Chapter 3 of CRPC

आज हम लोग जानेंगे Chapter 3 of CRPC के बारे में | जो की यह बताता है किस किस दंड न्यायालय द्वारा कितना दंड दिया जा सकता है |

Table of Contents

Chapter 3 of CRPC /न्यायालयों की शक्ति {धारा 26 से 35}

न्यायालय जिनके द्वारा अपराध विचारणीय है:-धारा 26

धारा 26 यह उपबंधित करती है कि कौन से दण्ड न्यायालय द्वारा किस अपराध का विचारण किया जा सकता है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए-

क) भारतीय दण्ड संहिता के अधीन किसी अपराध का विचारणः-
i)उच्च न्यायालय द्वारा किया जा सकता हैः या
ii)सेशन न्यायालय द्वारा किया जा सकता हैः या
iii) किसी ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसके द्वारा उस अपराध का विचारण होना प्रथम अनुसूची में दर्शित किया गया है।

परंतु यह कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376,धारा 376क, धारा 376 कख, धारा 376ख, धारा 376ग, धारा 376घ, धारा 376 घक, धारा 376ड आदि के अधीन किसी अपराध का विचारण ऐसे न्यायालय द्वारा किया जाएगा जिसकी पीठासीन कोई स्त्री हो।

ख) किसी अन्य विधि के अधीन किसी अपराध का विचारण, जब उस विधि में इस निमित्त कोई न्यायालय उल्लिखित है, तब उस न्यायालय द्वारा किया जाएगा जो उस विधि में उल्लिखित है।
किंतु अगर उस अन्य विधि में कोई न्यायालय नही है तो;
i)उच्च न्यायालय द्वारा किया जा सकता है, या
ii)किसी ऐसे न्यायालय द्वारा किया जा सकता है जिसके द्वारा उसका विचारणीय होना प्रथम अनुसूची में दर्शित किया गया है।

किशोरों के मामलों में अधिकारिता :-{धारा 27}

कोई ऐसा अपराध जो मृत्यु या आजीवन कारावास से दण्डनीय नही है और ऐसा अपराध ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया है जिसकी उम्र 16 वर्ष से कम है तब ऐसे अपराध का विचारण-

  • मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में किया जाएगाः या
  • किशोर अपराधियों के उपचार, प्रशिक्षण और पुर्नवास के लिए उपबंध करने वाली तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन विशेष रूप से सशक्त किए गए न्यायालय में किया जाएगा।

दण्डादेश जो उच्च न्यायालय और सेशन न्यायाधीश दे सकेगें :-{धारा 28 सपठित धारा 53 भारतीय दण्ड संहिता}

उच्च न्यायालय द्वारा दिया जाने वाला दण्डादेश :-{धारा 28(1)}

उच्च न्यायालय विधि द्वारा प्राधिकृत कोई भी दण्डादेश दे सकता है।

सेशन न्यायाधीश द्वारा दिये जाने वाला दण्डादेश :- {धारा (2)सपठित धारा 366 धारा 368}

सेशन न्यायाधीश या अपर सेशन न्यायाधीश विधि द्वारा प्राधिकृत कोई भी दण्डादेश दे सकते हैं।
किंतु उनके द्वारा दिए गए मृत्यु दण्डादेश को उच्च न्यायालय द्वारा पुष्ट किया जाना आवश्यक है।

सहायक सेशन न्यायाधीश द्वारा दिये जाने वाला दण्डादेश :-

सहायक सेशन न्यायाधीश मृत्युु दण्ड या आजीवन कारावास या दस वर्ष से अधिक के कारावास करे छोड़कर विधि द्वारा प्राधिकृत कोई भी दण्डादेश दे सकते हैं।

दण्डादेश जो मजिस्ट्रेट दे सकेगें :- {धारा 29सपठित धारा 53 भारतीय दण्ड संहिता}

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट तथा मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट द्वारा दिए जाने वाले दण्डादेश {धारा 29(1)}

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय द्वारा मृत्यु दण्ड या आजीवन कारावास या 7 वर्ष से अधिक की अवधि के कारावास को छोड़कर विधि द्वारा प्राधिकृत कोई भी दण्डादेश दिया जा सकता है।

प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दिए जाने वाला दण्डादेश {धारा 29(2)}

प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा ऐसा दण्डादेश दिया जा सकता है जो कि –

i)3 वर्ष से अधिक के कारावास का न हो, या
ii)10,000 रूपये से अधिक के जुर्माने का न हो, या
iii)दोनो ।

द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दिए जाने वाला दण्डादेश {धारा 29(2)}

द्वितीय वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा ऐसा दण्डादेश दिया जा सकता है जो कि –

i)1 वर्ष से अधिक के कारावास का न हो, या
ii)5,000 रूपये से अधिक के जुर्माने का न हो, या
iii)दोनो ।

मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट तथा महानगर मजिस्ट्रेट द्वारा दिए जाने वाले दण्डादेश {धारा29(4)}

मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट के न्यायालय को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय की शक्तियाँ और महानगर मजिस्ट्रेट के न्यायालय को प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ होगीं।

नोट :- विधि द्वारा प्राधिकृत दण्डादेश भारतीय दण्ड संहिता की धारा 53में बताये गये हैं जो कि निम्नवत् हैः-

1) मृत्यु दण्डादेश या
2) आजीवन कारावास या
3) कारावास जो दो भाँति है अर्थात्
क)कठिन, अर्थात् कठोर श्रम के साथ या
ख)सादा या
4) सम्पत्ति का समपहरण या
5) जुर्माना।

नोट :- धारा 28(2) के अतंर्गत यह प्रावधानित किया गया है कि सेशन न्यायालय विधि द्वारा प्राधिकृत कोई भी दण्डादेश पारित कर सकता है किंतु सेशन न्यायालय द्वारा पारित मृत्यु दण्डादेश को उच्च न्यायालय द्वारा पुष्ट किया जाना आवश्यक है।

अब हम यह देखेगें कि सेशन न्यायालय द्वारा दिए गए मृत्यु दण्डादेश को पुष्ट किए जाने के लिए उच्चन्यायालय के समक्ष किस धारा के अतंर्गत प्रस्तुत किया जाता है तथा उच्च न्यायालय किस धारा के अन्र्तगत अपनी शक्तियों का प्रयोग करके उस दण्डादेश को पुष्ट या बातिल घोषित कर सकता है।

सेशन न्यायालय द्वारा मृत्युदण्डादेश का पुष्टि के लिए प्रस्तुत किया जाना {धारा 366}

जब सेशन न्यायालय द्वारा मृत्युदण्डादेश दिया जाता है तब कार्यवाही उच्च न्यायालय को प्रस्तुत कर दी जाती है और दण्डादेश तब तक निष्पादित नही किया जाएगा जब तक उस दण्डादेश को उच्च न्यायालय द्वारा पुष्ट न कर दिया जाए। {धारा 366(1)}

जब तक उच्च न्यायालय द्वारा ऐसे दण्डादेश को पुष्ट नही कर दिया जाता है तब तक दण्डादेश पारित करने वाला न्यायालय {अर्थात् सेशन न्यायालय} वारण्ट के अधीन दोष सिद्ध व्यक्ति को जेल की अभिरक्षा के लिए सुपुर्द करेगा।{धारा 366(2)}

मृत्यु दण्डादेश को पुष्ट करने या दोषसिद्धि को बातिल करने की उच्च न्यायालय की शक्ति {धारा 368}

सेशन न्यायालय द्वारा जो मृत्यु दण्डादेश पारित किया जाता है तथा उस मृत्यु दण्डादेश को जब उच्च न्यायालय के समक्ष जब प्रस्तुत किया जाता है तब उच्च न्यायालय उस दण्डादेश के सम्बन्ध में निम्न आदेश पारित कर सकता हैः-

क) दण्डादेश की पुष्टि कर सकता है या विधि द्वारा समर्पित कोई अन्य दण्डादेश दे सकता है; या
ख) दोषसिद्धि को बातिल {अर्थात् शून्य} कर सकता है और अभियुक्त को किसी ऐसे अपराध के लिए दोषसिद्ध कर सकता है जिसके लिए सेशन न्यायालय उसे दोषसिद्ध कर सकता है, या उसी {अर्थात् उसी मामले को} या संशोधित आरोप पर नए विचारण का आदेश दे सकता है; या
ग) अभियुक्त व्यक्ति को दोषमुक्त कर सकता है।

परंतु मृत्यु दण्डादेश की पुष्टि का कोई भी आदेश तब तक पारित नही किया जाएगा जब तक-
1) उस मामले के लिए अपील करने की जो परिसीमा अवधि बताई गई है वो समाप्त न हो गई होः या
2) यदि अपील करने की परिसीमा अवधि के भीतर उस मामले की अपील कर दी गई है तो जब तक उस अपील का निपटारा न हो गया हो।

लोक अभियोजक {धारा 24}

सहायक लोक अभियोजक {धारा 25}

अभियोजन निदेशालय

दंड न्यायालयों के वर्ग

Scroll to Top