“CrPC Sections 70-81: A Comprehensive Guide to Warrants of Arrest”

आज हम जानेंगें की Warrant of Arrest under Crpc/गिरफ्तारी का वारण्ट (Sec 70 to 81 Crpc) होता क्या है किसके द्वारा जारी किया जाता है और कब तक इसका प्रभाव बना रहता है | इस बारे में उपबंध Crpc Chapter 6 में किया गया है, जो कुछ इस प्रकार है :-

Table of Contents

गिरफ्तारी का वारण्ट/Warrant of Arrest under Crpc :- {Sec 70 to 81 Crpc}

सर्वप्रथम हम गिरफ्तारी के वारण्ट/Warrant of Arrest under Crpc में यह देखेगें कि गिरफ्तारी का/Warrant of Arrest under Crpc वारण्ट किसके द्वारा जारी किया जाता हैं, इसका प्ररूप कैसा होता है और यह कब तक प्रर्वतन में रहता है।

1) गिरतारी का वारण्ट/Warrant of Arrest under Crpc किसकेे द्वारा जारी किया जाता है, इसका प्ररूप कैसा होता है और इसकी अवधि होती है:- {धारा 70}

गिरफ्तारी का वारण्ट/Warrant of Arrest under Crpc न्यायालय द्वारा जारी किया जाएग तथा न्यायालय के पीठासीन अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित किया जाएगा। इस पर न्यायालय की मुद्रा अंकित होगी। गिरफ्तारी का वारण्ट लिखित होगा। यह निष्पादित हो जाने तक या निरस्त किए जाने तक प्र्रवर्तन में बना रहेगा।


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2) न्यायालय द्वारा वारण्ट, पर यह प्रष्ठांकन की प्रतिभूति लेकर गिरतार व्यक्ति को छोड दिया जाए :-{धारा 71}

वारण्ट दो प्रकार के होते है जमानतीय वारण्ट और अजमानतीय वारण्ट। वारण्ट जमानतीय होगा या अजमानतीय यह न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है। धारा 71 जमानतीय वारण्ट का प्रावधान करती है।

वारण्ट जारी करने वाला न्यायालय वारण्ट पर यह पृष्ठांकन कर सकता है कि यदि गिरफ्तार व्यक्ति अपनी उपस्थिति का बंधपत्र निष्पादित करता है तो प्रत्याभूति लेकर उसे अभिरक्षा से मुक्त कर दिया जाए। ऐसे पृष्ठांकन में निम्न बाते होगीं-

a) प्रतिभूओं की संख्या
b) बंधपत्र की रकम
c) वह समय जब न्यायालय के समक्ष उसे उपस्थित होना है।

3) न्यायालय द्वारा जारी वारण्ट किसको निर्देशित होगा :-{धारा 72}

गिरफ्तारी का वारण्ट सामान्यतः पुलिस अधिकारी को निर्देशित होता है। किन्तु तत्काल निष्पादन आवश्यक होने पर तथा तत्काल पुलिस अधिकारी उपलब्ध न होने पर वारण्ट किसी अन्य व्यक्ति को भी निर्देशित किया जा सकता है।

Sec 70 to 81 Crpc
Sec 70 to 81 Crpc

4) न्यायालय द्वारा जारी वारण्ट किसी भी व्यक्ति {अर्थात पुलिस अधिकारी से भिन्न व्यक्ति} को निदिष्ट हो सकेगें :-{धारा 73}

धारा 73 के अन्तर्गत मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी का न्यायिक मजिस्ट्रेट अपनी स्थानीय अधिकारिता के भीतर निम्न की गिरफ्तारी हेतु किसी भी व्यक्ति को वारण्ट निर्देशित कर सकता है-

  • उद्घोषित अपराधी;
  • निकल भागा दोषसिद्ध;
  • अजमानतीय अपराध का ऐसा व्यक्ति जो गिरफ्तारी से बच रहा है।

ऐसा व्यक्ति जिसको इस प्रकार वारण्ट निर्देशित किया गया है, वारण्ट को लिखित रूप में अभीस्वीकार करेगा और यदि वह व्यक्ति, जिसकी गिरफ्तारी के लिए वारण्ट जारी किया गया है, उसके भार साधन के अधीन किसी भूमि में है या प्रवेश करता है तो वह वारण्ट का निष्पादन करके गिरफ्तार व्यक्ति को वारण्ट सहित निकटतम पुलिस थाने में सौंप देगा।


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5) वारण्ट का निष्पादन किसी अन्य पुलिस अधिकारी द्वारा किया जाना :- {धारा 74}

न्यायालय द्वारा किसी वारण्ट को किसी पुलिस अधिकारी को निर्देशित किया जाता है और वह पुलिस अधिकारी उस वारण्ट पर किसी अन्य पुलिस अधिकारी का नाम पृष्ठांकित कर देता है तो उस अन्य पुलिस अधिकारी द्वारा भी उस वारण्ट का निष्पादन किया जा सकता है।

6) पुलिस अधिकारी द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को वारण्ट के सार की सूचना देना :-{धारा 75 Crpc}

धारा 75 वारण्ट के निष्पादक को {चाहे पुलिस अधिकारी हो या कोई अन्य व्यक्ति} वारण्ट का सारांश बताने के कर्तव्य के अधीन करती है। सारांश उस व्यक्ति को बताया जाएगा जिसकी गिरफ्तारी अपेक्षित है।

७) गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष अविलम्ब पेश करना :- { धारा 76 सपठित धारा 57-D, अनुच्छेद 22(2)}

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 76 और धारा 57 एक साथ पठनीय है। इन दोनों ही धाराओं में एक ही बात कही गई है कि गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अनावश्यक विलम्ब के बिना न्यायालय के समक्ष पेश किया जाएगा और ऐसा विलम्ब किसी भी दशा में गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोड़कर 24 घण्टे से अधिक नही होगा।

किंतु धारा 56 और 76 में एक महत्वपूर्ण अंतर है जो कि यह है कि धारा 56 ऐसे व्यक्ति की बात करती है जिसे वारण्ट के बिना गिरफ्तार किया गया है और धारा 76 ऐसे व्यक्ति की बात करती है जिसे वारण्ट के अधीन गिरफ्तार किया गया है।

दूसरे शब्दों में कहे तो व्यक्ति चाहे वारण्ट के बिना गिरफ्तार किया गया हो या वारण्ट के अधीन। पुलिस अधिकारी का कर्तव्य होगा कि गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घण्टे के भीतर {यात्रा के समय को छोड़कर} मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करे।

8) न्यायालय द्वारा जारी वारण्ट का निष्पादन कहाॅ तक कराया जा सकता है :-{धारा 77 सपठित धारा 48}

दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 77, धारा 48 के साथ पठनीय है। धारा 77 एवं धारा 48 में महत्वपूर्ण अंतर यह है कि धारा 77 वारण्ट के अधीन गिरफ्तारी की बात करती है और धारा 48 बिना वारण्ट के गिरफ्तारी की बात करती है।

किंतु दोनों धाराओं में यह समानता है कि चाहे गिरफ्तारी वारण्ट के अधीन की जानी हो या बिना वारण्ट के, पुलिस अधिकारी द्वारा भारत में के किसी भी स्थान से गिरफ्तारी की जा सकती है।

अर्थात् दूसरे शब्दों में कहें तो गिरफ्तारी के वारण्ट का निष्पादन भारत में के किसी भी स्थान में किया जा सकता है।

Note :- धारा 78, 79, 80 तथा धारा 81 स्थानीय अधिकारिता के बाहर वारण्ट के निष्पादन की प्रक्रिया से सम्बन्धित है।

9) न्यायालय द्वारा जारी गिरफ्तारी के वारण्ट का निष्पादन उस न्यायालय की स्थानीय अधिकारिताओं से बाहर किया जाना हो तब प्रक्रिया :-{धारा 78}

धारा 78 के अनुसार जब वारण्ट का निष्पादन उसे जारी करने वाले न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता से बाहर किया जाना है, तब वह न्यायालय ऐसा वारण्ट;

  • ऐसे किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट; या
  • जिला पुलिस अधीक्षक; या
  • पुलिस आयुक्त

को भेजेगा जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर वारण्ट को निष्पादन किया जाना है और ऐसा मजिस्ट्रेट या अधीक्षक या आयुक्त अपना नाम पृष्ठांकित करने के पश्चात् उस वारण्ट का निष्पादन कराएगा।
वारण्ट जारी करने वाला न्यायालय गिरफ्तारी के वारण्ट के सथ ऐसे दस्तावेज भी भेजेगा जो वारण्ट का निष्पादन करने वाले अधिकारी को यह अभिनिश्चित करने में समर्थ बनाने के लिए पर्याप्त है कि गिरफ्तार व्यक्ति की जमानत मंजूर की जाए या नहीं।

10) जब न्यायालय द्वारा किसी गिरफ्तारी के वारण्ट को किसी पुलिस अधिकारी को निदिष्ट किया जाता है और यदि पुलिस अधिकारी को उस वारण्ट का निष्पादन उसे जारी करने वाले न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता से बाहर किया जाना हो, तब प्रक्रिया :- {धारा 79}

धारा 79 यह उपबंधित करती है कि जब न्यायालय द्वारा गिरफ्तारी के वारण्ट को किसी पुलिस अधिकारी को निर्दिष्ट किया जाता है और यदि उस पुलिस अधिकारी को उस वारण्ट का निष्पादन उसे जारी करने वाले न्यायालय की स्थानीय अधिकारिता के बाहर किया जाना है तब वह पुलिस अधिकारी उस वारण्ट को पृष्ठांकन के लिए ऐसे कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी से अनिम्न पंक्ति के पुलिस अधिकारी के पास ले जाएगा, जिसकी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर उस वारण्ट का निष्पादन किया जाना है।

ऐसे मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी का उस वारण्ट पर अपने नाम का पृष्ठांकन करने से उस पुलिस अधिकारी को, जिसको वारण्ट निर्दिष्ट था, उस वारण्ट के निष्पादन का पर्याप्त प्राधिकार प्राप्त होगा। यदि उस पुलिस अधिकारी द्वारा यह अपेक्षा की जाती है कि स्थानीय पुलिस उस वारण्ट के निष्पादन में उसकी सहायता करे तो स्थानीय पुलिस द्वारा ऐसे पुलिस अधिकारी की वारण्ट के निष्पादन में सहायता की जाएगी।

परंतु यदि यह विश्वास करने का पर्याप्त कारण हो कि पृष्ठांकन प्राप्त करने में होने वाले विलम्ब के कारण वारण्ट का निष्पादन नहीं हो सकेगा तो वह पुलिस अधिकारी ऐसे पृष्ठांकन के बिना भी उस वारण्ट का निष्पादन करा सकता है।

11) जब गिरफ्तारी के वारण्ट का निष्पादन उस जिले से बाहर किया जाता है जिसमें उसे जारी किया गया था तब गिरफ्तारी की प्रक्रिया :-{धारा 80}

धारा 80 के अनुसार जब गिरफ्तारी के वारण्ट का निष्पादन उस जिले से बाहर किया जाता है जिसमें वह जारी किया गया था तब गिरफ्तार व्यक्ति को उस जिले के {जिसमें गिरफ्तारी हुई है} कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस आयुक्त या पुलिस अधीक्षक के समक्ष पेश किया जाएगा।

किंतु यदि निम्नलिखित परिस्थितियाॅ विद्यमान है तो गिरफ्तार व्यक्ति को उस जिले के {जिसमें गिरफ्तारी हुई है} कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस आयुक्त या पुलिस अधीक्षक के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जाएगा। परिस्थितियाॅ निम्नवत् हैः-

  • यदि वारण्ट जारी करने वाला न्यायालय गिरफ्तारी के स्थान से 30 किमी0 के भीतर है तो गिरफ्तार व्यक्ति को वारण्ट जारी करने वाले न्यायालय के समक्ष ही प्रस्तुत किया जाएगा; या
  • यदि वारण्ट जारी करने वाला न्यायालय उस जिले के {जिसमें गिरफ्तारी हुई है} कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस आयुक्त या पुलिस अधीक्षक से अधिक निकट है तो गिरफ्तार व्यक्ति को वारण्ट जारी करने वाले न्यायालय के समक्ष ही पेश किया जाएगा; या
  • यदि पुलिस अधिकारी द्वारा गिरफ्तार व्यक्ति से धारा 71 के अधीन पर्याप्त प्रतिभूति ले ली है कि गिरफ्तार व्यक्ति विनिर्दिष्ट समय व तारीख पर वारण्ट जारी करने वाले न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत हो जाएगा तो उस व्यक्ति को उस जिले के {जिसमें गिरफ्तारी हुई है} कार्यपाल मजिस्ट्रेट या पुलिस आयुक्त या पुलिस अधीक्षक के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जाएगा।

12) जब वारण्ट को उस जिले के बाहर निष्पादित किया जाता है जिसमें वह जारी किया गया था और वारण्ट के निष्पादन में किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तो यदि गिरफ्तार व्यक्ति को वारण्ट जारी करने वाले न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है तब गिरफ्तार व्यक्ति को उस जिले के {जिसमें गिरफ्तारी हुई है} कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस आयुक्त या पुलिस अधीक्षक के समक्ष पेश किया जाएगा। तब ऐसे मजिस्ट्रेट या अधीक्षक या आयुक्त द्वारा की जाने वाली प्रक्रिया :-{धारा 81}

धारा 81 के अनुसार ऐसा कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को वारण्ट जारी करने वाले न्यायालय के समक्ष अभिरक्षा में भेजने का निर्देश देगा।

परंतु यदि अपराध जमानतीय है और गिरफ्तार व्यक्ति जमानत देने के लिए तैयार व रजामंद है या धारा 71 के अधीन वारण्ट जारी करने वाले न्यायालय द्वारा अपेक्षित प्रतिभूति देने के लिए, गिरफ्तार व्यक्ति तैयार व रजामंद है तो, वह मजिस्ट्रेट या पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त ऐसी जमानत या प्रतिभूति लेगा और बंधपत्र को वारण्ट जारी करने वाले न्यायालय के समक्ष भेज देगा।

परंतु यदि अपराध अजमानतीय है तो ऐसा मजिस्ट्रेट या पुलिस अधीक्षक या पुलिस आयुक्त गिरफ्तार व्यक्ति को उस जिले के {जिसमें गिरफ्तारी हुई है} मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायाधीश के समक्ष भेजेगा और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या सेशन न्यायाधीश {धारा 437 द0प्र0सं0 के उपबंधों के अधीन रहते हुए} के लिए धारा 78(2) में निर्दिष्ट जानकारी और दस्तावेजों पर विचार करने के पश्चात् ऐसे व्यक्ति को जमानत पर छोड़ना विधिपूर्ण होगा।

Note :- धारा 437 द0प्र0सं0 यह उपबंध करती है कि अजमानतीय अपराध की दशा में कब जमानत ली जा सकेगी और कब नहीं।

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