मुसलमानों के भारत आने से पहले की जब हिन्दू (Hindu) शब्द का प्रयोग एक धर्म के मानने वाले लोगो के लिए नही होता था, अपितु hindu शब्द का प्रयोग प्रादेशिकता {अर्थात एक जगह पर रहने वाले लोगो को हिन्दू माना जाता था } | भारत में रहने वाले सभी व्यक्तियों को हिन्दू माना जाता था | उस समय हिन्दू शब्द किसी धर्म का प्रतीक नही था, अपितु राष्ट्रीयता का प्रतीक था | {hindu law in hindi}
प्राचीन काल में किस व्यक्ति को हिन्दू माना जाता था :-
मुसलमानों के भारत आने से पहले की जब हिन्दू (Hindu) शब्द का प्रयोग एक धर्म के मानने वाले लोगो के लिए नही होता था, अपितु हिन्दू शब्द का प्रयोग प्रादेशिकता {अर्थात एक जगह पर रहने वाले लोगो को हिन्दू माना जाता था } | भारत में रहने वाले सभी व्यक्तियों को हिन्दू माना जाता था | उस समय हिन्दू शब्द किसी धर्म का प्रतीक नही था, अपितु राष्ट्रीयता का प्रतीक था |
ऐसा माना जाता है की hindu शब्द का प्रयोग ग्रीको के आने के साथ साथ शुरू हुआ | ग्रीक लोग सिन्ध नदी की घाटी में रहने वाले लोगो को “इन्डोई” कहते थे | धीरे धीरे इस शब्द का प्रयोग सिन्ध नदी की घाटी से परे रहने वाले लोगो के लिए भी होने लगा |
सिन्ध नदी की घाटी में रहने वाले व्यक्तियों को मुसलमानों ने भी हिन्दू का नाम दिया | मुसलमान राज्य स्थापित होते होते हिन्दू शब्द न ही राष्ट्रीयता का प्रतीक रह गया और न ही प्रादेशिकता का | हिन्दू शब्द का प्रयोग एक मत के लोगो को मानने वाले लोगो के लिए होने लगा | वे सब जो हिन्दू धर्म को मानते थे हिन्दू कहे जाने लगे | अंग्रेजी राज्य के स्थापित होने पर भी “हिन्दू” शब्द का प्रयोग इसी रूप में होता रहा |
परन्तु जैसे जैसे हिन्दू शब्द का विकास हुआ उसके साथ एक विचित्र बात यह हुई की हिन्दू शब्द का प्रयोग हिन्दू धर्म को मानने वाले लोगो के लिए तो होता रहा, परन्तु यह आवश्यक नही रह गया की हिन्दू वही व्यक्ति कहलायेगा जो हिन्दू धर्म का पालन करता है |
भारतीय विधि के अनुसार हिन्दू(hindu) कौन है :-
इस विषय को आसानी से समझने के लिए हम इसको 3 भागो में विभक्त कर सकते है जो की निम्म्न्वत है :-
1. वे व्यक्ति जो धर्मतः हिन्दू, जैन,बौद्ध या सिक्ख है;
2. वे व्यक्ति जो हिन्दू, जैन, बौद्ध या सिक्ख माता पिता की संतान है या माता-पिता में से कोई एक हिन्दू है उसकी संताने है;
3. वे व्यक्ति जो मुसलमान, इसाई, पारसी या यहूदी नही है |
दोस्तों दुसरे शब्दों में कहे तो कह सकते है की उक्त लोगो पर हिन्दू विधि लागु होती है | चलिए इन लोगो के बारे में एक एक करके समझते है |
1. ऐसे व्यक्ति जो धर्मतः हिन्दू, जैन, बौद्ध या सिक्ख है :-
इस वर्ग को भी हम श्रेणियों में विभाजित कर सकते है जो की निम्नवत है :-
a. जो जन्म से धर्म द्वारा हिन्दू, जैन, बौद्ध या सिक्ख है; और
b. जो सिक्ख, बुद्ध या जैन संपरिवर्तन(conversion) या प्रतिसंपरिवर्तन(reconversion) द्वारा है |
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a. हिन्दू धर्म:-
साधारण भाषा में बोले की हिन्दू कौन है तो हम कह सकते है की जो प्रव्यंजना(Profession) या आचरण द्वारा हिन्दू धर्मं का पालन करता है वह व्यक्ति हिन्दू है |
हिन्दू धर्म बहुत ही विविधता से पूर्ण है इसलिए उसकी यथावत रूप से व्याख्या की जाना या उसकी परिभाषा देना बहुत ही कठिन है | किन्तु बहुत लोगो ने हिन्दू धर्म को समझाने की कोशिश की है | हिन्दू धर्म की वर्तमान स्थिति को भी समझने की कोशिश करेंगे लेकिन सबसे पहले इसकी एतिहासिक स्थिति समझने की कोशिश करते है जो हमे वर्तमान स्थिति को समझाने में सहायक होगी |
पहले सनातन धर्म हुआ करता था जो हमे परब्रह्म की प्राप्ति या मोक्ष की प्राप्ति या आत्मा की मुक्ति के अनेक साधन बताता था और इसी परब्रह्म की प्राप्ति आदि के लिए हम अनुष्ठान, हवन, पूजा आदि करते थे | हमारे यहाँ यह मानना था की अगर हमे अपनी आत्मा को मुक्त करना है तो हमे भगवान की पूजा करनी होगी और उनमे विश्वास करना होगा |
आर्यों से आने से पूर्व भारत में कोई वर्ण व्यवस्था नही थी भारत में सभी लोग एक सामान थे और सभी लोग एक ही धर्म को मानते थे | आर्यों के आने के पूर्व भारत में वर्ण व्यवस्था आई और उन्होंने समाज को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र को समाज में विभाजित किया |
उनके अनुसार ब्राह्मण का काम पूजा करना, अनुष्ठान करना, | क्षत्रियों का काम देश की रक्षा करना व वैश्यों का काम व्यापार करना बताया | उन्होंने शूद्रों को कोई अधिक अधिकार नही दिए उनके अनुसार शुद्र पूजा नही कर सकते थे शिक्षा प्राप्त नही कर सकते थे वह सिर्फ सेवा करते थे ब्राह्मण, क्षत्रियों और वेश्यों की |
हमारे सनातन धर्म में सही मायने में जो विरोधाभास आया वह इस वर्ण व्यवस्था के कारन आया | इन लोगो के अनुसार hindu धर्म में कोई मास-मदिरा का सेवन नही करेगा | जो लोग इन सब चीजों का सेवन करते थे वह राक्षस की श्रेणी में आते थे और वह सनातन धर्म में नही आते थे | लेकिन हम कई पौराणिक कथाएं देखेंगे तो राक्षस भी भगवान की पूजा करते हुए हमे मिलेंगे और भगवान से वरदान प्राप्त करते हुए दिखेंगे |
हिन्दू या सनातन इन दोनों ही शब्दों का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है क्योंकि अगर हम वेदों और पुराणों को पढे तो हमे कुछ अलग ही प्रकार की जानकारी मिलती है और अगर हम अपने मानव इतिहास को देखें तो हमे कुछ और ही जानकारी मिलती है |
इसलिये हमे इन चकरो में नही पड़ना है और सिर्फ अपनी जानकारी के लिए इन सब चीजों को समझना है | लेकिन वर्तमान में हिन्दू व सनातन धर्म को एक ही माना जाने लगा और यह कहा जाता है की यह दोनों एक ही शब्द है |
अब एक प्रश्न ये उठता है की कोई व्यक्ति कब तक हिन्दू माना जाता है अगर वह मास मदिरा आदि का सेवन करने या हिन्दू धर्म के कर्मो का पालन करना बंद कर देता है क्या तब भी वह हिन्दू है ? तो इस बात को हम प्रीवी काउंसिल के एक निर्णय द्वारा समझ सकते है | जो की निम्नवत है :-
रानी भगवान कौर बनाम जे. सी. बोस, 1909 (प्रीवी काउंसिल)
अभिनिर्धारित:- प्रीवी काउंसिल द्वारा अपने इस निर्णय द्वारा यह बताया गया की हिन्दू धर्म के मूल सिद्धांतो से विमुख होने या विसम्मत होने या कट्टर हिन्दू धर्म के आचरण को छोड़ देने से, जैसे की पश्चिमी ढंग से रहने में, या हिन्दू धर्म की निंदा करने, या गाय का मांस खाने मात्र से कोई व्यक्ति अहिंदू नही हो जाता है | संक्षेप में कहे तो, जब तक हिंदुत्व का अंकुर उसमे रहेगा वह हिन्दू ही रहेगा | यह अंकुर उसके द्वारा दूसरा धर्म स्वीकार करने पर ही समाप्त होगा |
हिन्दू धर्म के अनेकानेक रूप है, हिन्दू धर्म के इतने पंथ, उपपंथ, संप्रदाय, उप-सम्प्रदाय है, हिन्दू धर्म में इतनी विभिन्नता है, परब्रह्म की प्राप्ति के इतने अधिक मार्ग है की हिन्दू धर्म के अनुयायियों का वर्गीकरण एक असंभव प्रसास होगा |
लेकिन हिन्दू धर्म की एक खास बात यह है की प्रत्येक पंथ, उपपंथ, संप्रदाय, उपसंप्रदाय का उद्देश्य एक ही है परब्रह्म की प्राप्ति | इसलिए हम संक्षेप में यह कह सकते है की यदि कोई भी व्यक्ति हिन्दू धर्म के किसी भी पंथ, संप्रदाय या हिन्दू धर्म की किसी शाखा का अनुयायी या अनुगामी है, तो हम उसे धर्मतः हिन्दू मानेंगे |
b. कब व्यक्ति संपरिवर्तन और प्रतिसंपरिवर्तन द्वारा हिन्दू कहलायेगा :-
संपरिवर्तित व्यक्ति वह है जो अपना धर्म त्याग कर दूसरा धर्म स्वीकार कर लेता है | hindu धर्म के त्यागने मात्र से कोई व्यक्ति अन्य धर्मावलम्बी नही बन जायेगा | ऐसा व्यक्ति नास्तिक हो सकता है परन्तु अहिंदू नही | इसी भांति किसी अन्य धर्म का व्यक्ति हिन्दू धर्म की प्रव्यंजना करने मात्र से या हिन्दू धर्म में आस्था रखने मात्र से कोई हिन्दू नही हो जाता है | जैसे एक इसाई हिन्दू धर्म और दर्शन का इतना प्रशंसक हो जाता है की वह हिन्दू धर्म को मानने लगता है, प्रव्यंजना करने लगता है और हिन्दू मंदिरों में जाकर पुजा पाठ करने लगता है, तो भी वह हिन्दू नही बन जायेगा | वह हिन्दू तब ही होगा जबकि धर्म संपरिवर्तन द्वारा हिन्दू हो जाये |
धर्म परिवर्तन द्वारा हिन्दू बनने के लिए सिर्फ एक ही मार्ग है वह अनुष्ठान द्वारा हिन्दू धर्म ग्रहण करना | किन्तु उच्च्च्तम न्यायायलय ने अपने अनेको वाद में इस बात को नकारते हुए एक सिद्धांत प्रतिपादित किया जो की निम्नवत है :-
दुर्गाप्रसाद बनाम सुदर्शन स्वामी, 1940, मद्रास हाईकोर्ट
अभिनिर्धारित :- कोई भी व्यक्ति अपनी हिन्दू बनने की इच्छा व्यक्त करके हिन्दू की तरह जीवन व्यतीत करता है और जिस जाती, मत, संप्रदाय या पंथ में वह सम्मिलित हुआ है, उसने उसे अपना सदस्य मान लिया है तो वह हिन्दू बन जाता है | ऐसी स्थिति में धर्म परिवर्तन के किसी भी अनुष्ठान को पूरा करना या कोई शुद्धिकरण करना आवश्यक नही है |
इस बात से यह तो सिद्ध हो जाता है की किसी व्यक्ति ने हिन्दू धर्म को स्वेच्छा से अगर अपना लिया है और हिन्दुओं ने उसे अपना सदस्य स्वीकार कर लिया है तो वह हिन्दू कहलायेगा, चाहे उसने धर्म परिवर्तन का कोई अनुष्ठान पूर्ण न किया हो |
यह बात तथ्यहीन है की धर्म परिवर्तन करने वाला व्यक्ति किस वर्ण का सदस्य है | यह भी आवश्यक नही है की उसके द्वारा कट्टरता से hindu धर्म का पालन किया जाए | सत्य बात तो यह है की यह भी सिद्ध करने की आवश्यकता नही है की वह हिन्दू धर्म का पालन करता है |
इसी प्रकार अगर कोई व्यक्ति संपरिवर्तन द्वारा अहिंदू हो जाए तो वह भी प्रतिसंपरिवर्तन द्वारा हिन्दू हो सकता है | ध्यान देने योग्य बात यह है की प्रतिसंपरिवर्तन के लिए यह आवश्यक नही है की वह व्यक्ति पुनः उसी जाति, संप्रदाय पंथ या वर्ण में सम्मिलित हो जिसे छोड़कर उसने अहिंदू धर्म स्वीकार किया था |
गुंटूर मेडिकल कॉलेज बनाम मोहन राव, 1976 (एस. सी.)
मामले के तथ्य :- इस मामले में एक व्यक्ति जो की हरिजन समाज से सम्बंधित था उसने धर्म परिवर्तन द्वारा इसाई धर्म अपना लिया था और फिर उसके कुछ समय पश्चात् प्रतिसंपरिवर्तन द्वारा हिन्दू धर्म अपना लिया तो उच्चतम न्यायालाय के समक्ष प्रश्न यह था की क्या वह व्यक्ति और उसकी संताने पुनः उसी हरिजन जाति के सदस्य कह लायें जायेंगे जिसके इसाई होने से पूर्व थे ?
अभिनिर्धारित :- न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया की वह व्यक्ति और उसकी संताने उसी जाति के सदस्य तभी कहलाये जायंगे जबकि वह जाति उसे और उसकी संतानों को अपना सदस्य स्वीकार कर ले |
क्या कोई व्यक्ति घोषणा द्वारा भी हिन्दू बन सकता है :-
इस बात को हम केरल उच्च न्यायालय के एक वाद से समझ सकते है |
मोहनदास बनाम देवासन बोर्ड, 1975, केरल उच्च न्यायालय
मामले के तथ्य :- इस मामले में जेसुदास नामक एक कैथोलिक इसाई कई वर्षो से एक हिन्दू मंदिर में भक्ति संगीत देता था | कुछ समय उपरांत कुछ हिन्दुओं ने उन्हें मंदिर में आने से यह कह कर रोका की वह हिन्दू नही है, अतः वेदी के पास जाकर संगीत नही गा सकते है | जेसुदास ने यह घोषणा पत्र न्यायलय में जाकर दिया की, “मैं घोषणा करता हूँ की मैं हिन्दू हूँ |”
अभिनिर्धारित :- न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया की जेसुदास एक हिन्दू है |
अतः निर्णयों के आधारों पर हम कह सकते है की निम्न स्थितियों में कोई भी अहिंदू संपरिवर्तन द्वारा हिन्दू हो जाता है :-
1. यदि वह संपरिवर्तन के अनुष्ठान द्वारा हिन्दू धर्म अंगीकार करता है |
2. यदि वह इमानदारी से यह इच्छा व्यक्त करता है की वह हिन्दू हो गया है और वह बतौर हिन्दू रहता है तथा जिस वर्ग, जाति या संप्रदाय में वह सम्मिलित हुआ है वह उसे अपना सदस्य स्वीकार करता है |
3. यदि वह घोषणा करता है की वह हिन्दू है और वह बतौर हिन्दू रह रहा है |
2. किसी संतान के माता पिता में से कोई एक व्यक्ति हिन्दू है तो क्या वह संतान हिन्दू होगी या नही :-
इस सम्बन्ध में संहिताबद्ध हिन्दू विधि के पूर्व की स्थिति इतनी स्पष्ट नही है | संहिताबद्ध हिन्दू विधि में कहा गया है की कोई अपत्य(बालक) धर्मज या अधर्मज, जिसके माता-पिता से कोई एक व्यक्ति धर्मतः हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिक्ख हो और उस जनजाति, समुदाय, समूह या कुटुंब के सदस्य के रूप में पला हो जिसका वह माता या पिता सदस्य है या था, हिन्दू होगा | इस भांति निम्न दो शर्तों का पूर्ण होना आवश्यक है :-
1. बालक या बालिका के जन्म के समय माता-पिता में से एक हिन्दू है, और
2. बालक या बालिका उस जनजाति, समुदाय, समूह,या कुटुम्ब के समय के रूप में पला हो जिसका हिन्दू माता या पिता सदस्य है या नही |
ट्रावनकोर की नाडर जाति में कोई भी पुरुष अहिंदू स्त्री से विवाह कर सकता है | विवाह के उपरांत उस स्त्री से उत्पन्न संतान और वह स्त्री हिन्दू मानी जाती है |
इस बात को हम एक वाद के माध्यम से समझ सकते है |
राम परगास सिंह बनाम धानव, 1942, पटना उच्च न्यायालय
अभिनिर्धारित :- इस वाद में न्यायालय द्वारा यह कहा गया की धर्म परिवर्तन द्वारा मुसलमान हो जाने वाली हिन्दू नर्तकियों की संताने जिनका लालन-पालन उनके नाना नानी ने हिन्दू की भांति किया है , हिन्दू है |
3. वे व्यक्ति जो मुसलमान, इसाई, पारसी या यहूदी नही है :-
अब दोस्तों एक प्रश्न यह है कि हमने जाना की मुसलमान, यहूदी, पारसी और इसाई हिन्दू नही है तो जो लोग इनमे से कोई नही है और हिन्दू भी नही है तो वह क्या हिन्दू माने जायेंगे या नही | इसका जबाब है की संहिताबद्ध हिन्दू विधि के अनुसार वह भी हिन्दू माने जायेंगे |