भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ/Salient features of Indian Constitution : Simplified Concept of Indian Constitution

आज हम जानेंगें भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ/Salient features of Indian Constitution के बारे में | भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है इसलिए हमारे भारतीय संविधान की प्रमुखता है |

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं/Salient features of Indian Constitution निम्नवत है :-

  1. विशालतम संविधान ;
  2. प्रभुत्वसंपन्न, लोकतंत्रात्मक, पंथनिरपेक्ष, समाजवादी, गणराज्य की स्थापना ;
  3. संसदीय सरकार ;
  4. मूल अधिकार ;
  5. राज्य के नीति निदेशक तत्व ;
  6. वयस्क मताधिकार ;
  7. स्वतन्त्र न्यायपालिका ;
  8. एक नागरिकता ;
  9. नागरिको के मूल कर्तव्य ;
  10. न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति |

विशालतम संविधान :-

सर आइवर जेनिंग्स के अनुसार “भारत का संविधान/Indian Constitution विश्व का साबसे बड़ा संविधान है |” सर आइवर जेनिंग्स का यह कथन बिल्कुल सही है क्योंकि मूल संविधान में 395 अनुच्छेद थे और 8 अनुसूचियां थी कई संविधान संशोधनों के पश्चात् संविधान/Indian Constitution में अंतिमतः अनुच्छेद की संख्यां 395 ही है किन्तु अनुसूचियां बढ़कर 12 हो गई है | अगर गिनती के हिसाब से देखें तो भारतीय संविधान में 450+ अनुच्छेद होंगे | संविधान इतना बड़ा होने के कारण निम्नवत है :-

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ/Salient features of Indian Constitution : Simplified Concept of Indian Constitution
  1. संविधान निर्माताओं ने विश्व के सभी संविधानो का अध्ययन किया और उनसे अनुभव प्राप्त किया | उन्होंने ये पता लगाया की किस देश में क्या दिक्कत आरही है और इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने विश्व के सभी संविधानो की अच्छी बातों को भारतीय संविधान में मिलाया जिससे भविष्य में कभी भी संविधान के सञ्चालन में कोई दिक्कत न आ सके |
  2. भारत भोगोलिक परिस्थिति से देखाया जाए तो बहुत बड़ा देश है और भारत में अनेक धर्मों को मानने वाले लोग रहते है अनेक भाषाएँ बोलने वाले लोग रहते है तो इन सभी बातों को ध्यान में रखा गया और संविधान में स्थान दिया गया जिससे संविधान इतना बड़ा हो गया |

प्रभुत्वसंपन्न, लोकतंत्रात्मक, पंथनिरपेक्ष, समाजवादी, गणराज्य की स्थापना :-

भारतीय संविधान की उद्देशिका के अनूसार संविधान का उद्देश्य भारत में प्रभुत्वसंपन्न, लोकतंत्रात्मक, पंथनिरपेक्ष, समाजवादी, गणराज्य की स्थापना करना है |

प्रभुत्वसंपन्न :-

प्रभुत्वसंपन्न राज्य का अर्थ होता है की राज्य सभी प्रकार के बाह्य नियंत्रण से मुक्त हो और राज्य अपनी आन्तरि और विदेशी नीतियों को स्वयं निर्धारित करता हो | भारत इस सम्बन्ध में पूर्ण स्वतंत्र है क्योंकि वह अपनी आंतरिक और विदेश नीतियों को स्वयं निर्धारित करता है भारत पर किसी भी देश का कोई भी दबाब नही है |

लोकतंत्रात्मक :-

लोकतंत्रात्मक शब्द का अर्थ एक ऐसी सरकार से होता है जिसका पूरा प्राधिकार जनता में निहित होता है और जो जनता के लिए और जनता द्वारा स्थापित की जाती है | देश का प्रशासन जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथ में होता है और ये प्रतिनिधि जनता के प्रति ही उतरदायित्व के अधीन होते है | प्रत्येक 5 वर्ष बाद जनता नए प्रतिनिधि को चुनती है | यही कारण है की संविधान में प्रत्येक वयस्क नागरिक को मत का अधिकार दिया गया है |

पंथनिरपेक्ष :-

पंथ-निरपेक्ष शब्द को संविधान की उद्देशिका में 42वें संविधान संसोधन द्वारा जोड़ा गया है | पंथ-निरपेक्ष का तात्पर्य ऐसे राष्ट्र है जो की किसी विशेष धर्म को राष्ट्र के धर्म के रूप में मान्यता प्रदान नही करता है जबकि सभी धर्मो के साथ समान व्यवहार करता है | वैसे तो पंथ निरपेक्ष की उपधारणा संविधान की “विश्वास,धर्म और उपासना की स्वतंत्रता शब्दावली में विवक्षित है लेकिन एक कदम आगे बढ़ाते हुए इसको संविधान में स्पष्ट कर दिया गया है |

समाजवाद :-

समाजवाद शब्द को संविधान की उद्देशिका में 42वें संविधान संसोधन द्वारा जोड़ा गया है | समाजवाद की उपधारणा प्रस्तावना की आर्थिक न्याय शब्दावली में निहित है | इस संविधान संशिधन द्वारा इस उपधारणा को एक निश्चित दिशा दी गई जिसके लिए हमारी सरकार कटिबद्ध है | समाजवाद शब्द की कोई निश्चित परिभाषा देना कठिन है | वैसे तो इस शब्द का प्रयोग समाजवादी तथा लोकतंत्रात्मक दोनों प्रकार के संविधानों के लिए किया जाता है |

संसदीय सरकार :-

भारतीय संविधान ने संसदीय सरकार की स्थापना की है | यह व्यवस्था केंद्र तथा राज्य दोनों में एक सी है | भारतीय सरकार का यह स्वरूप इंग्लैंड की सरकार के समान है | सरकार के इस स्वरुप को अपनाने का मुख्य कारण यह है की भारत में इस प्रकार की सरकार की नीवं भारत में पहले से ही पद गई थी | भारत सरकार अधिनियम, 1935 का ढांचा इसी प्रकार का था | संसदीय शासन प्रणाली में राष्ट्रपति नाममात्र का कार्यपालिका प्रधान होता है वास्तविक कार्यपालिका शक्ति मंत्री-परिषद में निहित होती है | मंत्री परिषद का प्रधान प्रधानमंत्री होता है | मंत्री परिषद् सामूहिक रूप से संसद के प्रति उत्तरदायी होती है |

मूल अधिकार

भारतीय संविधान के भाग 3 में नागरिको के लिए मूल अधिकार की घोषणा की गई है | लोकतंत्र का आधार ही जनता के अधिकारों का संरक्षण है और भारतीय संविधान का भाग 3 जनता की उन्ही अधिकारों का संरक्षण करता है | आसन भाषा में समझे तो यह कह सकते है की जिन अधिकारों के माध्यम से व्यक्तियों का बहुमुखी विकास होता है वह मूल अधिकार है | यह अधिकार ही व्यक्ति के विकास और उसकी स्वतंत्रता की आधारशिला है |

इन अधिकारों को संविधान में समाविष्ट करने की प्रेरणा हमे अमेरिका के संविधान से मिली है | यह अधिकार राज्य की विधायी और कार्यपालिका शक्ति पर निर्बन्धन स्वरुप है | संविधान राज्य को ऐसी विधि बनाने से रोकता है जिनसे नागरिको के मूल अधिकारों का उल्लंघन हो |

मूल अधिकार आत्यंतिक\पूर्ण अधिकार नही है | इन अधिकारों पर आवश्यकता पड़ने पर सार्वजानिक हित में निर्बन्धन लगाए जा सकते है |

राज्य के नीति निदेशक तत्व

भारतीय संविधान के भाग 4 में कुछ ऐसे निदेशो का वर्णन किया गया है जिन्हें पूरा करना राज्य का पवित्रतम कर्तव्य है | ऐसे निदेशो को राज्य के नीति निदेशक तत्व कहा गया है | इन नीति निदेशक तत्वों को संविधान में समाविष्ट करने की प्रेरणा आयरलैंड के संविधान से मिली है | ये सिद्धांत निदेशकों के रूप में है जो विधान मंडल के पथ प्रदर्शन के लिए संविधान में उपबंधित किये गये है |

वयस्क मताधिकार

प्रजातंत्रात्मक सरकार जनता की सरकार है | देश का प्रशासन जनता के हुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है | इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए संविधान प्रत्येक वयस्क को मताधिकार का अधिकार प्रदान करता है, जिसका प्रयोग करके जनता अपने प्रतिनिधियों को देश का प्रशासन चलाने के लिए ससाद तथा राज्य विधान मंडल में भेजती है |

भारत का प्रत्येक नागरिक चाहे वह स्त्री हो उया पुरुष यदि उसने 18 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है तो उसे निर्वाचन में मतदान करने का अधिकार होता है | भारतीय संविधान सांप्रदायिक मताधिकार की प्रणाली को समाप्त करके बिना किसी भेदभाव के सभी को सामान मत देने का अधिकार प्रदान करता है |

स्वतन्त्र न्यायपालिका

स्वतन्त्र न्यायपालिका की स्थापना भारतीय संविधान की महत्वपूर्ण विशेषता है | भारतीय संविधान पुरे देश के लिए एक ही न्याय-प्रशासन की व्यवस्था करता है जिसके शिखर पर उच्चतम न्यायलय वर्तमान है | उच्चतम न्यायलय के निर्णय देश के सभी न्यायालयों पर बाध्यकरी होते है |

संघात्मक संविधान में स्वतन्त्र न्यायपालिका का मुख्य कार्य केंद्र तथा राज्यों के बीच विवादों को निपटाना होता है | इसीलिए उच्चतम न्यायलय को संविधान का संरक्षक भी कहा जाता है |

एक नागरिकता

संघात्मक संविधान में साधारणतः दोहरी नागरिक होती है- एक संघ की और दूसरी राज्य की | किन्तु भारतीय संविधान संघात्मक होने के बाबजूद भी केवल एक ही नागरिकता को प्रदान करता है | भारत का नागरिक केवल भारत का नागरिक है न की किसी प्रान्त का जिसमे वह रहता है | सभी नागरिको को केवल भारत के प्रति निष्ठावान रहने की प्रेरणा देने के उद्देश्य से एक न्ग्रिकता का आदर्श अपनाया गया है |

नागरिको के मूल कर्तव्य

42वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में एक नया भाग 4-A जोड़कर नागरिको के 10 मूल कर्तव्यों को समाविष्ट किया गया है | मूल संविधान में केवल मूल अधिकारों का ही उल्लेख किया गया था | उनके कर्तव्यों के बारे में कोई स्पष्ट उल्लेख नही किया गया था | प्रस्तुत संविधान संसोधन इस कमी को दूर करने के लिए पारित किया गया |

न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति :-

संविधान का अनुच्छेद 13 न्यायालयों को न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति प्रदान करता है \ यह शक्ति केवल उच्चतम न्यायलय व उच्च न्यायलय के पास है | अपनी शक्ति का उपयोग करते हुए उच्चतम न्यायालय व उच्च न्यायलय विधान मंडल द्वारा पारित किसी भी अधिनियम को असंवैधानिक घोषित कर सकते है जो की संविधान के भाग 3 में दिए गये किसी भी उपबंध से असंगत हो |

न्यायिक पुनार्विलिकन के सिद्धांत को सर्वप्रथम अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिपादित किया गया था |

Indian Constitution Articles
Article 21 of Indian Constitution
Article 20 Constitution of India
Article 25-28 Constitution of India


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