जाएगा जिसकी गिरफ्तारी अपेक्षित है।
७) गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष अविलम्ब पेश करना :- { धारा 76 सपठित धारा 57-D, अनुच्छेद 22(2)}
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 76 और धारा 57 एक साथ पठनीय है। इन दोनों ही धाराओं में एक ही बात कही गई है कि गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अनावश्यक विलम्ब के बिना न्यायालय के समक्ष पेश किया जाएगा और ऐसा विलम्ब किसी भी दशा में गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोड़कर 24 घण्टे से अधिक नही होगा।
किंतु धारा 56 और 76 में एक महत्वपूर्ण अंतर है जो कि यह है कि धारा 56 ऐसे व्यक्ति की बात करती है जिसे वारण्ट के बिना गिरफ्तार किया गया है और धारा 76 ऐसे व्यक्ति की बात करती है जिसे वारण्ट के अधीन गिरफ्तार किया गया है।
दूसरे शब्दों में कहे तो व्यक्ति चाहे वारण्ट के बिना गिरफ्तार किया गया हो या वारण्ट के अधीन। पुलिस अधिकारी का कर्तव्य होगा कि गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घण्टे के भीतर {यात्रा के समय को छोड़कर} मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करे।
8) न्यायालय द्वारा जारी वारण्ट का निष्पादन कहाॅ तक कराया जा सकता है :-{धारा 77 सपठित धारा 48}
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 77, धारा 48 के साथ पठनीय है। धारा 77 एवं धारा 48 में महत्वपूर्ण अंतर यह है कि धारा 77 वारण्ट के अधीन गिरफ्तारी की बात करती है और धारा 48 बिना वारण्ट के गिरफ्तारी की बात करती है।
किंतु दोनों धाराओं में यह समानता है कि चाहे गिरफ्तारी वारण्ट के अधीन की जानी हो या बिना वारण्ट के, पुलिस अधिकारी द्वारा भारत में के किसी भी स्थान से गिरफ्तारी की जा सकती है।
अर्थात् दूसरे शब्दों में कहें तो गिरफ्तारी के वारण्ट का निष्पादन भारत में के किसी भी स्थान में किया जा सकता है।
Note :- धारा 78, 79, 80 तथा धारा 81 स्थानीय अधिकारिता के बाहर वारण्ट के निष्पादन की प्रक्रिया से सम्बन्धित है।
9) न्यायालय द्वारा जारी गिरफ्तारी के वारण्ट का निष्पादन उस न्यायालय की स्थानीय अधिकारिताओं से बाहर किया जाना हो तब प्रक्रिया :-{धारा 78}
धारा 78 के अनुसार जब वारण्ट का निष्पादन उसे जारी करने वाले न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता से बाहर किया जाना है, तब वह न्यायालय ऐसा वारण्ट;
- ऐसे किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट; या
- जिला पुलिस अधीक्षक; या
- पुलिस आयुक्त
को भेजेगा जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर वारण्ट को निष्पादन किया जाना है और ऐसा मजिस्ट्रेट या अधीक्षक या आयुक्त अपना नाम पृष्ठांकित करने के पश्चात् उस वारण्ट का निष्पादन कराएगा।
वारण्ट जारी करने वाला न्यायालय गिरफ्तारी के वारण्ट के सथ ऐसे दस्तावेज भी भेजेगा जो वारण्ट का निष्पादन करने वाले अधिकारी को यह अभिनिश्चित करने में समर्थ बनाने के लिए पर्याप्त है कि गिरफ्तार व्यक्ति की जमानत मंजूर की जाए या नहीं।
10) जब न्यायालय द्वारा किसी गिरफ्तारी के वारण्ट को किसी पुलिस अधिकारी को निदिष्ट किया जाता है और यदि पुलिस अधिकारी को उस वारण्ट का निष्पादन उसे जारी करने वाले न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता से बाहर किया जाना हो, तब प्रक्रिया :- {धारा 79}
धारा 79 यह उपबंधित करती है कि जब न्यायालय द्वारा गिरफ्तारी के वारण्ट को किसी पुलिस अधिकारी को निर्दिष्ट किया जाता है और यदि उस पुलिस अधिकारी को उस वारण्ट का निष्पादन उसे जारी करने वाले न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता के बाहर किया जाना है तब वह पुलिस अधिकारी उस वारण्ट को पृष्ठांकन के लिए ऐसे कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी से अनिम्न पंक्ति के पुलिस अधिकारी के पास ले जाएगा, जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर उस वारण्ट का निष्पादन किया जाना है।
ऐसे मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी का उस वारण्ट पर अपने नाम का पृष्ठांकन करने से उस पुलिस अधिकारी को, जिसको वारण्ट निर्दिष्ट था, उस वारण्ट के निष्पादन का पर्याप्त प्राधिकार प्राप्त होगा। यदि उस पुलिस अधिकारी द्वारा यह अपेक्षा की जाती है कि स्थानीय पुलिस उस वारण्ट के निष्पादन में उसकी सहायता करे तो स्थानीय पुलिस द्वारा ऐसे पुलिस अधिकारी की वारण्ट के निष्पादन में सहायता की जाएगी।
परंतु यदि यह विश्वास करने का पर्याप्त कारण हो कि पृष्ठांकन प्राप्त करने में होने वाले विलम्ब के कारण वारण्ट का निष्पादन नहीं हो सकेगा तो वह पुलिस अधिकारी ऐसे पृष्ठांकन के बिना भी उस वारण्ट का निष्पादन करा सकता है।
11) जब गिरफ्तारी के वारण्ट का निष्पादन उस जिले से बाहर किया जाता है जिसमें उसे जारी किया गया था तब गिरफ्तारी की प्रक्रिया :-{धारा 80}
धारा 80 के अनुसार जब गिरफ्तारी के वारण्ट का निष्पादन उस जिले से बाहर किया जाता है जिसमें वह जारी किया गया था तब गिरफ्तार व्यक्ति को उस जिले के {जिसमें गिरफ्तारी हुई है} कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस आयुक्त या पुलिस अधीक्षक के समक्ष पेश किया जाएगा।
किंतु यदि निम्नलिखित परिस्थितियाॅ विद्यमान है तो गिरफ्तार व्यक्ति को उस जिले के {जिसमें गिरफ्तारी हुई है} कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस आयुक्त या पुलिस अधीक्षक के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जाएगा। परिस्थितियाॅ निम्नवत् हैः-
- यदि वारण्ट जारी करने वाला न्यायालय गिरफ्तारी के स्थान से 30 किमी0 के भीतर है तो गिरफ्तार व्यक्ति को वारण्ट जारी करने वाले न्यायालय के समक्ष ही प्रस्तुत किया जाएगा; या
- यदि वारण्ट जारी करने वाला न्यायालय उस जिले के {जिसमें गिरफ्तारी हुई है} कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस आयुक्त या पुलिस अधीक्षक से अधिक निकट है तो गिरफ्तार व्यक्ति को वारण्ट जारी करने वाले न्यायालय के समक्ष ही पेश किया जाएगा; या
- यदि पुलिस अधिकारी द्वारा गिरफ्तार व्यक्ति से धारा 71 के अधीन पर्याप्त प्रतिभूति ले ली है कि गिरफ्तार व्यक्ति विनिर्दिष्ट समय व तारीख पर वारण्ट जारी करने वाले न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत हो जाएगा तो उस व्यक्ति को उस जिले के {जिसमें गिरफ्तारी हुई है} कार्यपाल मजिस्ट्रेट या पुलिस आयुक्त या पुलिस अधीक्षक के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जाएगा।
12) जब वारण्ट को उस जिले के बाहर निष्पादित किया जाता है जिसमें वह जारी किया गया था और वारण्ट के निष्पादन में किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तो यदि गिरफ्तार व्यक्ति को वारण्ट जारी करने वाले न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है तब गिरफ्तार व्यक्ति को उस जिले के {जिसमें गिरफ्तारी हुई है} कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस आयुक्त या पुलिस अधीक्षक के समक्ष पेश किया जाएगा। तब ऐसे मजिस्ट्रेट या अधीक्षक या आयुक्त द्वारा की जाने वाली प्रक्रिया :-{धारा 81}
धारा 81 के अनुसार ऐसा कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को वारण्ट जारी करने वाले न्यायालय के समक्ष अभिरक्षा में भेजने का निर्देश देगा।
परंतु यदि अपराध जमानतीय है और गिरफ्तार व्यक्ति जमानत देने के लिए तैयार व रजामंद है या धारा 71 के अधीन वारण्ट जारी करने वाले न्यायालय द्वारा अपेक्षित प्रतिभूति देने के लिए, गिरफ्तार व्यक्ति तैयार व रजामंद है तो, वह मजिस्ट्रेट या पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त ऐसी जमानत या प्रतिभूति लेगा और बंधपत्र को वारण्ट जारी करने वाले न्यायालय के समक्ष भेज देगा।
परंतु यदि अपराध अजमानतीय है तो ऐसा मजिस्ट्रेट या पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त गिरफ्तार व्यक्ति को उस जिले के {जिसमें गिरफ्तारी हुई है} मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायाधीश के समक्ष भेजेगा और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायाधीश {धारा 437 द0प्र0सं0 के उपबंधों के अधीन रहते हुए} के लिए धारा 78(2) में निर्दिष्ट जानकारी और दस्तावेजों पर विचार करने के पश्चात् ऐसे व्यक्ति को जमानत पर छोड़ना विधिपूर्ण होगा।
Note :- धारा 437 द0प्र0सं0 यह उपबंध करती है कि अजमानतीय अपराध की दशा में कब जमानत ली जा सकेगी और कब नहीं।
उद्घोषणा और कुर्की :- Crpc Sec 82 to Sec 86 Crpc in Hindi
Crpc Sec 82 to Sec 86 उद्घोषणा और कुर्की का उपबंध करती है |इन धाराओं में यह बताया गया है की कब उद्घोषणा और कुर्की की जा सकती है | कब कोई व्यक्ति कुर्की के विरुद्ध आपति दाखिल कर सकता है |
उद्घोषणा :- section 82 crpc in hindi
उद्घोषणा न्यायालय द्वारा तब जरी की जाती है जब कोई व्यक्ति न्यायालय द्वारा वारंट जारी किये जाने के बाद भी न्यायालय में हाज़िर नही होता है | उद्घोषणा का उपबंध दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 82 में किया गया है |
द्घोषणा कौन जारी कर सकता है और उद्घोषणा का प्ररूप :-धारा 82(1)
न्यायालय उद्घोषणा जारी कर सकता है। यदि उसको यह विश्वास करने का कारण है कि कोई व्यक्ति, जिसके विरूद्ध वारण्ट जारी किया गया था, फरार हो गया है या अपने को छिपा रहा है, जिससे उस वारण्ट का निष्पादन न हो सके तो, न्यायालय उद्घोषणा जारी कर सकता है।
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ऐसी उद्घोषणा लिखित होगी तथा उसका प्रकाशन किया जाएगा । ऐसी उद्घोषणा कथित व्यक्ति से विनिर्दिष्ट स्थान में और विनिर्दिष्ट समय पर हाजिर होने की अपेक्षा करेगी । हाजिर होने की विनिर्दिष्ट तिथि उद्घोषणा के प्रकाशन की तिथि से कम-से-कम 30 दिन पश्चात् की कोई भी तिथि हो सकती है।
उद्घोषणा का प्रकाशन किस रीति से किया जाएगा :- धारा 82(2)
धारा 82(2) उद्घोषणा के प्रकाशन का प्रावधान करती है। प्रकाशन निम्नलिखित माध्यमों से हो सकता है-
- सार्वजनिक रूप से पढ़कर;
- गृह या वास स्थान के किसी सहज दृश्य भाग पर उसे चस्पा करके;
- न्याय सदन के किसी सहज दृश्य भाग पर उसे चस्पा करके;
- किसी दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशन करके।
उद्घोषण निश्चायक सबूत होती है :- {धारा 82(3)}
धारा 82(3) के अनुसार जब न्यायालय यह लिखित कथन देता है कि उद्घोषणा सम्यक् रूप से प्रकाशित कर दी गई है तो उद्घोषणा के प्रकाशन का वह निश्चायक साक्ष्य होगा।
न्यायालय कब किसी अभियुक्त को उद्घोषित अपराधी घोषित कर सकता है :- {धारा 82(4)}
धारा 82(4) के अनुसार यदि धारा 82(1) के अंतर्गत उद्घोषणा जारी कर दी गई है तथा उद्घोषित व्यक्ति उद्घोषणा में विनिर्दिष्ट तिथि को न्यायालय में हाजिर होने से असफल रहता है तो न्यायालय ऐसी जॉच करने के पश्चात्, जैसी वह ठीक समझता है, उस व्यक्ति को उद्घोषित अपराधी घोषित कर सकता है। यदि वह व्यक्ति निम्नलिखित अपराधों में से किसी अपराध का अभियुक्त हैः-
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- धारा 302 एवं 304 भारतीय दण्ड संहिता;
- धारा 364 एवं धारा 367 भारतीय दण्ड संहिता;
- धारा 382 एवं धारा 392 से 400 भारतीय दण्ड संहिता;
- धारा 402, 436, 449, 459, 460 भारतीय दण्ड संहिता।
कुर्की :- धारा 83
धारा 83(1) के अनुसार सम्पत्ति की कुर्की उद्घोषणा जारी होने के पश्चात् तथा उद्घोषणा के साथ-साथ की जा सकती है। कुर्की चल एवं अचल दोनों ही सम्पत्तियों की हो सकती है। कुर्की का आदेश दो परिस्थितियों में दिया जा सकता है। जो कि निम्नवत् हैः-
उद्घोषणा जारी करने के पश्चात कुर्की का आदेश :-
उद्घोषणा जारी करने वाला न्यायालय उद्घोषित व्यक्ति की जंगम या स्थावर या दोनों प्रकार की सम्पत्ति की कुर्की का आदेश उद्घोषणा जारी करने के पश्चात् किसी भी समय दे सकता है। कुर्की का आदेश इसलिए दिया जाता है क्योंकि उद्घोषित व्यक्ति विनिर्दिष्ट समय पर न्यायालय के समक्ष हाजिर नहीं हुआ।
उद्घोषणा के साथ-साथ कुर्की का आदेश :-
निम्नलिखित परिस्थितियों में न्यायालय उद्घोषणा तथा कुर्की का आदेश साथ-साथ दे सकता हैः-
- जबकि वह व्यक्ति अपनी समस्त सम्पत्ति का या उसके किसी भाग का व्ययन करने वाला है; या
- जबकि वह व्यक्ति अपनी सम्पत्ति या उसके किसी भाग को उस न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता से हटाने वाला है।
न्यायालय द्वारा किस सम्पत्ति की कुर्की का आदेश दिया जा सकता है? क्या न्यायालय द्वारा कुर्की आदेश अपनी स्थानीय अधिकारिता के बाहर किसी भी स्थान के लिए दिया जा सकता है :- {धारा 83(2)}
- न्यायालय द्वारा चल एवं अचल दोनों प्रकार की सम्पत्तियों के लिए कुर्की आदेश दिया जा सकता है।
- न्यायालय द्वारा कुर्की का आदेश अपनी स्थानीय अधिकारिताओं की सीमाओं के भीतर तो दिया ही जा सकता है तथा उसके साथ-साथ न्यायालय अपनी स्थानीय अधिकारिता की सीमा के बाहर भी कुर्की का आदेश दे सकता है किंतु ऐसे आदेश को उस जिले के (जो कि न्यायालय की स्थानीय आधिकारिता से बाहर है और न्यायालय द्वारा उस जिले में क ुर्की का आदेश दिया गया है) जिला मजिस्टेªट द्वारा पृष्ठांकित होना आवश्यक है।
किसी सम्पत्ति को कुर्क किए जाने की रीति :- {धारा 83(3) एवं 83(4)}
धारा 83(3) तथा धारा 83(4) के अनुसार कुर्की निम्नलिखित रीतियों से की जाएगीः-
- कब्जा लेकर या अधिग्रहण द्वारा; या
- प्रापक की नियुक्ति; या
- परिदान या भुगतान को प्रतिषिद्ध करने वाले लिखित आदेश द्वारा; या
- उपरोक्त में से सभी या किन्हीं दो रीतियों के द्वारा
किंतु यदि जिस सम्पत्ति को कुर्क करने का आदेश दिया गया है वह ऐसी सम्पत्ति है जो राज्य सरकार को भू-राजस्व देती है तो कुर्की उस जिले के, जिसमें कुर्की की जानी है, कलेक्टर के माध्यम से की जाएगी।
यदि कुर्क की गई सम्पत्ति जीवधन या विनश्वर प्रकृति की है तब प्रक्रिया :- {धारा 83(5)}
धारा 83(5) जीवधन तथा विनश्वर प्रकृति की सम्पत्ति की कुर्की से सम्बन्धित है। ऐसी सम्पत्तियों को कुर्की के पश्चात् विक्रय किया जाएगा तथा विक्रय के आगमों को न्यायालय के आदेश के अधीन सुरक्षित रखा जाएगा।
यदि कुर्की प्रापक की नियुक्ति द्वारा की गई है तब प्रापक के क्या अधिकार होगें :- {धारा 83(6)}
यदि कुर्की प्रापक की नियुक्ति द्वारा की गई है तो ऐसे प्रापक को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के उपबंध लागू होंगे।
कुर्की के बारे में दावे और आपत्तियॉ {धारा 84}
धारा 84 दंड प्रक्रिया संहिता/crpc यह उपबंधित करती है की यदि न्यायालय डरावा किसी व्यक्ति की सम्पति की कुर्की कर ली गई है और वह व्यक्ति उद्घोषित व्यक्ति से भिन्न व्यक्ति है जिस व्यक्ति की सम्पति की कुर्की की गई है तो वह न्यायालय के समक्ष आवेदन कर सकता है |
कुर्क की गई सम्पत्ति पर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दावा कितने समय के भीतर किया जा सकता है :-{धारा 84(1)}
धारा 83 के अधीन कुर्क की गई किसी सम्पत्ति के बारे में उस कुर्की की तिथि से छः मास के भीतर कोई भी व्यक्ति (उद्घोषित व्यक्ति से भिन्न व्यक्ति) इस आधार पर दावा या आपत्ति कर सकता है कि उस सम्पत्ति में उसका कोई हित है जो कि कुर्क नहीं किया जा सकता है।
कुर्क की गई सम्पत्ति के बारे में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा कोई दावा या आपत्ति कहॉ की जाएगी और उसकी जॉच कौन करेगा :-{धारा 84(2) एवं 84(3)}
कुर्क की गई सम्पत्ति के बारे में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा कोई दावा या आपत्ति उस न्यायालय में किया जाएगा जिसके द्वारा ऐसी कुर्की का आदेश दिया गया है तथा ऐसे दावे या आपत्ति की जॉच उसी न्यायालय द्वारा की जाएगी जिसमें ऐसा दावा किया गया है।
यदि कुर्क की गई सम्पत्ति जिले के बाहर स्थित है तो ऐसा दावा उस जिले के (जिसमे सम्पत्ति स्थित है) मुख्य न्यायिक मजिस्टेªट के समक्ष किया जाएगा। ऐसा मुख्य न्यायिक मजिस्टेªट उस दावे या आपत्ति की जॉच को अपने अधीनस्थ किसी मजिस्टेªट को दे सकता है।
यदि कुर्क की सम्पत्ति के बारे में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा कोई दावा या आपत्ति न्यायालय द्वारा नामंजूर कर दी जाती है तब प्रक्रिया :- {धारा 84(4)}
यदि कुर्क की गई सम्पत्ति के बारे में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किया गया कोई दावा या आपत्ति न्यायालय द्वारा नामंजूर कर दी जाती है तो पीड़ित व्यक्ति अपने अधिकार को सिद्ध करने के लिए 1 वर्ष के भीतर वाद संस्थित कर सकता है।
न्यायालय द्वारा कब कुर्क गई सम्पत्ति को र्निमुक्त कर दिया जाता है, कब उसका विक्रय कर दिया और कब उस सम्पत्ति को वापस कर दिया जाता है :- {धारा 85}
न्यायालय द्वारा कुर्क की गई सम्पत्ति को निर्मुक्त, विक्रय और वापस निम्नलिखित परिस्थितियों में किया जाता हैः-
- जब उद्घोषित व्यक्ति न्यायालय के समक्ष उपस्थित हो जाता हैः-{धारा 85(1)}
धारा 85(1) वहॉ अपेक्षित होती है जहॉ उद्घोषित व्यक्ति न्यायालय के समक्ष हाजिर हो जाता है। यदि उद्घोषित व्यक्ति उद्घोषणा में विनिर्दिष्ट समय के भीतर हाजिर हो जाता है तो न्यायालय द्वारा सम्पत्ति को कुर्की से निर्मुक्त करने का आदेश दिया जाएगा। - यदि उद्घोषित व्यक्ति न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं होता हैः-{धारा 85(2)}
यदि उद्घोषित व्यक्ति उद्घोषणा में विनिर्दिष्ट समय के भीतर न्यायालय में हाजिर नहीं होता है तो कुर्क की गई सम्पत्ति राज्य सरकार के व्ययनाधीन रहेगी। राज्य सरकार उस सम्पत्ति को 6 मास की अवधि तक या धारा 84 के अंतर्गत किए गए दावों या आपत्तियों का निपटारा हो जाने तक सुरक्षित रखेगी।
परंतु यदि ऐसी सम्पत्ति शीघ्रतया या प्रकृत्या क्षयशील है तो न्यायालय उसके विक्रय का आदेश दे सकता है। - यदि उद्घोषित व्यक्ति उद्घोषणा में निर्दिष्ट समय के भीतर हाजिर होने में असफल रहता है किंतु कुर्की की तिथि से 2 वर्ष के भीतर हाजिर हो जाता है तब प्रक्रियात्रझ {धारा 85(3)}
यदि उद्घोषित व्यक्ति उद्घोषणा में निर्दिष्ट समय के भीतर न्यायालय में हाजिर होने में असफल रहता है परंतु कुर्की की तिथि से 2 वर्ष के भीतर हाजिर हो जाता है या गिरफ्तार कर लिया जाता है तब न्यायालय निम्नलिखित के प्रति जॉच करता हैः-
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- क्या वह व्यक्ति वारण्ट के निष्पादन से बचने के प्रयोजन से फरार हो गया था या अपने को छिपा रहा था;
- क्या उस व्यक्ति को उद्घोषणा की सूचना मिल गई थी;
यदि ऐसी जॉच या परिणाम उस व्यक्ति के पक्ष में जाता है तो न्यायालय कुर्क सम्पत्ति को निर्मुक्त करने का आदेश देगा या यदि उस सम्पत्ति का विक्रय कर दिया गया है तो उसके शुद्ध आगमों को उस व्यक्ति को देने का आदेश देगा।
यदि उद्घोषित व्यक्ति कुर्की की तिथि से 2 वर्ष के भीतर न्यायालय के समक्ष हाजिर हो जाता है और न्यायालय उस व्यक्ति को कुर्क सम्पत्ति का परिदान या उसके विक्रय के आगर देने से इंकार करता है तब प्रक्रिया :- {धारा 86}
यदि उद्घोषित व्यक्ति कुर्की की तिथि से 2 वर्ष के भीतर न्यायालय के समक्ष हाजिर हो जाता है और उचित कारण दर्शित करने के बाद भी न्यायालय द्वारा सम्पत्ति या उसके विक्रय के आगमों का परिदान करने से न्यायालय द्वारा इंकार कर दिया जाता है तब ऐसा व्यक्ति सक्षम न्यायालय के समक्ष अपील कर सकता है।
आदेशिकाओं से सम्बन्धित अन्य नियम :- {धारा 87 से 90}
इस भाग में हम आदेशियों से सम्बंधित अन्य बातों के बारे में जानेंगें जैसे की न्यायालय कब समन के स्थान पर वारंट जरी कर सकता है आदि |
कब न्यायालय समन के स्थान पर या उसके अतिरिक्त वारण्ट जारी कर सकता है :- {धारा 87 से 90}
निम्नलिखित परिस्थितियों में न्यायालय कारणों को अभिलिखित करने के पश्चात् समन के स्थान पर उसके अतिरिक्त वारण्ट जारी कर सकता हैः-
- यदि न्यायालय को यह विश्वास करने का कारण है कि वांछित व्यक्ति फरार हो गया है या समन का पालन नहीं करेगा (चाहे समन जारी किए जाने के पूर्व या पश्चात् किंतु हाजिरी के लिए नियत समय से पूर्व); या
- यदि ऐसा व्यक्ति समन की सम्यक रूप से तामील हो जाने के बावजूद बिना किसी उचित प्रतिहेतु के हाजिर होने में विफल रहता है।
वांछित व्यक्ति से हाजिरी का बंधपत्र लेने की शक्ति :- {धारा 88}
यदि वांछित व्यक्ति न्यायालय में उपस्थित है तो न्यायालय समन या वारण्ट जारी करने के स्थान पर उससे बंधपत्र निष्पादित करने की अपेक्षा कर सकता है।
जब किसी व्यक्ति द्वारा हाजिरी के लिए निष्पादित किए गए वंधपत्र का भंग कर दिया जाता है तब प्रक्रिया :-{धारा 89}
जब कोई व्यक्ति जो इस संहिता के अधीन लिए गए किसी बंधपत्र द्वारा न्यायालय के समक्ष हाजिर होने के लिए आबद्ध है, किंतु न्यायालय के समक्ष हाजिर नहीं होता है तब उस न्यायालय का पीठासीन अधिकारी यह निर्देश देते हुए वारण्ट जारी कर सकता है कि वह व्यक्ति गिरफ्तार किया जाए और उसके समक्ष पेश किया जाए।
इस अध्याय के उपबंधों का साधारणतया समनों और वारण्टों को लागू होना :- {धारा 90}
समन और वारण्ट तथा उन्हें जारी करने, उनकी तामील और उनके निष्पादन सम्बन्धी जो उपबंध इस अध्याय में है वे इस संहिता के अधीन जारी किए गए प्रत्येक समन और गिरफ्तारी के प्रत्येक वारण्ट को लागू होगें।
अध्याय 6 के अंतर्गत किस धारा में किस मजिस्ट्रेट या अधिकारी को आदेश जारी करने की शक्ति हैः-
धारा 73 के अंतर्गत मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट
धारा 78 के अंतर्गत कार्यपालक मजिस्ट्रेट, पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त
धारा 79 के अंतर्गत कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी से अनिम्न पंक्ति का पुलिस अधिकारी
धारा 81 के अंतर्गत कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त