आज हम भारतीय संविधान के एक महत्वपूर्ण उपबंध की बात करेंगे जो की धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार {Right to Freedom of Religion} अनुच्छेद 25 से 28 प्रदान करता है इसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है फिर चाहे वह व्यक्ति भारतीय हो या विदेशी | आज हम इस पुरे कांसेप्ट को समझेंगे और यह पूरा पोस्ट न्यायिक व अन्य परीक्षाओं के प्री. व मुख्य परीक्षाओं के द्रष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है |
Right to Freedom of Religion/धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार परिचय :-
- यह बात तो प्रस्तावना से स्पष्ट हो जाती है की भारत एक धर्म निरपेक्ष राज्य है।
- प्रस्तावना में धर्म निरपेक्षता शब्द को 42 वे संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा जोड़ा गया था। कई बार यह कहा जाता है की प्रस्तावना में धर्म निरपेक्षता शब्द के शामिल किय जाने का कोई व्यावहारिक महत्त्व नहीं है। आलोचकों का यह मानना है की अनुछेद 25-30 यह स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है की भारत एक धर्म निरपेक्ष राज्य है। इसके अलावा प्रस्तावना स्वंम विश्वास, धर्म, और उपासना की स्वतंत्रता घोषित करती है।
- Article 25-28 धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उपबंध करती है। अनुच्छेद 29-30 विशिष्ट मामलो में इस अधिकार के विस्तार को और अधिक व्यापक बनाते हैं।
धर्म – निरपेक्षता :-
- धर्म-निरपेक्षता जीवन पध्दति की एक विचारधारा या उसका दर्शनशास्त्र है। धर्म निरपेक्षता न ईश्वर विरोधी है और न ही ईश्वर समर्थक। यह यह भक्त, आस्तिक, नास्तिक सभी को सामान मानती है। यह धर्म के आधार पर विभेद को वर्जित करती है।
- एक धर्म-निरपेक्ष राज्य किसी विशिष्ट धर्म को राज्य धर्म के रूप में न तो मान्यता देता है और न ही घोषित करता है। परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है की धर्म निरपेक्ष राज्य अधार्मिक राज्य है और न ही ये नास्तिक राज्य है। एक धर्म निरपेक्ष राज्य सभी धर्मो, धार्मिक समुदायों, उनके अनुयायियों को संरक्षण प्रदान करता है। यह विभिन्न धर्मो के अनुयायियों के साथ भेदभाव नहीं करता है।
- यह मानव के ईश्वर के साथ सम्बन्ध की किसी प्रकार की व्यवस्था उपबंध नहीं करता है। यह केवल मानवो के आपसी सम्बन्धो पर विचार करता है। यह किसी भी धर्म के माध्यम से ईश्वर के साथ संवाद स्थापित करने की स्वतंत्रता देता है।
धर्म :-
धर्म शब्द को संक्षिप्त: परिभाषित नही किया जा सकता है । धर्म व्यक्तियों एवंम समूहों के विश्वास का विषय है । यह उन मान्यताओं एवंम सिद्धान्तों की व्यवस्था है जिसे किसी विशिष्ट धर्म को मानने वाले व्यक्ति अपने आध्यात्मिक लाभ के लिये निश्चायक मानते हैं।
कमिश्नर हिन्दू रिलीजियस एण्डोमेंट्स, मद्रास बनाम श्री एल. टी. स्वामीयर, 1954, सुप्रीम कोर्ट
अभिनिर्धारित:- यह कहना गलत होगा कि धर्म विश्वास के सिद्धांत के अतिरिक्त कुछ भी नही है ।
मोहम्मद हनीफ क़ुरैशी बनाम स्टेट ऑफ बिहार, 1958, सुप्रीम कोर्ट
अभिनिर्धारित:- प्रत्येक धर्म के अपने कर्म कांड ओर मान्यताएँ होती हैं। वे उस धर्म के अभिन्न भाग होते हैं । उनका विस्तार भोजन एवंम पोशाक के विषय तक हो सकता है। धर्म का अभिन्न भाग क्या है, यह न्यायिक परीक्षण के अधीन है। न्यायालय किसी विशिष्ट धर्म के सिद्धांतों का सम्यक परीक्षण कर सकता है।
स्माइल फारुखी बनाम भारत संघ, 1996, सुप्रीमकोर्ट (अयोध्या केस)
अभिनिर्धारित:- पूजा करना एक धार्मिक कार्य है, किन्तु विशेष स्थान पर पूजा करना धर्म का आवयश्क भाग नही है। जब तक कि उसका विशिष्ट महत्व न हो। मस्जिद में ‘नवाज’ पढ़ना इस्लाम धर्म का आवयश्क तत्व नही है।
भारतीय संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उपबंध/ Constitutional Provision relating to Right to Freedom of Religion :-
- अन्तः करण की और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण, और प्रचार करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25);
- धार्मिक कार्य के प्रबंध की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 26);
- किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिये करो के संदाय के बारे में स्वतंत्रता (अनुच्छेद 27);
- कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता (अनुच्छेद 28) |
अन्तः करण की और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण, और प्रचार करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) :-
- अनुच्छेद 25(1) के अंतर्गत अधिकार निम्न के अधीन है-
- लोक व्यवस्था;
- सदाचार/ नैतिकता;
- स्वास्थ्य;
- भाग 3 के अन्य उपबंध।
- अनुच्छेद 25(1) के अंतर्गत सभी व्यक्ति निम्न अधिकारों के हकदार हैं-
- अन्तःकरण की स्वतंत्रता का अधिकार
- किसी भी धर्म की अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता का अधिकार
- अन्तः कारण की स्वतंत्रता में निम्न शामिल हैं-
- ईश्वर के साथ सम्बन्ध स्थापित करने की स्वतंत्रता का अधिकार;
- पूर्ण आंतरिक स्वतंत्रता;
- आस्था और विश्वास के विषय में बाह्य विवश्ता का अभाव या स्वतंत्रता;
- अन्तःकरण से तात्पर्य नैसर्गिक रूप से विकसित आंतरिक भावनाओ से है।
- किसी भी धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता से तात्पर्य-
- धर्म को अबाध रूप से मानने से तात्पर्य धर्म के प्रति श्रद्धा एवंम विश्वास को स्वतंत्रता पूर्वक घोषित करना है।
- धर्म का आचरण करने में निम्न शामिल है-
- धार्मिक कर्तव्यों का पालन;
- धार्मिक रीति रिवाजों का पालन;
- धार्मिक अधिकारों का उपभोग।
- अपने धर्म का प्रचार करना धार्मिक अधिकार का भाग है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी धार्मिक आस्था एवंम विश्वास दुसरो को सम्प्रेषित करने का अधिकार है। इसमे अपने धर्म के मूल तत्वों तथा शिक्षाओं को अभिव्यक्त एवंम घोषित करने का अधिकार शामिल है।
परन्तु राज्य बलात धर्म परिवर्तन की अनुमति नही देता है। उकसाकर एवंम उत्प्रेरित करके धर्म परिवर्तन करना अनुच्छेद 25(1) की परिधि से बाहर है।
एस. आर. बॉम्बे बनाम भारत संघ, 1994, सुप्रीमकोर्ट
अभिनिर्धारित:- धर्म-निरपेक्षता संविधान का आधारभूत ढाँचा है।
संतोष कुमार बनाम मानव संसाधन विकास मंत्रालय सचिव, 1995, सुप्रीमकोर्ट
अभिनिर्धारित:- केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा माध्यमिक विद्यालयों में संस्कृत को चयनित विषय के रूप में पढ़ाने से धर्म-निरपेक्षता आघात नही होती है।
बिजो इमैनुअल बनाम स्टेट ऑफ केरल, 1986, सुप्रीमकोर्ट
अभिनिर्धारित:- किसी व्यक्ति को राष्ट्रगान गाने के लिये बाध्य नही किया जा सकता है, यदि उसका धार्मिक विश्वास इसकी अनुमति नही देता है।
चर्च ऑफ गॉड इन इंडिया बनाम के.के.आर.एम.सी. वेलफेयर एजुकेशन, 2000, सुप्रीमकोर्ट
अभिनिर्धारित:- अनुच्छेद 25 एवंम 26 के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग करते समय किसी व्यक्ति को ध्वनि प्रदूषण फैलाने या अन्य व्यक्तियों की शांति भंग करने का अधिकार नही है।
जावेद बनाम स्टेट ऑफ केरल, 2003, सुप्रीमकोर्ट
अभिनिर्धारित:- हरियाणा पंचायत राज्य अधिनियम द्वारा यह उपबंध किया गया था कि पंचायत सदस्यों के पद के चुनाव के लिये वे लोग निर्हरित होंगे, जिनके दो से अधिक बच्चे थे। उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि यह उपबंध अनुच्छेद 25 का उल्लंघन नही करता है।
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राज्य की समस्त कालिक शक्तियां {अनुच्छेद 25(2)}:-
- अनुच्छेद 25(2) समस्त कालिक उपबंध है। यह राज्य पर कोई कर्तव्य अधिरोपित नही करता है। यह विद्यमान विधि एवंम नवीन विधि दोनों से सम्बंधित है।
- अनुच्छेद 25(2) राज्य को निम्न हेतु विधि बनाने को समर्थ करती है-
- धार्मिक आचरण से सम्बंधित किसी आर्थिक, वित्तिय, राजनीतिक, या अन्य लौकिक क्रियाकलाप को विनियमित या निर्बन्धित करना है;
- सामाजिक कल्याण और सुधार या सार्वजनिक प्रकार की हिंदुओं की धार्मिक संस्थाओं को हिंदुओं के सभी वर्गों ओर अनुभागों के लिये खोलना।
- अनुच्छेद 25(2) में 2 स्पष्टीकरण सल्लङ्गन है। वे निम्नवत हैं-
- कृपाण धारण करना और लेकर चलना सिक्ख धर्म के मानने में शामिल है।
- अनुच्छेद 25(2) ‘हिन्दू’ शब्द को व्यापक अर्थो में सम्मिलित किया गया है। इसके अंतर्गत सिक्ख, जैन एवंम बौद्ध धार्मिक संस्थाएँ शामिल हैं।
धार्मिक कार्य के प्रबंध की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 26):-
- अनुच्छेद 26 धार्मिक सम्प्रदाय या उसके किसी अनुभाग के मूल अधिकारों के सम्बंध में है। अतः यह अधिकार व्यक्तियों को नागरिको के रूप में उपलब्ध नही है।
- अनुच्छेद 26 के अंतर्गत मूल अधिकार निम्न के अधीन है:-
- लोक व्यवस्था;
- नैतिकता;;
- स्वास्थ्य।
- अनुच्छेद 26 के अंतर्गत धार्मिक सम्प्रदाय या उसके किसी भाग को निम्न मूल अधिकार प्राप्त हैं-
- धार्मिक और पूर्व प्रयोजनो के लिये संस्थाओं की स्थापना और पोषण करने का अधिकार;
- अपने धार्मिक कार्यों का प्रबंध करने का अधिकार;
- जंगम ओर स्थावर सम्पति के अर्जन ओर स्वामित्व का अधिकार;
- सम्पति का विधि के अनुसार प्रशासन करने का अधिकार।
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किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिये करो के संदाय के बारे में स्वतंत्रता (अनुच्छेद 27):-
- अनुच्छेद 27 की प्रकृति सकारात्मक है। इसका संरक्षण नागरिको एवंम गैर नागरिको दोनों को प्राप्त है।
- किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक सम्प्रदाय की अभिवृद्धि के व्यय हेतु राज्य कर अधिरोपित कर सकता है । कोई भी नागरिक ऐसे कर का संदाय करने या न करने के लिये स्वतंत्र है। ऐसे करो का संदाय करने के लिये किसी को भी विवश नही किया जा सकता है।
कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता (अनुच्छेद 28) :-
- राज्य निधि से पोषित किसी शिक्षण संस्थान में कोई धार्मिक शिक्षा नही दी जा सकती है । {अनुच्छेद 28(1)}
- अनुच्छेद 28(1) किसी ऐसे शिक्षण संस्थान को लागू नही होगा जो किसी धर्मस्व या न्यास के अधीन स्थापित हुआ है, (यदि ऐसा न्यास या धर्मस्व धार्मिक शिक्षा दिये जाने की अपेक्षा करता)। इस बात से कोई प्रभाव नही पड़ेगा कि ऐसा शिक्षण संस्थान राज्य द्वारा प्रशासित होता है। {अनुच्छेद 28(2)}
- राज्य से मान्यता प्राप्त या राज्य निधि से सहायता प्राप्त किसी शिक्षण संस्थान में या उससे संलग्न किसी स्थान में उपस्थित होने वाले किसी व्यक्ति को ऐसी संस्था में दी जाने वाली धार्मिक उपासना में भाग लेने हेतु बाध्य नही किया जायेगा। {अनुच्छेद 28(3)}
अनुच्छेद 28(3) एक अपवाद स्वीकार करता है। अपवाद का आधार सहमति है। अतः ऐसे व्यक्ति से उपस्थित रहने की अपेक्षा की जा सकती है, जिसने इस हेतु पहले ही सहमति दे दी हो।अवयस्क के मामले में संरक्षक की अनुमति वैध होगी।
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