Chapter-5 of Indian Contract Act {Sec 68 to 72}

Chapter-5 of Indian Contract Act {Sec 68 to 72} की सम्पूर्ण जानकारी | न्यायिक परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए |

Table of Contents

संविदा द्वारा सृजित संबंधो के सद्रश्य कतिपय संबंधो के विषय  में {Chapter-5 of Indian Contract Act Sec 68 to 72}

भारतीय संविदा अधिनियम में संविदा कल्प या अर्द्ध संविदा शब्दों का प्रयोग कही भी नही किया गया | अध्याय 5 (धारा 68 से 72 तक) संविदा द्वारा सृजित संबंधो के सद्रश कतिपय संबंधो के विषय में प्रावधान करता है | यह प्रावधान आंग्ल विधि के संविदा कल्प से सम्बंधित प्रावधानों के सामान है |

कुछ विशेष परिस्थितियों में समय एवंम नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतो के आधार पर विधि किसी व्यक्ति पर संविदा द्वारा सृजित बाध्यताओं के समान बाध्यताएं अधिरोपित करती है | ऐसी बाध्यताओं को अर्द्ध संविदा या संविदा कल्प कहा जाता है |

मोसेस बनाम मैकफरलन 1760

के मामले में लार्ड मेंसफील्ड ने प्रेषित किया की अर्द्ध संविदात्मक बाध्यता का आधार अनुचित समवृद्धि का सिद्धांत है | यह नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतो एवंम समय की मांग है की जिस किसी ने दुसरो की कीमत पर अनुचित रूप से लाभ अर्जित किया है वह उसे उसको लौटा दे |

अर्द्ध संविदा के सर्जन हेतु संविदा की भांति प्रस्ताव, स्वीकृति, पक्षकारो की स्वतन्त्र सम्मति पक्षकरो की सक्षमता और विधिक सम्बन्ध सृजित करने के आशय की अपेक्षा नही होती है |

संविदा और अर्द्ध संविदा में अंतर :-

संविदाअर्द्ध संविदा
बाध्यता का सर्जन पक्षकारो के कार्य द्वारा होता है |बाध्यता का सर्जन विधि द्वारा होता है |
संविदा के सर्जन हेतु प्रस्ताव, स्वीकृति, पक्षकारो की स्वतन्त्र सम्मति व पक्षकरो की सक्षमता आवश्यक है |अर्द्ध संविदा के सर्जन हेतु प्रस्ताव, स्वीकृति, पक्षकारो की स्वतन्त्र सम्मति व पक्षकरो की सक्षमता आवश्यक नहीं है |
विधिक सम्बन्ध सृजित करने का आशय होना चाहिए |अर्द्ध संविदा का पक्षकारो के आशय से कोई सम्बन्ध नही है |

भारतीय संविदा अधिनियम के अंतर्गत अर्द्ध संविदात्मक बाध्यता :-

भारतीय संविदा अधिनियम के अंतर्गत निम्नलिखित मामलो में अर्द्ध संविदात्मक बाध्यता उत्पन्न होती है :-

  1. संविदा करने में असमर्थ व्यक्ति को या उसके लेखे प्रदाय की गई आवश्यक वस्तुओं के लिए दावा {धारा 68}
  2. उस व्यक्ति की प्रतिपूर्ति जो किसी अन्य द्वारा शोध्य ऐसा धन देता है जिसके संदाय में वह व्यक्ति हितबद्ध है {धारा 69}
  3. अननुग्रहिकतः कार्य का फायदा उठाने वाले व्यक्ति की बाध्यता {धारा 70}
  4. माल पड़ा पाने वाले का उत्तरदायित्व {धारा 71}
  5. उस व्यक्ति का दायित्व जिसको भूल से या प्रपीड़न के अधीन धान का संदाय या चीज़ का परिदान किया जाता है {धारा 72}

संविदा करने में असमर्थ व्यक्ति को या उसके लेखे प्रदाय की गई आवश्यक वस्तुओं के लिए दावा {धारा 68} :-

जब किसी व्यक्ति ने किसी ऐसे व्यक्ति को आवश्यक वस्तुओं का प्रदाय दिया हो जो संविदा करने मेंअक्षम हो या जिसका पालन पोषण करने में अक्षम हो या जिसका पालन पोषण करने के लिए वह वैध रूप से आबाद्ध हो तो वह ऐसे अक्षम व्यक्ति की सम्पति से प्रतिपूर्ति पाने का हक़दार होगा | 

द्रष्टान्त 

  1. ख को, जो पागल है, जीवन में उसकी स्थिति के योग्य आवश्यक वस्तुओं का प्रदाय क करता है | ख की सम्पति से क प्रतिपूर्ति पाने का हक़दार है (ऐसा अक्षम व्यक्ति व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से दाई नही होगा) |
  2. ख को, जो पागल है, उसकी पत्नी व बच्चो को जीवन में उनकी स्थिति के योग्य आवश्यक वस्तुओं का प्रदाय क करता है | ख की सम्पति से क प्रतिपूर्ति पाने का हक़दार है (ऐसा अक्षम व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से दाई नही होगा) |

उस व्यक्ति की प्रतिपूर्ति जो किसी अन्य द्वारा शोध्य ऐसा धन देता है जिसके संदाय में वह व्यक्ति हितबद्ध है {धारा 69}

जब प्रतिवादी कुछ धन का संदाय करने हेतु विधि द्वारा आबद्ध हो और वादी ऐसे धन के संदाय में हितबद्ध हो और वास्तव में उसका संदाय कर भी दे तो वह प्रतिवादी से प्रतिपूर्ति पाने का हक़दार होगा | 

Chapter-5 of Indian Contract Act {Sec 68 to 72}

द्रष्टान्त 

जमींदार क के द्वारा अनुदत पट्टे पर ख बंगाल में भूमि धारण करता है | क द्वारा सरकार को देय राजस्व के बकाया में होने के कारण उसकी भूमि सरकार द्वारा विक्रय के लिए विज्ञापित की जाती है | ऐसे विक्रय का राजस्व विधि के अधीन परिणाम ख के पट्टे का बातिल किया जाना होगा | ख विक्रय का और उसके परिणामस्वरूप अपने पट्टे के बातिल किये जाने को निवारित करने के लिए क द्वारा शोध्य राशी सरकार को संदत्त करता है | क इस प्रकार संदत्त रकम की ख को प्रतिपूर्ति करने के लिए आबद्ध है |

अननुग्रहिकतः कार्य का फायदा उठाने वाले व्यक्ति की बाध्यता {धारा 70}

जब वादी ने प्रतिवादी के लिए आनुग्रहिकतः करने का आशय ना रखते हुए विधि पूर्वक कोई बात कही है या उसे किसी वस्तु का परिदान किया है और प्रतिवादी ने उसका फायदा उठाया है तो वादी प्रतिवादी से इस प्रकार की गई बात या परिदत्त वस्तु के लिए प्रतिकर या उस वस्तु को पुनः प्राप्त करने का हक़दार होगा | 

द्रष्टान्त 

  1. एक व्यापारी क कुछ माल ख के घर पर भूल से छोड़  जाता है | ख उस माल को अपने माल के रूप में बरतता है | उसके लिए क को संदत्त करने के लिए वह आबद्ध है |
  2. ख की सम्पति को क आग से बचाता है | यदि परिस्थितियां यह दर्शित करती है की क का कार्य आनुग्रहिकतः कार्य करने का था तो क, ख से प्रतिकार पाने का हकदार नही है |

राम तुहुल सिंह बनाम बिशेश्वर 

मामले  के तथ्य:- क ख का ऋणी था |

अभिनिर्धारित:- स को संदाय करने के सम्बन्ध में हितबद्ध व्यक्ति नही  जा सकता | संदाय में हितबद्ध व्यक्ति वह है जो संदाय न किये जाने पर प्रतिकुलतः एवंम गंभीरतः प्रभावित होगा |

पश्चिम बंगाल राज्य बनाम वी. के. मंडल एंड संस,1962,(एस, सी.)

अभिनिर्धारित :- धारा 70 अवयस्क के विरुद्ध लागु नही होती है | अतः यदि कोई अवयस्क विधिपूर्वक परिदत्त किसी वस्तु या दी गई सेवा का फायदा उठाता है तो धारा 70 के अंतर्गत प्रतिकर देने हेतु वह दाई नही होगा |

माल पड़ा पाने वाले का उत्तरदायित्व {धारा 71}

जब किसी अन्य व्यक्ति का माल पड़ा पाने वाला व्यक्ति उसे अपनी अभिरक्षा में ले लेता है तो वह उपनिहिती के समान उत्तरदायी हो जाता है | 

उस व्यक्ति का दायित्व जिसको भूल से या प्रपीड़न के अधीन धान का संदाय या चीज़ का परिदान किया जाता है {धारा 72}

जब किसी व्यक्ति को भूल से या प्रपीडन के अधीन धन का संदाय किया गया हो या कोई वस्तु परिदत्त की गई हो तो उस व्यक्ति को उसका प्रतिसंदाय या वापिस करना होगा | 

द्रष्टान्त 

  1. क और ख संयुक्ततः स के 100 रुपए के देनदार है | अकेला क ही स को वह रकम संदत्त कर देता है और तथ्य को न जानते हुए, स को ख 100 फिर संदत्त कर देता है | इस रकम का ख प्रतिसंदाय करने केलिए स आबद्ध है |
  2. एक रेल कंपनी परेषिती को अमुक माल परिदत्त करने से इन्कार करती है जब तक की परेषिती माल के वहन के लिए अवैध प्रभार न दे | परेषिती माल अभिप्राप्त करने हेतु माल की वह राशी संदत्त कर देता है | परेषिती उस प्रभार में से उतना वसूलने का हकदार है जितना अवैध था |
Scroll to Top