आज हम जानेगें समाश्रित संविदा के बारे में | जो की संविदा अधिनियम की धारा 31 से धारा 36 में बताई गई है | इस संविदा का प्रयोग हर व्यक्ति अपनी ज़िन्दगी में करता है लेकिन समाश्रित संविदा और बाजी संविदा में अंतर करना बहुत जरुरी है | इसी अन्तर को समझने के लिए आज हम जानेंगें समाश्रित संविदा के बारे में |
समाश्रित संविदा की परिभाषा {धारा 31}
समाश्रित संविदा वह संविदा है जो ऐसी संविदा से साम्पर्श्विक किसी घटना के घटित होने या न होने पर ही किसी बात को करने या न करने के लिए हो |
द्रष्टान्त:-
ख से क संविदा करता है की यदि ख का गृह जल जाए तो वह ख को 10000 रुपए देगा | यह समाश्रित संविदा है |
किसी घटना के घटित होने पर समाश्रित संविदा कब प्रवर्तनीय हो जाती है :- {धारा 32 सपठित धारा 35(1)}
1. किसी अनिश्चितभावी घटना के घटित होने पर समाश्रित संविदा उस घटना के घटित होने पर प्रवर्तनीय हो जाएगी |
2. यदि ऐसी घटना का घटित होना असंभव हो जाए तो ऐसी संविदा शून्य हो जाती है |
3. किसी नियत समय के भीतर घटना के घटित होने पर समाश्रित संविदा तब प्रवर्तनीय हो जाती है जब वह घटना उस नियत समय के भीतर घटित हो जाए |
4. ऐसी संविदा निम्न दो मामलो में शून्य हो जाती है :-
a. ऐसी घटना के घटित हुए बिना नियत समय का अवसान हो जाने पर;
b. यदि नियत समय के अवसान से पूर्व ही उस घटना का घटित होना असम्भव हो जाए |
(क)B के साथ A संविदा करता है की यदि C के मरने के बादA जीवित रहा तो B, C का घोडा खरीद लेगा | । इस संविदा का
प्रवर्तन(लागु) विधी के द्वारानहीं कराया जा सकता जब तक A के जीवन-काल में C मर न जाए ।
(ख) Aइस बात का वचन देता है की यदि अमुक पोत एक वर्ष के भीतर वापस आ जाए तो B को एक धनराशी देगा । यदि पोत उस
एक वर्ष के भीतर वापस आ जाए तो संविदा का प्रवर्तन कराया जा सकेगा और यदि पोत उस वर्ष के भीतर जल जाए तो संविदा शून्य हो जाएगी ।
घटना के घटित ना होने पर समाश्रित संविदा कब प्रवर्तनीय हो जाती है :- {धारा 33 सपठित धारा 35(2)}
1. किसी घटना के घटित न होने पर समाश्रित संविदा तब प्रवर्तनीय हो जाती है जब उस घटना का घटित होना असंभव हो जाए |
2. ऐसी संविदा तब अप्रवर्तनीय हो जाती है जब ऐसी संविदा का घटित न होना असंभव हो जाए |
3. यदि ऐसी घटना के घटित न होने के लिए कोई समय सीमा विहित की गई है तो धारा 35 का खंड 2 लागू होगा |
4. ऐसी संविदा निम्न दो मामलो में शून्य हो जाएगी :-
a. विहित सीमा का अवसान हो जाने पर; या
b. यदि विहित समय सीमा के जारी रहने के दौरान उस घटना का घटित न होना असंभव हो जाए | {धारा 35(2)}
किसी घटना के घटित होने पर समाश्रित संविदा कब शून्य समझी जाती है :-
किसी प्रकार से यदि कोई संविदा ऐसी घटना पर समाश्रित की जाए की कोई व्यक्ति किसी अविनिर्दिष्ट समय पर किस प्रकार से कार्य करेगा तो ऐसी संविदा जब शून्य हो जायेगी जब उस घटना का घटित होना असंभव हो जायेगा |
असंभव घटनाओं पर समाश्रित करार शून्य है :-{धारा 36}
समाश्रित करार शून्य होगा यदि वह किसी असंभव घटना के घटित होने पर निर्भर हो |
CHANDU LAL VS CIT, 1967 S.C.
अभिनिर्धारित :- न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया की सभी बीमा संविदाएं समाश्रित संविदा है सिवाय जीवन बीमा संविदा को छोड़कर |
VALIAMAMAL RANGARAORMACHAR VS MUTHUPUMARSWAMY GOUNDER, 1982 S.C.
अभिनिर्धारित :- न्यायलय ने यह अभिनिर्धारित किया की मुकदमे की सफलता पर भुगतान का वचन समाश्रित संविदा है |
DALSUKH VS GUARANTEE INSRANCE CO., 1947 PCS
अभिनिर्धारित :- एक व्यक्ती से कोई झगडे वाली जमीन खरीदने की संविदा जो इस शर्त पर लागु होनी है की क्रेता केस जीत जाएगा, समाश्रित संविदा है | शर्त पूरा होने पर ऐसी संविदा के पलान की मांग की जा सकती है |
FROST VS KNIGHT, 1872
अभिनिर्धारित :- प्रतिवादी ने वचन दिया की पिता की मृत्यु होते ही वह वादी से शादी कर लेगा | उसके पिता अभी भी जीवित ही थे की उसने दूसरी शादी कर ली, निर्णय दिया गया की इससे उसका वादी से शादी से करना असंभव हो गया था इसलिए वादी संविदा भंग का वाद ला सकती है |
N PEDDANNA OGETI BALAYYA VS KATTA V SRINIVASAYYA SETTI SONS, 1954, S.C.
अभिनिर्धारित :- एक कार का, यातायात में होने वाली हानि के लिए बीमा किया गया | कार की यातायात में आने से पहले ही क्षति हो गई, बीमाकर्ता जिम्मेदार नही ठहराया गया | घटना के हो जाने पर समाश्रित संविदा पूर्णरूपेण संविदा बन जाती है |