आज हम लोग जानेंगे Chapter 25 of CRPC के बारे में | यह अध्याय पागल व्यक्तियों के न्यायालय में विचारण किये जाने के बारे में उपबंध करता है यह अध्याय धारा 328 से धारा 339 तक है जो की कुछ इस प्रकार है | (Crpc in Hindi}
Chapter 25 of CRPC – विकृत-चित्त अभियुक्त व्यक्तियों के बारे में उपबंध (धारा 328 से धारा 339 तक)
1) अभियुक्त के पागल होने की दशा में प्रक्रिया :- {Sec 328 Crpc}
धारा 328 तब लागू होती है जब अभियुक्त जाॅच के समय अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है।
a) यदि मजिस्ट्रेट को यह विश्वास करने का कारण है कि अभियुक्त विकृत चित्त है तब प्रक्रिया :- {धारा 328(1)}
यदि मजिस्ट्रेट का यह विश्वास करने का कारण है कि अभियुक्त विकृत चित्त है और अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है तो मजिस्ट्रेट ऐसी चित्त विकृति के तथ्यों की जाॅच करेगा और अभियुक्त को परीक्षा हेतु सिविल सर्जन या अन्य चिकित्साधिकारी के पास भेज देगा। मजिस्ट्रेट ऐसे सिविल सर्जन या अन्य चिकित्साधिकारी की साक्षी के रूप में परीक्षा करेगा और ऐसी परीक्षा को लेखबद्ध करेगा।
b) यदि सिविल सर्जन या अन्य चिकित्साधिकारी अभियुक्त को विकृत चित्त पाता है तब प्रक्रिया :- {धारा 328(1-A)}
यदि सिविल सर्जन या अन्य चिकित्साधिकारी अभियुक्त को विकृतचित्त पाता है तो वह ऐसे अभियुक्त को मनोचिकित्सक या चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक के पास देख-रेख, इलाज तथा स्थिति का अनुमान करने के लिए भेज देगा और मनोचिकित्सक या चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक मजिस्ट्रेट को इस की सूचना देगा कि क्या वास्तव में अभियुक्त चित्त विकृतता या मानसिक दुर्बलता से पीड़ित है।
परंतु यदि अभियुक्त मनोवैज्ञानिक या चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक की सूचना से संतुष्ट नहीं है तो वह चिकित्सीय परिषद् के समक्ष अपील दाखिल कर सकेगा जिसमें निम्न सम्मिलित होगें-
i) निकटतम शासकीय अस्पताल के मनोचिकित्सा इकाई के प्रधान और
iii) निकटतम मैडीकल काॅलेज के मनोचिकित्सा संकाय सदस्य।
c) जब तक अभियुक्त की इस बात की जाॅच या परीक्षा लम्बित रहेगी कि अभियुक्त विकृतचित्त है या नहीं, तब तक के लिए मजिस्ट्रेट द्वारा धारा 330 के अनुसार कार्यवाही की जा सकेगी। {धारा 328(2)}
d) यदि मनोचिकित्सक या चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक मजिस्ट्रेट को यह सूचना देते है कि अभियुक्त विकृत-चित्त है तब प्रक्रिया :- {धारा 328(3)}
यदि मनोचिकित्सक या चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक मजिस्ट्रेट को यह सूचना देते हैं कि अभियुक्त विकृत चित्त है तो मजिस्ट्रेट द्वारा सर्वप्रथम यह अवधारित किया जाएगा कि विकृत चित्तता के कारण अभियुक्त अपनी प्रतिरक्षा करने में समर्थ है या नहीं।
यदि मजिस्ट्रेट यह पाता है कि अभियुक्त अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है तो वह अभियुक्त के असमर्थता के भाव को अभिलिखित करेगा और अभियोजन के साक्ष्य का अभिलेख पर परीक्षण करेगा तथा अभियुक्त के अधिवक्ता को सुनेगा किंतु मजिस्ट्रेट द्वारा अभियुक्त से प्रश्न नहीं पूछे जाएगें।
सभी का परीक्षण करने के पश्चात् मजिस्ट्रेट की राय है कि-
यदि अभियुक्त के विरूद्ध प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है, तो मजिस्ट्रेट कार्यवाही को स्थगित करने के बजाए अभियुक्त को उन्मोचित कर देगा और धारा 330 के उपबंधों का पालन करेगा।
यदि अभियुक्त के विरूद्ध प्रथम दृष्टया मामला बनता है, तो मजिस्ट्रेट मामले को उतनी अवधि तक स्थगित कर देगा जितनी की मनोचिकित्सक या चिकित्सीय वैज्ञानिक की राय में अभियुक्त के ईलाज के लिए अपेक्षित है और अभियुक्त का धारा 330 के अधीन रहते हुए विचारण का आदेश देगा।
e) यदि मनोचिकित्सक या चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक द्वारा मजिस्ट्रेट को यह सूचना दी जाती है कि अभियुक्त मानसिक रूप से दुर्बल व्यक्ति है तब प्रक्रिया :- {धारा 328(4)}
यदि मनोचिकित्सक या चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक द्वारा मजिस्ट्रेट को यह सूचना दी जाती है कि अभियुक्त मानसिक रूप से दुर्बल व्यक्ति है तो मजिस्ट्रेट द्वारा सर्वप्रथम यह अवधारित किया जाएगा कि मानसिक दुर्बलता के कारण अभियुक्त अपनी प्रतिरक्षा करने में समर्थ है या नहीं। यदि मजिस्ट्रेट यह पाता है कि अभियुक्त अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है तो मजिस्ट्रेट जाॅच समाप्त करने के आदेश देगा और धारा 330 के अधीन रहते हुए कार्यवाही करेगा।
2) न्यायालय के समक्ष विचारित व्यक्ति के विकृतिचित्त होने की दशा में प्रक्रिया :- {Sec 329 Crpc}
धारा 329 तब लागू होती है जब अभियुक्त विचारण के समय विकृत चित्त है और अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है।
a) यदि मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायालय को विचारण के समय यह प्रतीत होता है कि अभियुक्त विकृत चित्तता के कारण अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है तब प्रक्रिया :- {धारा 329(1)}
यदि मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायालय को विचारण के समय यह प्रतीत होता है कि अभियुक्त विकृत चित्तता के कारण अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है तो मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायालय द्वारा ऐसी चितविकृत्तता और असमर्थता के तथ्यों पर विचारण किया जाएगा। यदि मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायालय चिकित्सीय या अन्य साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात् इस निष्कर्ष पर पहुॅचते है कि वास्तव में अभियुक्त विकृत चित्तता के कारण अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है तो मजिस्ट्रेट या न्यायालय अपने इस भाव को अभिलिखित करेगा और मामले की कार्यवाही को मुल्तवी कर देगा।
b) यदि मजिस्टेªट या न्यायाधीश को विचारण के दौरान अभियुक्त को चित्तविकृत पाता है तब प्रक्रिया :- {धारा 329(1-A)}
यदि मजिस्ट्रेट या न्यायाधीश विचारण के दौरान अभियुक्त को चित्तविकृत पाता है तो मजिस्ट्रेट या न्यायालय अभियुक्त को मनोचिकित्सक या चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक के पास देख-रेख, इलाज तथा स्थिति का अनुमान करने के लिए भेज देगा और मनोचिकित्सक या चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक मजिस्ट्रेट या न्यायाधीश को इस बात की सूचना देगा कि क्या वास्तव में अभियुक्त चित्तविकृतता या मानसिक दुर्बलता से पीड़ित है।
परंतु यदि अभियुक्त मनोचिकित्सक या चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक की सूचना से संतुष्ट नहीं है तो वह चिकित्सीय परिषद् के समक्ष अपील कर सकता है। परिषद् में निम्न व्यक्ति सम्मिलित होगें-
i) निकटतम शासकीय अस्पताल के मनोचिकित्सा इकाई के प्रधान और;
ii) निकटतम मैडिकल काॅलेज के मनोचिकित्सा संकाय के सदस्य।
c) यदि मनोचिकित्सक या चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक मजिस्ट्रेट या न्यायालय को यह सूचना देता है कि अभियुक्त विकृतचित्त है तब प्रक्रिया :- {धारा 329(2)}
यदि मनोचिकित्सक या चिकित्सीय मनोवैज्ञानिक मजिस्ट्रेट या न्यायालय को यह सूचना देता है कि अभियुक्त विकृत चित्त है तो मजिस्ट्रेट द्वारा सर्वप्रथम यह अवधारित किया जाएगा कि विकृतचित्तता के कारण अभियुक्त अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है या नहीं। यदि मजिस्ट्रेट या न्यायालय यह पाते है कि अभियुक्त अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है तो मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा अभियुक्त के असमर्थता के भाव को अभिलिखित किया जाएगा और अभियोजन के साक्ष्य को अभिलेख पर परीक्षण किया जाएगा तथा अभियुक्त के अधिवक्ता को सुना जाएगा किंतु अभियुक्त से प्रश्न नहीं पूछे जाएगें। सभी का परीक्षण करने के पश्चात् मजिस्ट्रेट की यह राय है कि –
अभियुक्त के विरूद्ध प्रथम दृष्टया मामला बनता है तो मामले को उतनी अवधि तक स्थगित कर दिया जाएगा जितनी की मनोचिकित्सक या चिकित्सीय वैज्ञानिक की राय में अभियुक्त के ईलाज के लिए अपेक्षित है।
परन्तु यदि अभियुक्त के विरूद्ध प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है तो कार्यवाही को स्थगित करने के बजाए अभियुक्त को उन्मोचित कर दिया जाएगा और धारा 330 के उपबंधों का पालन किया जाएगा।
d) यदि न्यायालय या मजिस्ट्रेट यह पाता है कि अभियुक्त के विरूद्ध प्रथम दृष्टया मामला बनता है किंतु अभियुक्त मानसिक दुर्बलता के कारण प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है तब प्रक्रिया :- {धारा 329(3)}
यदि न्यायालय या मजिस्ट्रेट यह पाता है कि अभियुक्त के विरूद्ध प्रथम दृष्टया मामला बनता है किंतु अभियुक्त मानसिक दुर्बलता के कारण प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है तो न्यायालय या मजिस्ट्रेट द्वारा विचारण नहीं किया जाएगा और धारा 330 के अनुसार विचारण किए जाने का आदेश दिया जाएगा।
3) अन्वेषण या विचारण लम्बित रहने के दौरान चित्तविकृत व्यक्ति की र्निमुक्ति :- {Sec 330 Crpc}
a) यदि अभियुक्त विकृत चित्तता या मानसिक दुर्बलता से ग्रस्त है तो उसका जमानत पर छोड़े जाना :- {धारा 330(1)}
यदि अभियुक्त को जाॅच या विचारण के किसी प्रक्रम पर विकृत चित्तता या मानसिक दुर्बलता से ग्रस्त पाया जाता है तो मजिस्ट्रेट या न्यायालय उसे जमानत पर छोड़े जाने का आदेश देगा फिर चाहे मामला जमानतीय हो या अजमानतीय इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
किंतु ऐसा तभी है जब अभियुक्त का अंतःरोगी ईलाज सम्भव नहीं है और अभियुक्त को कोई मित्र या नातेदार इस बात का वचन न्यायालय को देता है कि अभियुक्त का नियमित बाह्य रोगी ईलाज मनोचिकित्सक से कराया जाएगा और अभियुक्त ऐसे मित्र या नातेदार को या अन्य किसी व्यक्ति को क्षतिकारित नहीं करेगा। यदि अभियुक्त का नातेदार या मित्र यह वचन न्यायालय को देता है तो न्यायालय अभियुक्त को जमानत पर छोड़े जाने का आदेश देगी।
b) यदि अभियुक्त को जमानत पर नहीं छोड़ा जा सकता है तब प्रक्रिया :- {धारा 330(2)}
यदि मामला ऐसा है कि मजिस्ट्रेट या न्यायालय की राय में अभियुक्त को जमानत पर नहीं छोड़ा जा सकता है या यदि अभियुक्त को जमानत पर छोड़ दिया गया है तो अभियुक्त समुचित बंधपत्र निष्पादित नहीं पाएगा तो मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा अभियुक्त को ऐसे स्थान पर रखे जाने का आदेश दिया जाएगा जहाॅ अभियुक्त को नियमित मनोचिकित्सीय इलाज प्रदान किया जा सके। मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा इस कार्यवाही की रिपोर्ट राज्य सरकार को दी जाएगी।
परंतु यदि किसी अभियुक्त को पागल खाने में रखे जाने का आदेश दिया जाता है तो ऐसा आदेश मानसिक स्वास्थय अधिनियम, 1987 के अधीन राज्य सरकार द्वारा निर्मित नियमावली के अनुसार ही दिया जाएगा।
c) मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा इस बात का अवधारण करना कि अभियुक्त के उन्मोचन के आधार विद्यमान है या नहीं :- {धारा 330(3)}
जब कभी मजिस्ट्रेट या न्यायालय जाॅच या विचारण के किसी प्रक्रम में अभियुक्त को चित्त विकृतता या मानसिक दुर्बलता के कारण अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ पाते है तो मजिस्ट्रेट या न्यायालय कारित कृत्य की प्रकृति तथा चित्तविकृतता या मानसिक दुर्बलता की सीमा को ध्यान में रखते हुए इस बात का अवधारण करेगा कि क्या अभियुक्त के छोड़े जाने का आदेश दिया जा सकता है। यदि मजिस्ट्रेट या न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुॅचते हैं कि-
चिकित्सीय राय के आधार पर या विशेषज्ञ की राय के आधार पर अभियुक्त का उन्मोचन किया जाना चाहिए तो मजिस्ट्रेट या न्यायालय अभियुक्त को छोड़े जाने का आदेश दे सकता है यदि इस बात की पर्याप्त प्रतिभूति दी जाती है कि अभियुक्त न तो स्वयं को या न ही किसी अन्य व्यक्ति को क्षति कारित करेगा।
परन्तु यदि अभियुक्त के उन्मोचन का आदेश नहीं दिया जाता है तो अभियुक्त का ऐसे स्थान में स्थानांतरण का आदेश दे सकता है जहाॅ विकृत चित्त या मानसिक दुर्बलता वाले व्यक्तियों की आवासीय सुविधा है और जहाॅ अभियुक्त की देख-रेख की जा सके तथा उसे समुचित शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रदान किया जा सके।
4) जाॅच या विचारण को पुनः चालू करना :- {Sec 331 Crpc}
a) जब कभी जाॅच या विचारण को धारा 328 या धारा 329 के अधीन मुल्तवी किया गया है तो मजिस्ट्रेट या न्यायालय अभियुक्त व्यक्ति के स्वस्थचित्त हो जाने पर किसी भी समय पुनः चालू कर सकता है और अभियुक्त को अपने समक्ष हाजिर होने या लाए जाने की अपेक्षा कर सकता है। {धारा 331(1)}
c) यदि अभियुक्त को धारा 330 के अधीन छोड़ दिया गया है और अभियुक्त की हाजिरी के लिए प्रतिभू अभियुक्त को ऐसे अधिकारी के समक्ष पेश करता है जिसे मजिस्ट्रेट या न्यायालय द्वारा नियुक्त किया गया है तब यदि ऐसा अधिकारी यह प्रमाण-पत्र देता है कि अभियुक्त अपनी प्रतिरक्षा करने में समर्थ है तो ऐसा प्रमाण-पत्र साक्ष्य में लिए जाने योग्य होगा। {धारा 331(2)}
6) मजिस्ट्रेट या न्यायालय के समक्ष अभियुक्त के हाजिर होने पर प्रक्रिया :- {Sec 332 Crpc}
a) जब अभियुक्त मजिस्ट्रेट या न्यायालय के समक्ष हाजिर होता है या पुनः लाया जाता है तब यदि मजिस्ट्रेट या न्यायालय की यह राय है कि अभियुक्त अपनी प्रतिरक्षा करने में समर्थ है तो ऐसा मजिस्ट्रेट या न्यायालय जाॅच या विचारण को आगे चालू कर देगा। {धारा 332(1)}
b) यदि मजिस्ट्रेट या न्यायालय का यह विचार है कि अभियुक्त अभी अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ है तो मजिस्ट्रेट धारा 328 या धारा 329 के उपबंधों के अनुसार कार्यवाही करेगा और यदि अभियुक्त विकृतचित्तता के कारण अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ पाया जाता है तो मजिस्ट्रेट या न्यायालय धारा 330 के उपबंधों का पालन करेगा। {धारा 332(1)}
अपराधो का वर्गीकरण / Classification of Crime Under CRPC
A) यदि अभियुक्त अपराध करते समय विकृत चित्त था किंतु जाॅच और विचारण के समय स्वस्थचित्त हो जाता है तब प्रक्रिया :- {धारा 333से धारा 335 और 336}
A1) जब यह प्रतीत हो कि अभियुक्त स्वस्थचित्त रहा है :- {Sec 333 Crpc}
यदि अभियुक्त अपराध करते में अपराध की प्रकृति या स्वरूप को विकृतचित्तता के कारण यह समझने में असमर्थ था कि उसके द्वारा किए जाने वाला कृत्य दोषपूर्ण या विधि के प्रतिकूल है किंतु जाॅच या विचारण के समय मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि अभियुक्त स्वस्थचित्त है तो मजिस्ट्रेट मामले में आगे कार्यवाही करेगा और यदि अभियुक्त का विचारण सेशन न्यायालय द्वारा किया जाना चाहिए तो मामले को सेशन न्यायालय के समक्ष विचारण के लिए सुपुर्द करेगा।
CRPC | धारा 156 दंड प्रक्रिया संहिता
A2) चित्तविकृति के आधार पर दोषमुक्ति का निर्णय :- {Sce 334 Crpc}
यदि अभियुक्त को इस आधार पर दोषमुक्त कर दिया जाता है कि जिस समय अपराध किया गया था उस समय अभियुक्त चित्तविकृति के कारण अपने द्वारा किए जाने वाले कार्य की प्रकृति या स्वरूप समझने में असमर्थ था और यह समझने पर असमर्थ था कि उसके द्वारा किए जाने वाले कृत्य विधिपूर्ण नही है तब न्यायालय द्वारा निष्कर्ष में यह विर्निदिष्टतः कथन किया जाएगा कि अभियुक्त द्वारा ऐसा कार्य किया गया या नहीं।
A3) ऐसे आधार पर दोषमुक्त किए गए व्यक्ति का सुरक्षित अभिरक्षा में निरूद्ध किया जाना :- {Sec 335 Crpc}
a) यदि न्यायालय द्वारा निष्कर्ष में यह अभिकथित किया जाता है कि अभियुक्त द्वारा ऐसा अपराध किया गया है जिसकी प्रकृति या स्वरूप समझने में अभियुक्त उस समय असमर्थ था जब अपराध किया गया था तब न्यायालय निम्न आदेश दे सकता है-
i) अभियुक्त को ऐसे स्थान में और ऐसी रीति से सुरक्षित अभिरक्षा में निरूद्ध करने का आदेश जिसको मजिस्टेªट या न्यायालय ठीक समझे जैसे कि पागलखाने में निरूद्धि का आदेश;
ii) अभियुक्त को उसके किसी नातेदार या मित्र को सौंपने का आदेश। {धारा 335(1)}
b) यदि अभियुक्त को पागल खाने में निरूद्ध करने का आदेश दिया गया है तो ऐसा आदेश भारतीय पागलपन अधिनियम, 1912 के अधीन राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार ही दिया जाएगा। {धारा 335(2)}
c) अभियुक्त को उसके किसी नातेदार या मित्र को सौंपने का आदेश कब दिया जाएगा :- {धारा 335(3)}
अभियुक्त को उसके किसी नातेदार या मित्र को सौंपने का आदेश उसके ऐसे नातेदार या मित्र के आवेदन पर दिया जाएगा और इसी के साथ ऐसे नातेदार या मित्र द्वारा प्रतिभूति देते हुए निम्नलिखित बातों पर न्यायालय का समाधान किया जाना आवश्यक होगा-
i) अभियुक्त व्यक्ति की समुचित देख-रेख की जाएगी और अभियुक्त न तो अपने आपको और न ही किसी अन्य व्यक्ति को क्षति कारित करेगा;
ii) सौंपा गया व्यक्ति ऐसे अधिकारी के समक्ष और ऐसे समय और स्थानों पर निरीक्षण के लिए पेश किया जाएगा जिस अधिकारी को राज्य सरकार निर्दिष्ट करें।
d) यदि मजिस्टेªट या न्यायालय द्वारा अभियुक्त को निरूद्ध या मित्र या नातेदार को सौंपने का आदेश दिया गया है तो मजिस्टेªट या न्यायालय ऐसे आदेश की रिपोर्ट राज्य सरकार को देगा। {धारा 335(4)}
A4) भारसाधक अधिकारी को कृत्यों का निर्वहन करने के लिए सशक्त करने की राज्य सरकार की शक्ति :- {Sec 336 Crpc}
यदि कोई व्यक्ति धारा 330 या धारा 335 के अधीन जेल में परिरूद्ध है तो राज्य सरकार उस जेल के भारसाधक अधिकारी को धारा 337 या धारा 338 के अधीन कारागारों के महानिरीक्षक के सब कृत्यों का उनमें से किन्हीं कृत्यों का निर्वहन करने के लिए सशक्त कर सकती है।
A5) जहाॅ यह रिपोर्ट की जाती है कि पालग बंदी अपनी प्रतिरक्षा करने में समर्थ है वहाॅ प्रक्रिया :- {Sec 337 Crpc}
यदि अभियुक्त व्यक्ति को धारा 330(2) के अधीन निरूद्ध किया जाता है तो कारागारों का महानिरीक्षक या पागलखाने के परिदर्शक या ऐसे परिदर्शकों में से कोई दो यदि यह प्रमाणित कर देते हैं कि उनकी राय में अभियुक्त व्यक्ति अपनी प्रतिरक्षा करने में समर्थ है तो अभियुक्त व्यक्ति को मजिस्ट्रेट या न्यायालय के समक्ष उस समय पेश किया जाएगा जिस समय को मजिस्ट्रेट या न्यायालय नियत करेगें। अभियुक्त के हाजिर होने के बाद मजिस्ट्रेट या न्यायालय धारा 332 के अधीन कार्यवाही करेगा। ऐसे महानिरीक्षक या परिदर्शकों का प्रमाणपत्र साक्ष्य के तौर पर ग्रहण किया जा सकेगा।
A6) जहाॅ निरूद्ध पागल छोडे़ जाने के योग्य घोषित कर दिया जाता है वहाॅ प्रक्रिया :- {Sec 338 Crpc}
a) यदि अभियुक्त व्यक्ति धारा 330(2) या धारा 335 के अधीन निरूद्ध है और कारागार का महानिरीक्षक या पागलखाने के परिदर्शक यह प्रमाणित कर देते हैं कि उनके विचार में अभियुक्त अपने को या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति पहुॅचाने के खतरे के बिना छोड़ा जा सकता है तो राज्य सरकार निम्न आदेश दे सकती है-
i) अभियुक्त को छोड़े जाने का; या
ii) अभिरक्षा में निरूद्ध रखे जाने का; या
iii) यदि अभियुक्त पागलखाने नहीं भेजा गया है तो अभियुक्त को पागलखाने में अंतरित किए जाने का आदेश।
यदि राज्य सरकार द्वारा अभियुक्त को पागलखाने में अंतरित करने का आदेश दिया जाता है तो राज्य सरकार एक न्यायिक और दो चिकित्सक अधिकारियों का एक आयोग नियुक्त कर सकती है। {धारा 338(1)}
b) ऐसा आयोग साक्ष्य लेकर अभियुक्त व्यक्ति के चित्त की दशा की जाॅच करेगा और ऐसी जाॅच की रिपोर्ट राज्य सरकार को देगा और राज्य सरकार अभियुक्त के छोड़े जाने या निरूद्धि जो भी वह आवश्यक समझे आदेश दे सकती है।
7)नातेदार या मित्र को देख-रेख के लिए पागल का सौंपा जाना :- {Sec 339 Crpc}
a) यदि अभियुक्त व्यक्ति का कोई नातेदार या मित्र धारा 330 या धारा 335 के अधीन यह चाहता है कि अभियुक्त उसकी देख-रेख और अभिरक्षा में रखे जाने के लिए सौंप दिया जाए तो ऐसा नातेदार या मित्र राज्य सरकार को आवेदन करेगा और राज्य सरकार का निम्न बातों पर प्रतिभूति देते हुए समाधान करेगा कि-
i) अभियुक्त व्यक्ति की समुचित देख-रेख की जाएगी और अभियुक्त अपने आपको या किसी अन्य व्यक्ति को क्षति पहुॅचाने से निवारित रखा जाएगा;
ii) अभियुक्त व्यक्ति ऐसे अधिकारी के समक्ष और ऐसे समय और स्थानों पर निरीक्षण के लिए पेश किया जाएगा जिसे राज्य सरकार निर्दिष्ट करें।
iii) यदि अभियुक्त व्यक्ति धारा 330(2) के अधीन निरूद्ध व्यक्ति है तो अपेक्षा किए जाने पर ऐसे मजिस्ट्रेट या न्यायालय के समक्ष पेश किया जाएगा।
यदि राज्य सरकार का इन बातों पर समाधान हो जाता है तो राज्य सरकार अभियुक्त व्यक्ति को ऐसे नातेदार या मित्र को सौंपने का आदेश दे सकेगी। {धारा 339(1)}
b) यदि मित्र या नातेदार को सौंपा गया व्यक्ति ऐसे अपराध का अभियुक्त है जिसका विचारण न्यायालय द्वारा उसके विकृतचित्त होने या अपनी प्रतिरक्षा करने में असमर्थ होने के कारण मुल्तवी किया गया है। यदि ऐसे अभियुक्त के बारें में राज्य सरकार द्वारा निरीक्षण हेतु नियुक्त अधिकारी मजिस्ट्रेट या न्यायालय को यह प्रमाणित करता है कि अभियुक्त अपनी प्रतिरक्षा करने में समर्थ है तो मजिस्ट्रेट या न्यायालय नातेदार या मित्र से यह अपेक्षा करेगा कि वह अभियुक्त को उसके समक्ष पेश करे और पेश किए जाने पर मजिस्ट्रेट या न्यायालय धारा 332 के अनुसार कार्यवाही करेगा और निरीक्षण अधिकारी का प्रमाणपत्र साक्ष्य के तौर पर ग्रहण किया जा सकता है। {धारा 339(2)}