स्वीकृति/ACCEPTANCE प्रस्ताव की शर्तो से बाध्य होने के लिए प्रस्ताविति की अभिव्यक्ति मात्र है। प्रस्ताव के स्वीकार किये जाने पर प्रस्तावक तथा स्वीकृतः के मध्य विधिक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। संविदा अधिनियम की धारा 2(b) “स्वीकृति” शब्द को निम्नतः परिभाषित करती है :-
“जबकि वह व्यक्ति, जिससे प्रस्थापना की जाती है, उसके प्रति अपनी अनुमति संज्ञापित करता है तब वह प्रस्तावना प्रतिग्रहीत हुई कही जाती है।” (धारा 2(b), भारतीय संविदा अधिनियम)
वैध स्वीकृति/ACCEPTANCE के आवयश्क तत्व :-
वैध स्वीकृति के निम्नलिखित आवश्यक तत्व है जो स्वीकृति को वैध बनाते है | किसी भी स्वीकृति में इन आवश्यक तत्वों का होना आवश्यक है क्योंकि अगर ये आवश्यक तत्व नही होंगे तो स्वीकृति वैध नही होगी |
स्वीकृति अभिव्यक्त या विवक्षित हो सकती है। (धारा 9, संविदा अधिनियम )
जब स्वीकृति लिखित या में की जाती है तो इसे अभिव्यक्त स्वीकृति कहते है, और यदि स्वीकृति स्वीकृता के आचरण से दर्शित होती है, या प्रस्ताव की शर्तो के पालन से दर्शित होती है तो इसे विवक्षित स्वीकृति कहा जाता है। दूसरे शब्दों में, केवल सामान्य प्रस्ताव के मामले में ही स्वीकृति विवक्षित हो सकती है।
सामान्य नियम यह है की प्रस्ताव केवल उस व्यक्ति द्वारा स्वीकृत किया जा सकता है जिसको की प्रस्ताव किया गया हो, यह नियम विशिष्ट प्रस्ताव के सन्दर्भ में लागू होता है।
बौल्टोन बनाम जोंस, 1857
मामले के तथ्य :- इस मामले में a ने अपना कारोबार b को बेच दिया था। परन्तु इसकी सुचना एक पुराने ग्राहक c को नहीं थी। c ने मॉल मगाने के लिए a के नम एक खत लिखा। b ने c को माल भेज दिया, मगर चने मूल्य ऐडा करने से मना कर दिया।
अभिनिर्धारित :- यह अभिनिर्धारित किया गया की, किसी वैध संविदा का निर्माण नहीं हुआ था क्योंकि c ने कभी भी b के सामने कोई प्रस्ताव रखा ही नहीं था।
परन्तु सामान्य प्रस्ताव के सन्दर्भ में ये नियम लागू नहीं होता है। सामान्य प्रस्ताव को किसी भी ऐसे व्यक्ति द्वारा स्वीकार किया जाता है जिसे ऐसे प्रस्ताव के किये जाने का ज्ञान हो।
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स्वीकृति सदैव पूर्ण एवंम शर्त रहित होनी चाहिए। {धारा 7(1)}
यदि प्रस्ताव को शर्तो से सहित स्वीकार किया जाता है तो स्वीकृति प्रतिप्रस्ताव में परिवर्तित हो जाती है, औरकिसी वैध संविदा का निर्माण नहीं होता है।
हाइड बनाम ब्रेंच, 1840
मामले के तथ्य :- इस मामले में प्रतिवादी ने अपना फार्म 1000 पौंड में वादी को बेचने का प्रस्ताव किया। वादी ने उत्तर दिया की वह फार्म केवल 950 पौंड में खरीदेगा।
प्रतिवादी ने उत्तर दिया की वह 950 पौंड में फार्म का विक्रय नहीं करेगा। वादी ने प्रतिउत्तर में प्रतिवादी से कहा, की वह फार्म के लिए 1000 पौंड देने को तैयार है।
प्रतिवादी ने वादी को 1000 पौंड में भी अपने फार्म का विक्रय नहीं किया। वादी ने संविदा के विनिर्दिष्ट पालन हेतु वाद प्रस्तुत किया।
अभिनिर्धारित :- यह अभिनिर्धारित किया गया की वादी ने 950 पौंड में फार्म का क्रय करने के प्रतिप्रस्ताव से प्रतिवादी के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया था और इस प्रकार नामंजूर किये गए प्रस्ताव को बाद में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
स्वीकृति विहित रीति से दी जानी चाहिए :-
स्वीकृति विहित रीति से दी जानी चाहिए। यदि प्रस्ताव स्वीकृति की कोई विहित रीति कहता हो, और स्वीकृताः द्वारा उस रीती से स्वीकृति नहीं दी जाती है तो प्रस्तावक का यह कर्त्तव्य है की वह यक्तियक्त समय के भीतर स्वीकृता को यह सूचित करे की वह प्रस्ताव रीति से स्वीकार करे। यदि प्रस्तावक ऐसा नहीं करता है, तो वह उस स्वीकृति से बाध्य हो जाता है।
यदि स्वीकृति की कोई रीती विहित न हो, तो स्वीकृति को किसी भी प्रायिक और युक्तियुक्त रीति से अभिव्यक्त किया जाना चाहिए। {धारा 7(2)}
स्वीकृति की संसूचना प्रस्तविति या उसके प्राधिकृत अभिकर्ता द्वारा दी जनि चाहिए :-
स्वीकृति की संसूचना प्रस्तविति या उसके प्राधिकृत अभिकर्ता द्वारा दी जनि चाहिए। अप्राधिकृत व्यक्ति द्वारा स्वीकृति की संसूचना वैध संविदा का सर्जन हेतु प्रयाप्त नहीं है।
पावेल बनाम ली, 1908
मामले के तथ्य :-इस मामले में वादी ने एक स्कूल के मुख्याध्यापक के पद के लिए आवेदन किया। स्कूल की प्रबंध समिति ने एक प्रस्ताव पारित करके वादी को उक्त पद पर नियुक्त करने का निर्णय ले लिया। परन्तु इसकी सुचना वादी को नहीं दी गई। प्रबंध समिति के सदस्य ने व्यक्तिगत रूप से वादी को वक्त निर्णय की सुचना दे दी। बाद में प्रबंध समिति ने अपना प्रस्ताव रद्द करके किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त कर दिया। वादी ने संविदा भंग हेतु प्रबंध समिति के विरुद्ध वाद संस्थित किया।
अभिनिर्धारित :- यह अभिनिर्धारित किया गया, की वादी को किसी अधिकृत व्यक्ति ने उसकी नियुक्ति की सुचना नही थी। अतः स्वीकृति की सुचना दी ही नहीं गई थी, अतः किसी संविदा का निर्माण नहीं हुआ था।
अप्राधिकृत व्यक्ति को स्वीकृति की संसूचना से वैध संविदा का निर्माण नहीं होता है :-
स्वीकृति प्रस्तावक या इस प्रयोजन से उसके द्वारा प्राधिकृत किसी व्यक्ति को संसूचित की जानी चाहिए।दूसरे शब्दों में अप्राधिकृत व्यक्ति को स्वीकृति की संसूचना से वैध संविदा का निर्माण नहीं होता है।
फेल्ट हाउस बनाम बिन्दले, 1863
मामले के तथ्य :- इस मामले में फेल्ट हाउस ने एक बार अपने भतीजे को एक पत्र लिखा और उसमे उसने अपने भतीजे का एक घोड़ा 30 पौंड में खरीदने का प्रस्ताव किया और यह भी लिखा की “यदि मुझे इस बारे में कोई उत्तर नहीं मिला तो में समझूंगा की घोड़ा मेरा हो गया। भतीजे ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया।
अभिनिर्धारित :- यह अभिनिर्धारित किया गया गया की किसी संविदा का निर्माण नहीं हुआ क्योंकि प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया किया गया था।
परन्तु स्वीकृति की संसूचना से यह आशय नहीं है की प्रस्तावक को स्वीकृति की जानकारी हो जय। अतः यदि उचित रीति से टिकट लगा हुआ और पता लिखा हुआ मार्ग से गुम हो जाता है या विलम्ब से पहुँचता है, तो भी प्रस्तावक से बाध्य हो जाता है।
स्वीकृति निर्धारित या उचित समय के भीतर दी जानी चाहिए :-
स्वीकृति निर्धारित या उचित समय के भीतर दी जनि चाहिए। स्वीकृति देने हेतु उचित अवधि क्या है, यह प्रत्येक मामले के तथ्य एवंम परिस्थितियों पर निर्भर करता है। स्वीकृति प्रस्ताव के वापस लिए जाने या उसके समाप्त हो जाने से पहले दी जानी चाहिए।
प्रस्ताव कब समाप्त हो जाता है :-
प्रस्ताव निन्मलिखित परिस्थितियों में समाप्त हो जाता है –
- निश्चित या उचित अवधि के व्यतीत होने पर;
- स्वीकृति से पहले प्रस्तावक या प्रस्तवीति की मृत्यु पागल हो जाने पर। परन्तु यदि प्रस्तावक की मृत्यु या उसके पागल का तथ्य का ज्ञान स्वीकृता को स्वीकृति के पश्चात ज्ञात होता है तो वैध संविदा का निर्माण हो जायेगा;
- स्वीकृति में सलंग्न किसी प्रोभाव शर्त का पालन करने में स्वीकृता की विफलता पर;
- प्रस्तावक द्वारा प्रस्तावीति को रद्दकरण की सुचना के संसूचित किय जाने पर:
- निर्धारित रीति से स्वीकृति न दिय जाने पर;
- प्रस्तावीति द्वारा प्रतिप्रस्ताव किय जाने पर,अर्थात यदि किसी शर्तो सहित प्रस्ताव स्वीकार किया जाता है, तो वह प्रतिप्रस्ताव में परिवर्तित हो जाता है और मूल प्रस्ताव समाप्त हो जाता है;
- प्रस्ताव पश्चात उसमे अवैधता उत्पन्न हो जाने पर या उसकी विषय वस्तु नष्ट हो जाने पर।