आज हम जानेंगें धारा 12 और धारा 13 भारतीय साक्ष्य अधिनियम/Indian Evidence Act Sec 12 and Sec 13 के बारे में ये दोनों ही धाराएँ सिर्फ सिविल मामलो में लागु होती है | indian evidence act in hindi, judiciary exam
नुकसानी के लिए वादों में रकम अवधारित करने के लिए न्यायालय को समर्थ करने की प्रवृति रखने वाले तथ्य सुसंगत है :- (Indian Evidence Act Sec 12)
- धारा 12 भारतीय साक्ष्य अधिनियम केवल सिविल मामलों में लागू होती है |
- धारा 12 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार, उन वादों में जिनमे नुकसानी का दावा किया गया है और ऐसी नुकसानी न्यायालय द्वारा अधिनिर्णित {मालूम} की जाती है तो ऐसी स्थिति में कोई भी ऐसा तथ्य सुसंगत होगा जिससे न्यायालय की वह रकम अवधारित करने के लिए समर्थ हो जाए तथा जिससे न्यायालय को नुकसानी की रकम अवधारित करने में सहायता मिले |
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धारा 12 भारतीय साक्ष्य अधिनियम का द्रष्टान्त :-
उदाहरण के लिए A और B के बीच संविदा होती है कि B A को किसी विषय की 100 किताबे भेजेगा किन्तु B किताबे नहीं भेजता है जिससे संविदा भंग हो जाती है और A B पर वाद लाता है कि B के किताबे न भेजने से उसे नुकसान हुआ है उसे उस नुकसान की भरपाई हेतु नुकसानी दिलाई जाए | न्यायालय के सामने प्रश्न यह है कि नुकसानी कितनी दिलाई जाए यह पता नहीं है तो जो भी तथ्य यह निर्धारित करने में सहायता करते है कि A को कितनी नुकसानी दिलाई जाती है वह धारा 12 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत सुसंगत है |
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जबकि अधिकार या रूढ़ि प्रश्नगत है तब सुसंगत तथ्य :- (धारा 13 भारतीय साक्ष्य अधिनियम)
“जहाँ कि किसी अधिकार या रूढ़ि के बारे में प्रश्न है, वहां निम्नलिखित तथ्य सुसंगत है :-
- कोई सव्यवाहर जिसके द्वारा प्रश्नगत अधिकार या रूढ़ि , सृष्ट, दवाकृत, मान्यकृत, प्राख्यात या प्रत्यारव्यान की गई थी या जो उसके अस्तित्व से असंगत था |
- वे विशिष्ट उदहारण जिनमे वह अधिकार या रूढ़ि, दावाकृत, मान्यकृत या प्रयुक्त की गई थी या जिनमे उसका प्रयोग विवादग्रस्त था या प्रारव्यात किया गया था या उसका अनुसरण नहीं किया गया था |
धारा 13 यह उपबंधित करती है कि अगर न्यायालय के सामने यह प्रश्न आता है कि किसी अधिकार या रूढ़ि का अस्तित्व है या नहीं तो प्रश्नगत रूढ़ि या अधिकार को साबित करने के लिए धारा 13 दो सिध्दान्तो को प्रतिपादित करती है |
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पहला सिध्दांत ऐसे तथ्यो को इंगित करता है जो सम्वधित रूढ़ि या अधिकार के उद्भव अथवा सृष्टि तथा उसके पश्चातवर्ती इतिहास को दर्शाते है |
दूसरा सिध्दांत ऐसे तथ्यों के साक्ष्य को सुसंगत मानता है जो उन व्यावहारिक उदाहरणों को दर्शाते है जिनमे कि सम्बंधित रूढ़ि या अधिकार का अनुसरण किया गया था |
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धारा 13 जो दो सिध्दांतो को बताता है किसी प्रश्नगत अधिकार या रूढ़ि को साबित करने के लिए वह निम्नवत है :-
सर्वप्रथम धारा 13 जो किसी प्रश्नगत अधिकार या रूढ़ि को साबित करने के लिए जिन तथ्यों को सुसंगत मानता है वह तथ्य दो बातो पर निर्भय करता है |
a कोई सव्यवहार होना चाहिए |
b कोई विशिष्ट उदहारण होना चाहिए |
A. धारा 13 का प्रथम खण्ड प्रथम सिध्दांत को प्रतिपादित करता है जिसके अनुसार –
कोई सव्यवहार होना चाहिए जिसके द्वारा प्रश्नगत अधिकार या रूढ़ि –
1. सृष्ट हुई हो अर्थात उत्पन्न हुआ हो |
2. दवाकृत हुई हो अर्थात उसका दावा किया गया हो |
3. उपांतरित हुई हो अर्थात उसका उपांतरण {modified} हुई हो या जिस रूप से भी उससे दूसरे रूप में बदल गई |
4. मान्यकृत हुई हो अर्थात मान्यता मिली हो |
5. उसका या तो प्रारव्यान किया गया हो या प्रत्यारव्यान किया गया हो |
उसके अस्तित्व से असंगत हो अर्थात ऐसा कोई कृत्य हुआ हो जो प्रश्नगत रूढ़ि या अधिकार के अस्तित्व से असंगत हो |
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अगर किसी सव्यवहार के माध्यम से ऊपर बताई हुई बाते हुई हो तो माना जाएगा कि किसी प्रश्नगत अधिकार या रूढ़ि के संदर्भ में वह तथ्य सुसंगत है |
इस बात को समझने हेतु धारा 13 के द्रष्टान्त का संदर्भ लिया जा सकता है |
द्रष्टान्त
प्रश्न यह है कि क्या A का एक मीन क्षेत्र { अर्थात जहाँ मछली रहती है वह क्षेत्र जैसे मीनाशय या मछलियों का तालाब} पर अधिकार है |
एक सव्यवहार के रूप में निम्न कथन सुसंगत है
1. A के पूर्वजो को मीन क्षेत्र प्रदान करने वाला विलेख अर्थात A के पास एक विलेख है जिसके द्वारा वह मीनाशय A के पूर्वजो को प्रदान किया गया था अर्थात उस विलेख द्वारा A के अधिकार सृष्ट हो रहा है या सृजित हो रहा है |
2. A के पिता द्वारा उस मीनक्षेत्र का बंधक किया गया था अर्थात A के पिता ने उस मीनक्षेत्र का बंधक किसी अन्य व्यक्ति को किया था अर्थात उसने अपना अधिकार उपांतरित किया मतलब पहले A के पिता का उस मीनक्षेत्र पर स्वत्व था लेकिन अब किसी अन्य व्यक्ति का अधिकार भी सृष्ट हो गया था बंधक द्वारा |
3. A के पिता द्वारा उस बंधक से अनमोल पाश्चिक अनुदान अर्थात A के पिता ने बंधक धन का भुगतान करके उस बंधक को समाप्त कर दिया था और उस सम्पत्ति पर दोबारा से स्वत्व हासिल कर लिया था |
यह तीनो तथ्य एक सव्यवहार को घटित कर रहे है यानी की A के पूर्वजो द्वारा मीनक्षेत्र विलेख द्वारा प्राप्त होना फिर A के पिता द्वारा उस मीनक्षेत्र का बंधक करना और उसके पश्चात उस बंधक धन का सदाय करके मीनक्षेत्र का स्वत्व प्राप्त करना |
इसलिए यह तथ्य धार 13 के अंतर्गत सुसंगत है |
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B. कोई विशिष्ट उदाहरण होना चाहिए जिसके द्वारा प्रश्नगत अधिकार या रूढ़ि :-
1. दावाकृत हुई हो अर्थात उसका दावा किया गया हो |
2. मान्यकृत हुई हो अर्थात मान्यता मिली हो |
3. प्रयुक्त की गई थी या उस अधिकार का प्रयोग किया जाना विवादग्रस्त हो |
4. प्ररव्यात किया गया हो |
5. उसका अनुसरण नहीं किया गया हो अर्थात उस अधिकार का प्रयोग नहीं किया गया हो |
इस बात को समझने हेतु धारा 13 के द्रष्टान्त का संदर्भ लिया जा सकता है |
प्रश्न यह है कि A का एक मीन क्षेत्र पर अधिकार है |
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एक विशिष्ट उदाहरण के रूप में निम्न तथ्य सुसंगत है A के पिता ने उस मीन क्षेत्र पर अपने अधिकार का प्रयोग किया अर्थात उसमे काम किया या जब A के पिता उस मीन क्षेत्र पर अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे थे या काम कर रहे थे तो A के पड़ोसियों द्वारा उसके पिता को उस मीन क्षेत्र पर अपने अधिकार का प्रयोग करने से या काम करने से रोका था |
यह तथ्य एक विशिष्ट उदहारण के रूप में धारा 13 के अंतर्गत सुसंगत है क्योकि यह एक विशिष्ट उदहारण के द्वारा बता रहे है | जिससे यह दर्शित हो रहा है कि A का मिनक्षेत्र पर अधिकार है | क्योकि यह एक विशिष्ट उदहारण ही है कि A के पड़ोसियों द्वारा उसके पिता को रोका गया था उस मीन क्षेत्र पर काम करने से इसलिए यह धरा 13 के अंतर्गत सुसंगत है |
NOTE :- धारा 13 भी केवल सिविल वादों में लागू होती है |