आज हम जानेंगें सम्पति अंतरण अधिनियम के बारे में/Introduction to the Transfer of Property Act | किसी अधिनियम को पढने से पहले सबसे पहले कर्तव्य यह होता है की आप उस अधिनियम के बारे में जान ले की उस अधिनियम को बनाने का उद्देश्य क्या है तो आज हम उसी उद्देश्य के बारे में बात करेंगें |
Introduction to the Transfer of Property Act
1) सम्पत्ति अंतरण अधिनियम 1 जुलाई 1882 को प्रवर्तन में आया।
2) इस अधिनियम का विस्तार पंजाब राज्य के सिवाए सम्पूर्ण भारत पर है (यद्धपि इसके सिद्धांतों को साम्या के आधार पर सामान्यत: पंजाब में भी लागू किया जाता है) ।
3) यह एक केंद्रीय विधि है परंतु राज्य विधान मण्डलों द्वारा भी इसमें प्रक्रियात्मक संशोधन किए जा सकते हैं।
4) यह अधिनियम पूर्ण नहीं है। यह अधिनियम पक्षकारों के कार्य द्वारा किए गए सम्पति अंतरण से सम्बन्धित विधि के कतिपय भागों को परिभाषित और संशोधित करता है।
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सम्पति का अंतरण निम्न प्रकार से होता है :-
1) पक्षकारों के कार्य द्वारा
अ) वसीयती अंतरण
ब) गैर वसीयती अंतरण (जीवित व्यक्तियों के मध्य अंतरण)
ब-1) विक्रय (पूर्णहित का अंतरण)
ब-2) बंधक ( आंशिक हित अंतरण)
ब-3) पट्टा (आंशिक हित अंतरण)
ब-4) दान (पूर्ण हित अंतरण)
ब-5) विनिमय (पूर्ण हित अंतरण)
2) विधि के प्रवर्तन द्वारा जैसे कि उत्तराधिकार, दिवालिया, निष्पादन आदि।
4) निम्नलिखित अंतरण इस अधिनियम की परिधि में नहीं है-
अ) वसीयती अंतरण;
ब) विधि के प्रवर्तन द्वारा अंतरण;
स) न्यायालय के आदेश के अधीन अंतरण;
द) चल सम्पत्ति का विक्रय।
इस अधिनियम में कुल 8 अध्याय और 137 धाराएं हैं। अध्यायों का वर्गीकरण निम्नवत है-
अध्याय का क्रम | अध्याय का नाम | धाराएं |
1 | प्रारम्भिक | धारा 1-4 |
2 | पक्षकारों के कार्य द्वारा सम्पति अंतरण के विषय | धारा 5- 53 A |
3 | स्थावर सम्पति के विक्रयों के विषय में | धारा 54- 57 |
4 | स्थावर सम्पति के बंधकों के विषय मे (भार) | धारा 58 – 104 |
5 | स्थावर सम्पति के पट्टों के विषय में | धारा 105 – 117 |
6 | विनिमयों के विषय में | धारा 118 – 121 |
7 | दान के विषय में | धारा 122 – 129 |
8 | अनुयोज्य दावों के अंतरण के विषय में | धारा 130 – 137 |
अध्याय 2 (धारा 5 – 53 A) सम्पति के अंतरण से सम्बन्धित सामान्य सिद्धांतों का उपबंध करता है। यह अध्याय निम्न दो भागों में विभाजित है-
a) भाग A- चल एवं अचल दोनों प्रकार की सम्पतियों के अंतरण से सम्बन्धित सामान्य सिद्धांत; {Sec. 5 – 37}
b) भाग B- केवल अचल सम्पतियों के अंतरण से सम्बन्धित सामान्य सिद्धांत। {Sec. 38 – 53A}
धारा 2 के अनुसार मुस्लिम निजी विधि के सिद्धांतों को अध्याय 2 प्रभावित नहीं करता है। क्रमश: धारा 14 तथा धारा 129 के द्वारा निजी वक्फ तथा हिबा को सम्पति अंतरण अधिनियम की परिधि से बाहर रखा गया है।
धारा 4 यह घोषणा करती है कि इस अधिनियम के वे अध्याय और धाराएं जो संविदाओं से सम्बन्धित है भारतीय संविदा अधिनियम के भाग माने जांएगे।
इसके अतिरिक्त धारा 54 (Para 2 तथा Para 3), धारा 59, धारा 107 भारतीय रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1908 की अनुपूर्ति करती है।
धारा 3 :- र्निवचन खण्ड
धारा 3 र्निवचन खण्ड का उपबंध करती है जिसके अंतर्गत निम्न को परिभाषित किया गया है-
a) स्थावर सम्पत्ति ;
b) लिखत;
c) रजिस्ट्रीकृत;
d) भू-बद्ध
e) अनुयोज्य दावे;
f) किसी तथ्य की किसी व्यक्ति को सूचना;
g) अनुप्रमाणित।
स्थावर सम्पत्ति-
सम्पत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 3 के अुनसार ” स्थावर सम्पति के अंतर्गत खडा काष्ठ, उगती फसलें या घास नहीं आती हैं । ”
यह एक नकारात्मक परिभाषा है। इस परिभाषा से यह पर्याप्त रूप से इंगित नहीं होता है कि स्थावर सम्पति वास्तव में क्या है ?
साधारण उपखंड अधिनियम, 1897 की धारा 3(25) के अंतर्गत भी ‘स्थावर सम्पत्ति’ को परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार ” स्थावर सम्पति के अंतर्गत भूमि, भूमि से मिलने वाला कोई लाभ और भू- बद्ध वस्तुएं या भूमि से स्थायी रूप से संलग्न वस्तुऍ है। ” यह एक सकारात्मक परिभाषा है।
अत: सम्पत्ति अंतरण अधिनियम तथा साधारण उपखंड अधिनियम में परिभाषित स्थावर सम्पत्ति की परिभाषाओं को मिलाकर पढने पर इसकी पूर्ण परिभाषा निम्नवत प्राप्त होती है-
” स्थावर सम्पत्ति में शामिल है भूमि, भूमि से मिलने वाला लाभ तथा खडा काष्ठ, उगती फसल एवं घास को छोडकर भूमि से जुडी हुई सभी वस्तुऍ। ”
इसके अतिरिक्त विभिन्न निर्णित वादों के माध्यम से न्यायालयों ने विभिन्न अधिकारों को स्थावर सम्पत्ति की श्रेणी में रखा है।
स्थावर सम्पति में निम्न शामिल हैं-
(1) कारखाना
(2) सुखाधिकार
3) मार्ग का अधिकार
4) स्थावर सम्पति का भाटक वसूलने का अधिकार
5) स्थावर सम्पति की आमदनी में जीवन हित
6) बंधक ऋण
7) बंधककर्ता का बंधक का मोचन कराने का अधिकार
8) झील से मछली पकडने का अधिकार
9) पेड से लाख एकत्रित करने का अधिकार
10) पुजारी का आनुवांशिक पद
11) मेले से कर वसूलने का अधिकार
12) भूमि से संलग्न मशीनरी
13) साख
14) ताड का वृक्ष
स्थावर सम्पति में शामिल नहीं है:-
1) खडा काष्ठ
2) उगती फसलें
3) घास
4) पूजा का अधिकार
5) सरकारी वचन पत्र
6) कॉपीराईट
7) रॉयल्टी
8) स्थावर सम्पत्ति पर भारित भरण-पोषण भत्ते को वसूलने का अधिकार
9) ऐसी मशीन जो स्थायी रूप से भूबद्ध नहीं है
10) बकाया के लिए डिक्री
लिखत-
धारा 3 के अनुसार, ” लिखत से अवसीयती लिखत अभिप्रेत है। ”
अत: वसीयती लिखत इसमें शामिल नहीं है। वसीयती अंतरण सम्पति अंतरण अधिनियम की परिधि से बाहर है।
भू-बद्ध-
धारा 3 के अनुसार, ” भूबद्ध से अभिप्रेत है-
1) जो भूमि में मूलित हो जैसे कि पेड, झाडियॉ आदि;
2) जो भूमि में निविष्ट हो जैसे कि भित्तियॉ या निर्माण आदि;
3) जो निविष्ट वस्तु से इसलिए बद्ध है कि उसका स्थायी लाभप्रद प्रयोग किया जा सके जैसे कि खिडकी दरवाजे आदि।
अनुप्रमाणन-
अनुप्रमाणन दो या अधिक साक्षियों द्वारा किया जा सकता है। अनुप्रमाणन करने के लिए निम्नलिखित ढंग बताए गए है-
1) हर एक साक्षी ने निष्पादक को लिखत पर हस्ताक्षर करते या अपना चिन्ह लगाते हुए देखा हो; या
2) हर एक साक्षी ने निष्पादक की उपस्थिति में और उसके निर्देश द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को लिखत पर हस्ताक्षर करते हुए देखा हो; या
3) हर एक साक्षी ने निष्पादक से उसके अपने हस्ताक्षर या चिन्ह की या ऐसे अन्य व्यक्ति के हस्ताक्षर की वैयक्तिक अभिस्वीकृति प्राप्त ली हो;
और हर एक साक्षी ने निष्पादक की उपस्थिति में लिखत पर हस्ताक्षर किये हों।
परंतु यह आवश्यक नहीं है कि ऐसे साक्षियों में से एक से अधिक एक ही समय उपस्थित रहे हों। इसके अतिरिक्त अनुप्रमाणन का कोई विशिष्ट प्रारूप भी आवश्यक नहीं है।
किसी तथ्य की किसी व्यक्ति को सूचना-
किसी व्यक्ति को किसी तथ्य की सूचना प्राप्त है यह तब कहा जाता है जब-
1) उसे किसी तथ्य की वास्तविक रूप से जानकारी है; या
2) वह किसी जॉच या तलाशी से जान-बूझकर प्रवृत्त रहता है या;
3) वह किसी जॉच या तलाशी को करने में जान बूझकर घोर उपेक्षा करता है;
पंजीकरण प्रलक्षित सूचना का प्रभाव रखता है यदि किसी लिखत का पंजीकृत होना विधि द्वारा अनिवार्य किया गया है और उसका पंजीकरण भारतीय पंजीकरण अधिनियम 1908 में विहित रीति से किया गया है। (स्पष्टीकरण)
इसी प्रकार किसी व्यक्ति का वास्तविक कब्जा अर्थात तथ्यत: कब्जा उसके स्वत्व की प्रलक्षित सूचना का प्रभाव रखता है। {Explanation-2}
इसके अतिरिक्त कारोबार के अनुक्रम में किसी तथ्य की अभिकर्ता के द्वारा प्राप्त की गई सूचना इसके स्वामी को प्राप्त हुई सूचना समझी जाती है परंतु यदि कोई अभिकर्ता प्राप्त की गई सूचना को अपने स्वामी से कपटपूर्वक छिपाता है तो उसे प्राप्त हुई सूचना उसके स्वामी को प्राप्त हुई सूचना नहीं समझी जाती है। {Explanation-3}
प्रश्न- सम्पत्ति अंतरण अधिनियम के अंतर्गत आन्तिक सूचना को उदाहरण सहित समझाइए ?
उत्तर- सम्पत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 3 ‘ सूचना ‘ शब्द को परिभाषित करती है। सूचना को निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है-
1) वास्तविक सूचना – सम्बन्धित पक्षकार को किसी तथ्य का प्रत्यक्ष ज्ञान वास्तविक सूचना कहलाता है।
2) आन्वयिक / प्रलक्षित सूचना – आन्वयिक सूचना तथ्य की उस स्थिति को कहते हैं जिसमें सम्बन्धित पक्षकार को तथ्य का प्रत्यक्ष ज्ञान तो नहीं कहा जा सकता परंतु वह ऐसी स्थिति में होता है कि वह यदि वास्तविक स्थिति का पता लगाना चाहे तो क्षणिक प्रयास मात्र से पता लगा सकता है।
उदाहरण-
A एक सम्पत्ति का विक्रेता तथा B उस सम्पत्ति का क्रेता है। समव्यवहार के बीच B ने A से स्वत्व विलेख देखने की मॉग की। A ने B को बताया कि स्वत्व विलेख सुरक्षा की दृष्टि से बैंक C के पास जमा किए गए है। B सम्पत्ति का क्रय कर लेता है। उसने छानबीन नहीं की कि बैंक C स्वत्व विलेख को किस प्राधिकार से धारण किए हुए है। इसके पश्चात पता चलता है कि स्वत्व विलेख बैंक C के पास बंधक रखे गये थे। B इस तथ्य से बाध्य होगा क्योंकि उसने जान-बूझकर जॉच करने की उपेक्षा की है।
आन्वयिक सूचना निम्न पॉच प्रकार की होती है-
1) ऐसी सूचना जो कि किसी व्यक्ति को जान-बूझकर जॉच नहीं करने के परिणाम स्वरूप समझी जाए;
2) ऐसी सूचना जो किसी व्यक्ति कि ओर से की गई घोर उपेक्षा के परिणाम स्वरूप समझी जाए;
3) रजिस्ट्री के परिणाम स्वरूप होने वाली सूचना;
4) वास्तविक आधिपत्य से प्राप्त होने वाली सूचना ;
5) अभिकर्ता को प्राप्त हुई सूचना।
सम्पत्ति के अंतरण की परिभाषा-
1) सम्पत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 5 निम्न दो पदों को परिभाषित करती है-
a) सम्पत्ति का अंतरण
b) सम्पत्ति का अंतरण करना
2) धारा 5 के अनुसार ” सम्पत्ति के अंतरण से ऐसा कार्य अभिप्रेत है-
i) जिसके द्वारा कोई जीवित व्यक्ति ;
ii) एक या अधिक अन्य जीवित व्यक्तियों को या स्वयं को या स्वयं को और एक या अधिक अन्य जीवित व्यक्तियों को ;
iii) वर्तमान में या भविष्य में सम्पति हस्तान्तरित करता है और
” सम्पत्ति का अंतरण करना ” ऐसा कार्य करना है।
3) सम्पत्ति का अंतरण एक कार्य है। कार्य करने वाला व्यक्ति अंतरण कर्ता कहलाता है तथा जिस व्यक्ति के प्रति कार्य निर्देशित है वह अंतरिती कहलाता है।
अंतरणकर्ता तथा अंतरिती दोनों जीवित व्यक्ति होने चाहिए। अजन्मे शिशु (गर्भस्थ शिशु) को अपवाद स्वरूप जीवित व्यक्ति माना गया है तथा धारा 13 TPA के अनुसार उसे किया गया अंतरण वैध होता है।
कोई विधिक व्यक्ति जैसे कि कम्पनी या संगम या व्यक्तियों का निकाय (चाहे निगमित हो या अनगमित) भी अंतरणकर्ता या अंतरिती हो सकते है।
अंतरणकर्ता को sui-juris अर्थात संविदा करने में सक्षम होना चाहिए। परंतु अंतरिती के लिए यह आवश्यक नहीं है। अत: किसी अवयस्क या अस्वस्थ चित्त के व्यक्ति के पक्ष में अंतरण निष्पादित किया जा सकता है।
4) सम्पत्ति के अंतरण में सम्पत्ति का हस्तान्तरण होता है। यहॉ ” सम्पत्ति ” शब्द में चल, अचल, तथा मूर्त, अमूर्त सभी अंतरण योग्य सम्पतियॉ शामिल हैं।
” हस्तान्तरण ” शब्द का अर्थ है अंतरिती के पक्ष में किसी हित या स्वत्व का सृजित किया जाना।
जुगल किशोर बनाम राक कॉटन कम्पनी, 1955, उच्चतम न्यायालय
अभिनिर्धारण- धारा 5 में प्रयुक्त शब्द ” वर्तमान में या भविष्य में ” ‘ अंतरण ‘ शब्द की विशेषता बताते हैं न कि सम्पत्ति शब्द की। अत: केवल विद्यमान सम्पति का ही अंतरण किया जा सकता है। भविष्य में प्राप्त होने वाली सम्पति या हित का अंतरण नहीं किया जा सकता है।
5) सम्पति का अंतरण शब्द में निम्नलिखित शामिल नहीं है-
a) विभाजन
b) पारिवारिक बन्दोबस्त
c) समर्पण
d) परित्याग
क्या अंतरित किया जा सकेगा- (धारा 6)
अंतरणीयता प्रत्येक सम्पति का स्वभाविक गुण है अत: सामान्य नियम यह है कि सभी सम्पतियॉ अंतरण योग्य है। सम्पति का गैर अंतरणीय होना केवल एक अपवाद है। दूसरे शब्दों में सम्पतियॉ अंतरण योग्य है सिवाय उनके जिन्हें विधि द्वारा अभिव्यकत रूप से गैर अंतरणीय घोषित किया गया है।
धारा 60 C.P.C. कुछ सम्पतियों को कुर्क किए जाने से अभिमुक्ति प्रदान करती हैं। हिन्दू विधि में सहदायिकी सम्पति, अविभाज्य सम्पदा आदि तथा मुस्लिम विधि में मुत्तवली का पद, वक्फ आदि अंतरण योग्य नहीं है। इसी प्रकार कृषि सम्बन्धी स्थानीय विधियों में भी कुछ सम्पत्तियों एवं अधिकारों को भी गैर अंतरणीय घोषित किया गया है। जैसे कि उत्तर प्रदेश में असंक्रमणीय अधिकार वाले भूमिदर, आसामी एवं आदिवासी के अधिकार अंतरणीय नहीं है।
इसके अतिरिक्त सम्पति अंतरण अधिनियम की धारा 6 (a) से धारा 6(i) में उल्लिखित सम्पतियॉ अंतरण योग्य नहीं है। ऐसी सम्पतियॉ निम्नवत् हैं-
(a) किसी प्रत्यक्ष वारिस की सम्पदा का उत्तराधिकारी होने की सम्भावना, कुल्य की मृत्यु पर किसी नातेदार की वसीयत सम्पदा अभिप्राप्त करने की सम्भावना या इसी प्रकृति की अन्य सम्भावना मात्र;
(b) किसी उत्तरभाव्य शर्त के भंग होने पर पुन: प्रवेश का अधिकार मात्र (सम्पति के स्वामी को छोडकर)
(c) अधिष्ठायी स्थल से पृथक केवल सुखाचार;
(d) सम्पति में का कोई ऐसा हित जो उपभोग में स्वयं स्वामी तक हो;
(dd) भावी भरण पोषण का अधिकार ( चाहे किसी भी रीति से उद्भूत प्रतिभूत या अवधारित हुआ हो;
(e) वाद लाने का अधिकार मात्र
(f) लोक पद या लोक अधिकारियों के वेतन भत्ते
(g) सरकार के सैनिक, नौसैनिक, वायु सैनिक और सिविल पेंशन भोगियों को अनुज्ञात वृत्तिकाएं, और राजनैतिक पेंशन
(h) ऐसा कोई अंतरण नहीं किया जा सकता है जो-
(i) उस हित की प्रकृति के प्रतिकूल हो जिस पर प्रभाव पडा है जैसे कि हवा, पानी, सूर्य के प्रकाश आदि का अंतरण या
(ii) भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 23 के अर्थों में किसी विधिविरूद्ध उद्देश्य या प्रतिफल के लिए किया गया हो या
(iii) अंर्तती होने से विधित: निर्हित किसी व्यक्ति को किया गया हो
(i) निम्नलिखित का अंतरण नहीं किया जा सकता है-
(i) अभीधारी में निहित अधिभोग का अनन्तरणीय अधिकार
(ii) राजस्व न दे पाने वाले काश्तकार का उस सम्पदा में निहित
(iii) प्रतिपाल्य अधिकरण के प्रबंध में स्थित सम्पति के पट्टेदार का हित